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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से राकेश कुमार सिंह की कहानी— समुद्रपाखी


क्योंकि शादी का मतलब होता है एक अदद बीबी, बीबी के बाद बच्चे, दोनों का योग होता है परिवार और इन सबका जमा मतलब होता है जिम्मेवारियाँ...। याने जिन्दगी में एक ठहराव, और्र फिर आदमी की रोमांचप्रिय प्रकृति का स्वर्गवास...।
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अजहर अपनी कल्पना ऐसे व्यक्ति के रूप में कभी नहीं कर पाता था जो बुडापेस्ट के ’कैसीना’ (जुआघर) में ऊँचे दांव लगाने की बजाय उस रकम से अपने जीवन-बीमे की किस्तें भरने के बारे में सोच रहा हो या फिर वेनिस के किसी उम्दा ’बार’ में बेहतरीन शराब खरीदने की बजाय उन पैसों की पाई-पाई भविष्य के, लिये जोड़ रहा हो। परन्तु शादी के बारे में उसके ख्यालात बदल चुके थे। शायद तभी बदलने शुरू हो गए थे, जब वह पिछली बार कराची आया था।
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वह नम समुद्री हवा की महक से भरी सर्द शाम थी। सितारों के बूटों जडा साफ-शफ्फाक नौ मार्च उन्नीस सौ छियानवे का आसमान था, जब ‘ग्लोब शिपिंग कारपोरेशन’ का यात्रीवाहक जहाज ‘सी-बर्ड’ (सागर-पारवी) रंगून, जार्जटाउन, सिंगापुर, सेगौन और हांगकांग होता हुआ एक बार फिर करांची के ‘डॉक’ पर आकर ठहरा था।
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जहाज के डेक पर रेलिंग के सहारे खड़ा अजहर दूर किनारों पर जगमग करती कराचीं शहर की रोशनियों को निहारता रहा था।

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