कसाब को काटने वाला मच्छर ऑनलाईन
था। वह फेसबुक पर मेरे साथ चैटिंग में आया। लीजिए आप भी करिये मच्छर से चैटिंग के
बहाने कई हकीकतों से साक्षात्कार :
मच्छर : मुन्नाभाई सलाम
मुन्नाभाई : मैं सबका भाई हो सकता हूँ किंतु मच्छर का भाई होना मुझे गवारा नहीं है।
मच्छर : किंतु मैंने तो उसको काटा है जिसने मुंबई में आतंकी वारदात करके समूचे देश
को हिला दिया था।
मुन्नाभाई : देश को कोई नहीं हिला सकता, इतना मजबूत देश है मेरा। इसे आजतक घपले और
घोटालों में संलिप्त नेता तक नहीं हिला पाए तो उस आतंकी कसाब की क्या मजाल ?
मच्छर : हिलाने से मेरा मतलब नुकसान पहुँचाने से था।
मुन्नाभाई : नुकसान तो इंसान को और पूरी मानवजाति को तुम पहुँचा रहे हो। उसने तुम्हारा
क्या बिगाड़ा है जो सदियों से तुम उसके खून के प्यासे बने हुए हो और नई नई तरह की
बीमारियों के वायस बन रहे हो।
मच्छर : खून तो मेरी खुराक है।
मुन्नाभाई : खून आजकल के सत्ताधारी नेताओं की भी खुराक है। जबकि वे मच्छर नहीं
हैं। जबकि वे जनता के वोट चूसने के लिये प्रसिद्ध हैं।
मच्छर : मैंने देखा कि सरकार कसाब को फाँसी पर लटकाने में बे-वजह की टालमटोल कर रही
है इसलिये मैंने उसे काटने का फौरी कदम उठाया।
मुन्नाभाई : फौरी तो तुम ऐसे कह रहे हो, मानो बीते कल उसने वारदात की और अगले दिन
तुमने उसे काट लिया। कसाब तो जेल में रहकर खूब मौज ले रहा है।
मच्छर : मेरा काटा मौज ले ही नहीं सकता। उसे तो अपनी जान तक के लाले पड़ जाते हैं।
बुरी तरह से उसके खून के प्लेटलेट्स गिर जाते हैं।
मुन्नाभाई : लेकिन कसाब की गर्दन तो तुम्हारे काटने से भी नहीं कटी।
मच्छर : क्योंकि खबर बनाकर तुम्हारे भाइयों ने फिर से उसकी जान बचाने के लिये एड़ी
चोटी का जोर लगा दिया है।
मुन्नाभाई : इस सृष्टि पर भाई ही तो भाई का सगा दुश्मन है।
मच्छर : लेकिन मच्छर, मच्छर का दुश्मन नहीं, हितैषी होता है। काश, इंसान मच्छरों
से यह गुण सीख पाता। सामूहिक स्वर में मच्छर गान गाता।
मुन्नाभाई : सीखने के लिये जब बुराइयाँ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं तो कोई क्यों
अच्छाइयों और सच्चाईयों का बोरिंग पाठ पढ़े और सीखे।
मच्छर : मच्छर प्रजाति की लोकप्रियता में अभिनेता नाना पाटेकर के संवादात्मक
योगदान को कोई मच्छर कभी नहीं भूल सकता।
मुन्नाभाई : सो तो है उस पर तुर्रा यह भी है कि न तो किसी इंसान ने और न किसी
हिजड़े ने ही नाना पाटेकर के संवाद का विरोध किया।
मच्छर : वह दिन और आज का दिन है, हमारी रातें फिर गर्इ हैं और हमारे जलवे निराले
हैं, आजकल हम दिन में रक्त चूसने का शगल कर रहे हैं।
मुन्नाभाई : किस मुगालते में जी रहे हो तुम मच्छर महाशय। इंसान तुम्हारी प्रजाति
के खात्मे के लिये सदैव युद्धस्तर पर लगा रहेगा।
मच्छर : लेकिन हमें नष्ट करना, दुष्ट मानव के बस का नहीं है। अगर ऐसा होता तो आज
मैं जिंदा न होता।
मुन्नाभाई : इसका मतलब मच्छर और कसाब को किसी परिचय की जरूरत नहीं है। दोनों ही
अपने कारनामों के कारण बुरी तरह लोकप्रिय हैं।
मच्छर : अपनी अपनी किस्मत है।
मुन्नाभाई : क्या खाक किस्मत है, मेरा भी तो खूब नाम है। मेरे कारनामे सबको
मोहित करते हैं। तुम्हें भी किया है इसलिये तो तुम मुझसे चैटिंग करने फेसबुक पर
नमूदार हुए हो।
मच्छर : यह मैं स्वीकारता हूँ।
मुन्नाभाई : किंतु मूर्ख मच्छर, कसाब को तो किसी सामान्य मच्छर ने ही काटा था।
फिर उसे डेंगू कैसे हो सकता है ?
मच्छर : जानता हूँ, इस खबर को उड़ाने में भी किसी धूर्त नेता का ही हाथ है जो इस
खेल में भी घपला करके नोट कमाने में जुटा हुआ है।
मुन्नाभाई : तुम मच्छर हो या किसी खुफिया एजेंसी के एजेंट अथवा खुलासामैन की तर्ज
पर खुलासामच्छर?
मच्छर : जो चाहे मान लो। पर यह भी जान लो कि अभी तक मच्छरों के किसी गैंग ने इस
कारनामे की जिम्मेरदारी नहीं ली है। फिर भी उसके सुरक्षा बंदोबस्तों से इस मामले
में घोटालों का संदेह जरूर जाहिर हुआ है।
मुन्नाभाई : तुम्हें क्या लगा था कि कसाब के रक्त की जानलेवा चुसाई करने पर
तुम्हें देशभक्त मान लिया जाएगा अथवा किसी राष्ट्रीय उपाधि यथा पद्ममच्छरश्री,
पद्ममच्छरविभूषण, पद्ममच्छर रशिरोमणि इत्यादि से नवाजा जाएगा। जब आज तक शहीद
भगतसिंह तक को कई ऐरे गैरे स्वमयंभू संगठन शहीद और देशभक्त नहीं मानते हैं तो
तुम्हें कौन तवज्जो देगा ?
मच्छर : यह तो मैं भी जानता हूँ कि कसाब को जिंदा रखने के पीछे देशी-विदेशी
राजनीतिक सौदेबाजियाँ हैं। उसे जानबूझकर जिंदा रखा गया है। उसके जिंदा रखने से कई
मलाई कूट रहे हैं।
फिर भी एक आखरी कोशिश मैंने की है। क्या मच्छर जन जन और देशहित के अच्छे कार्य
करने की कोशिश नहीं कर सकते, आखिर वे भी इस देश की हवा में साँस लेते हैं। यहाँ की
जनता का रक्त चूसते हैं। उन्हीं से हमारी रोजी रोटी मतलब खून की प्यास बुझती है।
मुन्नाभाई : इस तथ्य से परिचित होने पर भी तुमने कसाब को मारने की जुर्रत की ?
मच्छर : मैं यह भी जानता हूँ कि किसी को भी मारना किसी भी राज्य की पुलिस के लिये
सबसे आसान कार्य है। वह किसी को भी निरपराध और मासूमों को मौत के घाट उतार सकती है।
फिर वह उस खूनी घाट के आसपास न तो दिखाई देगी और अगर दिखाई देगी तो कह देगी कि उसे
तो खून होता दिखाई नहीं दिया है। कई बार तो मरने वाले का अता पता ही नहीं मिलता और
पुलिस तो वहाँ से लापता हो जाती है। आप इसे अता पता लापता फिल्म की कहानी मत समझ
लीजिएगा।
मुन्नाभाई : अता पता लापता मतलब तुम फिल्मों के भी ग़ज़ब के शौकीन हो ?
मच्छर : फिल्म हाल के अँधेरे में भी हमें कई शिकार मिलते हैं। इस बहाने हम
फिल्में भी देख लेते हैं।
मुन्नाभाई : फिर तुमने सबसे सुरक्षित जेल में सेंध लगाकर शिकार ढूँढने की गुस्ताखी
क्यों की, जबकि इस शांतिप्रय देश में किसी अपराधी का जिंदा रहना कोई मुश्किल काम
नहीं है। तुमने कसाब को काटकर यों ही जान का जोखिम लिया है मच्छर। उसने वह
तुम्हारे चपत मारने में सफल हो गया होता तो शहीद हो गए होते और तुम्हारा कोई
नामलेवा भी नहीं मिलता। तुम्हारे इस कारनामे से न तो देशी और न ही विदेशी मच्छर
समुदाय का कोई भला होने वाला है।
मच्छर : लेकिन जो मैं जानता हूँ उसे तुम नहीं जानते मुन्नाभाई। शुद्ध पानी से जीवन
पाने वाले लोकप्रिय डेंगू मच्छर का जनता को डर दिखला दिखला कर नगर निगम के
कर्मचारी अवैध वसूली करने में इस हद तक लिप्तम हैं कि तुम्हें आश्चनर्य होगा ? निगम
इस बात के लिये कटिबद्ध है कि कहीं पर भी साफ पानी खुला नहीं दिखाई देना चाहिए, नहीं
तो हमें पनपने के लिये माहौल मिल जाता है। इस तथ्य की आड़ में निगम के जाँच दस्ते
किसी की भी रसोई भी घुस जाते हैं और जहाँ उन्हें पीने का साफ पानी अनढका मिल जाता
है, या किसी गिलास में पिए पानी की बची हुई एक बूँद भी दिखलाई दे जाती है तो वे
उसका चालान काटने के लिये कमर कस लेते हैं और कुछ दक्षिणा हासिल करके छोड़ देते हैं
निगम के कर्मचारी इस बहाने लोगों से अपनी पुरानी दुश्मनी का बदला भी ले रहे हैं।
उनकी इस ज्यादती की कहीं अपील भी नहीं सुनी जा रही है।
मुन्नाभाई : यह इस मुल्क की विडंबना है कि जिस कसाब को तुमने मारना चाहा सरकार ने
उसके चारों और डॉक्टरों की फौज तैनात कर दी। अब इसमें भी डॉक्टरों और दवाईयों के
लाखों के बिल एडजस्ट किए जाएँगे और घोटाला प्रधान भारत देश में घपले संपन्न होते
रहेंगे। अगर तुम आम आदमी को काटते रहो तो सरकार को इस बहाने घोटाले करने की आजादी
मिली रहेगी।
मच्छर : लेकिन मुझे कोई सम्मान ...
मुन्नाभाई : अगर तुम्हारे मन में सचमुच किसी राष्ट्रीय सम्मान को पाने की
आकांक्षा जोर मार रही है तो आम आदमी के हिमायती खुलासामैन को काट लो, तुम्हें
निश्चित तौर पर सम्मानित कर दिया जाएगा। इस सम्मान समारोह के लिये सरकार गणतंत्र
दिवस का इंतजार भी नहीं करेगी और दीपावली पर्व पर ही तुम्हें सम्मानित कर
आतिशबाजी चलाने को अपराध घोषित कर देगी। जिससे तुम्हारी मच्छर प्रजाति उस दिन
पटाखेबाजी से पैदा होने वाले धुएँ के असर से सुरक्षित रहे।
मच्छर : बात तो तुम्हारी दमदार है।
मुन्नाभाई : पिछले दिनों एक कानूनप्रिय मंत्री पर तुम्हारी खून चूसने की आदत का
असर देखा गया और उसने खुलासामैन को उसका लहू पी जाने का डर दिखलाकर डराने की पुरजोर
कोशिश की। मुझे नहीं लगता कि उस वारदात में तुम्हारा कोई संगी साथी अथवा नाते
रिश्तेझदार मंत्री के साथ मिला हुआ होगा। परंतु विश्वास न सही तुम्हारे ऊपर
मंत्री के साथ मिलीभगत का संदेह तो किया ही जा सकता है। तुमने कसाब को काटकर सबूत
मिटाने की धृष्टता की है जिसके लिये पड़ोसी देश चाहे तुम्हें शहीद का दर्जा दे दें
किंतु अपना देश तुम्हातरे इस कुकृत्य की निंदा ही करेगा।
मच्छर : ऐसा क्या ?
मुन्नाभाई : तुम जानते तो हो कि आम आदमी तुम्हें देखकर ताली भी बजाता है तो
तुम्हारा स्वागत करने के लिये नहीं, अपितु तुम्हें जान से मारने के लिये, चाहे तुम
यह सोचकर आनंदित होते रहो कि वह तुम्हारी इस कथित वीरता पर ताली बजाकर खुशी जाहिर
कर रहा है।
मच्छर : मैं सोच रहा था कि आतंकवादी के खून का स्वाद का जायका अलग होता होगा।
मैंने इसलिये भी यह रिस्क मोल लिया है।
मुन्नाभाई : मच्छर, यह तुम्हा री सोच नहीं, गलतफहमी है जिससे ग्रसित तुम अकेले ही
नहीं हो। आजकल गलतफहमियों का दौर है, तुम भी उसके शिकार हो गए हो तो इसके दोषी तुम
नहीं, आजकल मौसम ही ऐसा है। मुन्नाभाइयों को इस देश में हाशिए पर रख दिया गया है,
जिसके कारण देश की यह दुर्गति हुई है लेकिन हमारी बहुमूल्य सलाहों को मानता कौन है
? |