समकालीन
कहानियों में भारत से जवाहर चौधरी
की व्यंग्य कथा-
राजा विक्रम
और हिन्दी का पिशाच
राजा
विक्रमादित्य सुबह की सैर के लिए वन से होकर गुजर रहे थे कि
अचानक पेड़ से एक पिशाच ठीक उनके सामने टपक पड़ा और उछलकर उनके
कंधे पर लटक गया। राजा पहले चौंके लेकिन दूसरे ही क्षण झिड़कते
हुए उन्होंने पिशाच को नीचे पटक दिया। चीखते हुए बोले- ये क्या
बदतमीजी है, पेड़ पर लटककर सोते नहीं बनता तो नीचे जमीन पर
क्यों नहीं सोते हो? इस तरह किसी राहगीर पर गिरते तुम्हें शरम
नहीं आती है? पिशाच कहीं के! मार्निंग वाक पर हूँ, तलवार नहीं
है वरना तुम्हारी गर्दन उड़ा देता। ईडियट!
नाराज न हों राजन, हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है...। पिशाच ने
मुस्कराते हुए राजा को याद दिलाया।
तो? राजा ने बेरुखी से पूछा।
मैं हिंदी का पिशाच हूँ... ग्लैड टू मीट यू सर। पिशाच ने शेक
हैंड के लिए हाथ बढ़ाया।
तुम!! तुम हिंदी के पिशाच कैसे हो? राजा ने हाथ मिलाए बगैर
पूछा!
हिंदी के पेड़ पर लटका हूँ इसलिए हिंदी का पिशाच हूँ...
हिस्ट्री के पेड़ पर होता तो हिस्ट्री का पिशाच होता हें- हें
हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है... ग्लैड टू मीट यू सर...आगे-
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