इस सप्ताह-
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अनुभूति
में-
विगत चार दिसंबर को
वरिष्ठ रचनाकार महेश अनघ हमारे बीच नहीं रहे। उनकी स्मृति
में उन्हीं के इक्कीस लोकप्रिय नवगीत। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- पर्वों के दिन शुरू हो गए हैं और दावतों की
तैयारियाँ भी। इस अवसर के लिये विशेष शृंखला में शुचि प्रस्तुत
कर रही हैं-
पनीर पुलाव। |
बचपन की
आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में
संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु-
शिशु के साथ होटल में।
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सुनो कहानी- छोटे
बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में
इस बार प्रस्तुत है कहानी-
आसमान की सैर। |
- रचना और मनोरंजन में |
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला- २५ की रचनाओँ का प्रकाशन
प्रारंभ हो गया है। रचनाएँ अभी भी भेजी जा सकती हैं।
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लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत-
प्रस्तुत है पुराने अंकों से ९ मई
२००३ को प्रकाशित बृजेशकुमार शुक्ल की कहानी—"अल्विदा
क्रिस्टा"।
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वर्ग पहेली-१११
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
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सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
समकालीन कहानियों में भारत से
राकेश कुमार सिंह की कहानी-
समुद्रपाखी
क्योंकि शादी का मतलब होता है एक
अदद बीबी, बीबी के बाद बच्चे, दोनों का योग होता है परिवार और
इन सबका जमा मतलब होता है जिम्मेवारियाँ...। याने जिन्दगी में
एक ठहराव, और्र फिर आदमी की रोमांचप्रिय प्रकृति का
स्वर्गवास...।
अजहर अपनी कल्पना ऐसे व्यक्ति के रूप में कभी नहीं कर पाता था
जो बुडापेस्ट के ’कैसीना’ (जुआघर) में ऊँचे दाँव लगाने की बजाय
उस रकम से अपने जीवन-बीमे की किस्तें भरने के बारे में सोच रहा
हो या फिर वेनिस के किसी उम्दा ’बार’ में बेहतरीन शराब खरीदने
की बजाय उन पैसों की पाई-पाई भविष्य के, लिये जोड़ रहा हो।
परन्तु शादी के बारे में उसके ख्यालात बदल चुके थे।
वह नम समुद्री हवा की महक से भरी सर्द शाम थी। सितारों के
बूटों जडा साफ-शफ्फाक नौ दिसंबर उन्नीस सौ छियानवे का आसमान
था, जब ‘ग्लोब शिपिंग कारपोरेशन’ का यात्रीवाहक जहाज ‘सी-बर्ड’ रंगून, जार्जटाउन, सिंगापुर, सेगौन और हांगकांग
होता हुआ एक बार फिर करांची आकर ठहरा था।
आगे-
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दीपक मशाल की लघुकथा
शक्तिशाली
*
कादम्बरी मेहरा का यात्रा विवरण
खदानों के शहर की अमर प्रेम कहानी
*
डॉ. अशोक उदयवाल से जानें
सर्दियों में स्वास्थ्यवर्धक
फूलगोभी
*
पुनर्पाठ में- डॉ. गुरुदयाल प्रदाप से
विज्ञानवार्ता
स्टेम कोशिकाओं में छिपा
मानव कल्याण |
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पिछले-सप्ताह-
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१
अविनाश वाचस्पति का व्यंग्य
कसाब को काटने वाले मच्छर से साक्षात्कार
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कुमुद शर्मा का आलेख
अनूठे कथाकार-रांगेय राघव
*
गौतम सचदेव का ललित निबंध
पीले
पत्ते
*
पुनर्पाठ में- डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय
का नगरनामा
कोलकाता की शाम
*
समकालीन कहानियों में
यू.एस.ए. से
सुषम बेदी की कहानी-
पार्क में
चैन से दाना चुगते कबूतरों का वह
झुंड गिलहरी के आते ही पलक भर में उसके सिर पर से गुजर कर
पेड़ों की पत्तियों और टहनियों के बीच गायब हो गया। बड़ी हैरानी
के साथ वह उस गिलहरी की हरकतों को ताकता रहा। सिर्फ एक गिलहरी
और इतने कबूतरों की जिन्दगी में हलचल। गिलहरी तो खुद ही बड़ा
मासूम सा जानवर लगता है उसें मनु को इसे देखते ही लंका जाने के
लिये पुल बनानेवाले राम का ध्यान आता है जिनकी तिनके भर की मदद
करके गिलहरी ने अपनी पीठ पर स्नेह की तीन उँगलियों की छाप आज
तक बरकरार रखी हुई है। लेकिन इन अमरी गिलहरियों की पीठ तो एकदम
सादा और बेनिशान है। शायद इनका त्रेतायुग की गिलहरियों से कोई
नाता ही नहीं। यहाँ तो यूँ भी गिलहरी के साथ वैसा मीठा रोमांस
नहीं जुड़ा, उल्टे लोग इन मोटी-पली गिलहरियों को
’स्कैवेंजर’ मानते हैं-सब कुछ सफाचट कर जाने पर उतारू।....
आगे- |
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