फुलवारी

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सूरज वाला दिन

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मौसम बदलने लगा है। अब दोपहर में इतनी गर्मी नहीं होती। स्कूल अभी तक नहीं खुले हैं, इसलिये मीता घर पर हैं। मीता और छुटकू भालू को कोई नया खेल नहीं मिल रहा था।

चलो हम माँ की मदद कर दें, मीता ने कहा।
कौन सी मदद? छुटकू भालू ने पूछा।
हम माँ से पूछते हैं- मीता ने कहा।
माँ क्या हम आपकी मदद कर सकते हैं? मीता ने पूछा।
हाँ हाँ क्यों नहीं, ये कपड़े धुल गए हैं इन्हें सूखने के लिये तार पर फैलाना है। क्या ऊपर धूप है? -माँ ने पूछा।
हाँ खूब अच्छी धूप है और गर्मी भी नहीं। आप कपड़े दे दीजिये मैं और छुटकू भालू मिलकर फैला देंगे। मीता ने कहा।
माँ से कपड़े लेकर उन्होंने सूखने के लिये फैला दिये।

उन्हें एक नया खेल भी मिल गया- छुपन छुपाई, फैले हुए कपड़ों की पीछे छुपने और ढूँढने का खेल। वे दोनों खेलते रहे, सूरज हँसता रहा और तार पर बैठी दो चिड़ियाँ गीत गाती रहीं।

- पूर्णिमा वर्मन

सितंबर २०१३

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