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२६. ८. २०१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
जन्माष्टमी के अवसर पर विविध विधाओं में अनेक कवियों की श्री कृष्ण को समर्पित रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत ब्रेड के व्यंजनों की विशेष शृंखला में इस बार प्रस्तुत है- देसी सैंडविच

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- उदास कोने का कायाकल्प

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- जन्माष्टमी

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-२९ विषय- मेरा देश के लिये भेजे गए नवगीतों का प्रकाशन पूरा हो गया है। जल्दी ही नई कार्यशाला की घोषणा होगी।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें।

लोकप्रिय रचनाओं के अंतर्गत- इस सप्ताह प्रस्तुत है १ सितंबर २००७ को प्रकाशित डॉ नरेंद्र कोहली के उपन्यास वसुदेव का एक अंश- कृष्ण आ गया है

वर्ग पहेली-१४८
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-  जन्माष्टमी के अवसर पर

उपन्यास अंश में भारत से नरेन्द्र कोहली के
उपन्यास महासमर का अंश युद्ध, तर्क और मर्यादा

कुंती और पांडवों के प्रबल आग्रह के बाद भी कृष्ण और उनके साथी, युधिष्ठिर के युवराज्याभिषेक के पश्चात हस्तिनापुर में नहीं रुके। कृष्ण ने केवल इतना ही बताया कि उन लोगों का मथुरा पहुँचना आवश्यक था। भीम की बहुत इच्छा थी कि बलराम अभी कुछ दिन और रुकते तो भीम का गदा-युद्ध और मल्ल-युद्ध का अभ्यास और आगे बढ़ता। बलराम को इसमें कोई आपत्ति भी नहीं थी। वे मथुरा लौटने के लिए बहुत आतुर भी नहीं दिखते थे, फिर भी कृष्ण के बिना, वे हस्तिनापुर में रुक नहीं सकते थे। कृष्ण ने चाहे उन्हें कुछ नहीं बताया था, किंतु यादवों के मथुरा लौट जाने के पश्चात युधिष्ठिर को भी चारों ओर से अनेक समाचार मिलने लगे थे।...जरासंध का सैनिक अभियान अब गुप्त नहीं रह गया था। विभिन्न राजसभाओं से राजदूत एक-दूसरे के पास जा रहे थे। पांचालों और यादवों में कोई प्रत्यक्ष संधि तो नहीं हुई थी, किंतु पांचालों ने जरासंध के सैनिक अभियानों में सम्मिलित होने की कोई तत्परता नहीं दिखायी थी। यादवों को वे अपने मित्र ही लग रहे थे। जरासंध ने हस्तिनापुर की राजसभा में कोई भी राजदूत नहीं भेजा था, किंतु यह समाचार प्रायः सबको ही ज्ञात हो गया था  ...आगे-
*

संजीव सलिल की
लघुकथा- मोहन भोग
*

शिववचन चौबे का साहित्यिक निबंध
राम वही हैं कृष्ण वही
*

किरीट जोशी का दृष्टिकोण
श्रीमद्भगवद्गीता की प्रासंगिकता
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पुनर्पाठ में- कलादीर्घा के अंतर्गत
जानकारी- यमुनाघाट चित्रकला

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पिछले सप्ताह-


अरविन्द मिश्र का व्यंग्य
विश्वस्त हैं विश्वासघाती
*

श्याम सुंदर दुबे का ललित निबंध
मेरा सच कभी पटरी पर नहीं आता
*

दिवंगत रचनाकार को शेरजंग गर्ग की श्रद्धांजलि
 शिवबहादुर सिंह भदौरिया: नदी का बहना मुझमें हो
*

पुनर्पाठ में- अश्विन गाँधी का
संस्मरण- एक महल हो सोने का
*

समकालीन कहानियों में यू.एस.ए. से
इला प्रसाद की कहानी भारत का वीजा

“देखिये, हम कुछ नहीं कर सकते। आपके कागजात पूरे नहीं हैं, आपका वीजा नहीं हो सकता।“ भारतीय वाणिज्य दूतावास की खिड़की पर बैठी महिला ने फिर से वही रटा-रटाया वाक्य दुहराया और अगले नम्बर के लिये घंटी बजा दी। खिडकी के ठीक ऊपर लगा बोर्ड लाल रंगों में अगला नम्बर दिखाने लगा। शुभेन्दु के पीछे खड़े लोग अकुलाने लगे कि वह हटे तो उनकी बारी आये। पिछले दो दिनों से, सुबह-शाम इस खिड़की पर हाजिरी लगाते-लगाते शुभेन्दु बौखला चुका था। माँ की मौत पर कायदे से रो भी नहीं पा रहा। हर क्षण यह अहसास कि कलकत्ते में, गरियाहाट वाले घर में, माँ की लाश पड़ी है, उसके द्वारा मुखाग्नि दिये जाने की प्रतीक्षा में और यहाँ वीजा कार्यालय के नखरे!
“मैडम, आप समझती क्यों नहीं, मैं पिछले बीस साल से अमेरिका का नागरिक हूँ। मुझे याद भी नहीं कि मेरा पुराना भारत का पासपोर्ट कहाँ है। आप बीस साल बाद भारत का पुराना पासपोर्ट माँग रहे हैं मुझसे, कहाँ से लाऊँ मैं?” “देखिये सर, ये नियम दिल्ली से आते हैं।  ...आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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