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२. ९. २०१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
लक्ष्मीनारायण गुप्ता, लोकेश नदीश, संजय पाल शेफर्ड, साधना ठकुरेला और स्वप्न मंजूषा शैल की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत ब्रेड के व्यंजनों की विशेष शृंखला में इस बार प्रस्तुत है- ब्रूसकेता

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- ब्बे जिनमें सुंदर सजे सामान

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- सूरज वाला दिन

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-२९ विषय- मेरा देश के लिये भेजे गए नवगीतों का प्रकाशन पूरा हो गया है। जल्दी ही नई कार्यशाला की घोषणा होगी।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें।

लोकप्रिय रचनाओं के अंतर्गत- इस सप्ताह प्रस्तुत है ९ अप्रैल २००६ को प्रकाशित भूपेन्द्र कुमार दवे की कहानी- जेबकतरे

वर्ग पहेली-१४९
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-  

समकालीन कहानियों में भारत से शरद पगारे
की कहानी इक्कीसवीं सदी और शंकर दादा

शंकर दादा ! ऊँचे पूरे कसरती बदन की ऊभरी मछलियाँ ढलान पर थीं। मगर गोरे-गुलाबी चेहरे, सतर्क आँखों, फूले गाल और ऐंठी मूँछें तथा रुवाबदार आवाज का रुतबा कायम था। खण्डवा के कलेक्टरेट के टाइपिस्ट के पद से सेवानिवृत्त थे। दिनचर्या में उमर को बाधक नहीं बनने दिया। भोर में उठ, रात में भर कर रखे ताँबे के लोटे से पहले आँखों को अच्छी तरह छींटें मार धोकर बासी मुख गड़गड़ाहट के साथ लोटा खाली करते। उनकी हलचल घर को दिन निकलने का आभास करा देती। पत्नी गौरा टोकती, ‘इतने सबेरे-सबेरे क्यों सबकी नींद खराब करते हो। कौन नौकरी पर जाना है। सारी जिन्दगी भाग-दौड़ में बिताई। अब तो आराम करो?
‘जानती तो हो! आदतें मरते दमतक साथ नहीं छोड़ती। नींद ,खुलने के बाद बिस्तर पर फालतू पड़ा नहीं जाता।’ बतियाते कपड़े बदल बड़ाबम के अवध भैय्या के अखाड़े हल्की वर्जिश करने जा पहुँचते। लौट कर ओटले की कुर्सी पर बैठ एक गिलास दूध के साथ पेपर पढ़ते। बीच-बीच में चलती सड़क का जायजा भी लेते। कहा करते, ‘राम ओटले बैठ के सभी का मुजरा लेता हूँ। सभी से प्यार-दोस्ती ना काहू से बैर।’ सब के सुख, खास कर दुःख के पक्के साथी।...आगे-

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शशि पाधा का
प्रेरक प्रसंग- बोझ
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डॉ. अशोक जेरथ से जानें
जम्मू रंगमंच का इतिहास
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डॉ. दिनेशचंद्र अग्रवाल का आलेख
सहारनपुर की सांस्कृतिक विरासत 
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पुनर्पाठ में- डॉ. इंद्रजित सिंह
का संस्मरण- गीतों का जादूगर शैलेन्द्र

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पिछले सप्ताह- जन्माष्टमी के अवसर पर


संजीव सलिल की
लघुकथा- मोहन भोग
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शिववचन चौबे का साहित्यिक निबंध
राम वही हैं कृष्ण वही
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किरीट जोशी का दृष्टिकोण
श्रीमद्भगवद्गीता की प्रासंगिकता
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पुनर्पाठ में- कलादीर्घा के अंतर्गत
जानकारी- यमुनाघाट चित्रकला
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उपन्यास अंश में भारत से नरेन्द्र कोहली के
उपन्यास महासमर का अंश युद्ध, तर्क और मर्यादा

कुंती और पांडवों के प्रबल आग्रह के बाद भी कृष्ण और उनके साथी, युधिष्ठिर के युवराज्याभिषेक के पश्चात हस्तिनापुर में नहीं रुके। कृष्ण ने केवल इतना ही बताया कि उन लोगों का मथुरा पहुँचना आवश्यक था। भीम की बहुत इच्छा थी कि बलराम अभी कुछ दिन और रुकते तो भीम का गदा-युद्ध और मल्ल-युद्ध का अभ्यास और आगे बढ़ता। बलराम को इसमें कोई आपत्ति भी नहीं थी। वे मथुरा लौटने के लिए बहुत आतुर भी नहीं दिखते थे, फिर भी कृष्ण के बिना, वे हस्तिनापुर में रुक नहीं सकते थे। कृष्ण ने चाहे उन्हें कुछ नहीं बताया था, किंतु यादवों के मथुरा लौट जाने के पश्चात युधिष्ठिर को भी चारों ओर से अनेक समाचार मिलने लगे थे।...जरासंध का सैनिक अभियान अब गुप्त नहीं रह गया था। विभिन्न राजसभाओं से राजदूत एक-दूसरे के पास जा रहे थे। पांचालों और यादवों में कोई प्रत्यक्ष संधि तो नहीं हुई थी, किंतु पांचालों ने जरासंध के सैनिक अभियानों में सम्मिलित होने की कोई तत्परता नहीं दिखायी थी। यादवों को वे अपने मित्र ही लग रहे थे। ...आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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