वो नौसिखिया कार चालक साँझ
होते ही कार लेकर सड़क पर आ उतरा। कार चलाना तो सीख गया मगर
अभ्यास की कमी थी, जिसको कि पूरा करने वास्ते वह कम
भीड़-भाड़ वाले इलाके की तरफ मुड़ गया। अचानक पानी से भरे
गड्ढे के ऊपर से कार निकली तो गड्ढे का गन्दा पानी राह
चलते एक साइकिल सवार की कमीज को गन्दा कर गया। साइकिल वाले
के चिल्लाने पर आस-पास के लोग जमा हो गए और कार को आगे
बढ़ने से रोक दिया गया। अपनी आँखों को बड़ा-बड़ा करते हुए
उस साइकिल वाले ने नौसिखिये पर चीखना शुरू कर दिया,
''स्साले, अन्धा होकर चलाता है? इतना बड़ा खड्डा नहीं दिखा
तुझे? मेरी नई कमीज़ ख़राब कर दी। तुझे क्या लगता है ऐसे
ही निकल जाएगा यहाँ से।। जानता नहीं है तू मैं कौन हूँ। इस
इलाके के दादा का ख़ास आदमी हूँ मैं। अब चुपचाप नई कमीज़
के पैसे निकाल वर्ना स्टेयरिंग पकड़ने के लिए हाथ सलामत
नहीं रहेंगे।।''
धमकी का असर हुआ। नौसिखिये ने बिना कुछ कहे सुने चंद
नीले-पीले नोट निकाल कर 'बेचारे' साइकिलवाले के हवाले कर
दिए।
अगले मोड़ पर मुड़ते समय पता नहीं कहाँ से एक मोटर साइकिल
सवार जल्दबाजी में कार से हल्का सा टकरा गया। हालांकि
टक्कर बड़ी मामूली थी और मोटर साइकिल वाले को चोट भी नहीं
लगी, लेकिन कार रोककर उसने भी नौसिखिये को बाहर निकाला और
उसने भी धमकाते हुए कहा कि, ''हाथ में मेंहदी लगा कर कार
चला रहा था? चार पहिये पर सवार है तो किसी की जान लेगा?
मैं यहाँ के कमिश्नर को अच्छी तरह से जानता हूँ। अगर अभी
दो हज़ार नहीं निकाल के दिए तो थाने में टाँगे तुडवा दूँगा
तेरी।। लाइसेंस जाएगा सो अलग।''
डरते हुए एकबार फिर उसने दो हज़ार रुपये मोटरसाइकिल वाले को
थमा दिए और वहाँ से अपनी जान लेकर दूसरे इलाके की तरफ
भागा। लेकिन उसकी बदकिस्मती कहें या खराब ड्राइविंग कि इस
बार सच में उसने एक सफ़ेद एम्बेसडर को पीछे से ठोक दिया।
तुरत प्रक्रिया हुई, तीन गुण्डे टाईप के लोग मुँह में पान
दबाये उसकी तरफ बढ़े और कॉलर पकड़कर उसे कार से बाहर निकालने
के साथ-साथ तीन-चार थप्पड़ रसीद कर दिए। जैसे कि उसे उम्मीद
थी उनमे से एक अश्लीलतम गालियाँ देते हुए बोल पड़ा,
''जानता है किसकी गाड़ी ठोकी है तूने? मंत्री जी के भतीजे
की। पूरी डिग्गी चपटी कर डाली। अब इसका पैसा तेरा बाप
भरेगा? चल निकाल बीस हज़ार वर्ना पता भी नहीं चलेगा कि कहाँ
से आया था और कहाँ गया।''
पैसे तो अब जेब में थे नहीं, सो उसने अपने गले में पड़ी
सोने की मोटी चेन उन गुन्डेनुमा लोगों को सौंप उनके पास
गिरवी रखी अपनी जान छुड़ाई और अब अत्यधिक सावधानी के साथ
कार चलाने लगा। पर हाय रे बदकिस्मती कि घर से थोड़ी ही दूरी
बाकी रहते, अँधेरे में कार एक बार फिर किसी भारी-भरकम
वस्तु से टकरा गई। डर के मारे थर-थर काँपते हुए उसने कार
रोक कर देखने की कोशिश की कि इसबार कौन है कि तभी एक शांत
और मधुर आवाज़ कानों में पड़ी। ''माफ़ करना, मैं तुम्हारे
रास्ते में आ गया''
देखा तो कार एक चबूतरे से टकरा गई थी। चबूतरा किसी धार्मिक
इमारत का था।
नौसिखिये ने हिम्मत करके पूछा, ''आप कौन हैं?''
''भाई, मैं ईश्वर हूँ और मैं किसी का कुछ नहीं बिगाड़
सकता।।''।
१० दिसंबर २०१२ |