इस सप्ताह-
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अनुभूति
में-
बाल दिवस के अवसर पर नए पुराने अनेक रचनाकारों
की अनेक विधाओं में विभिन्न विषयों में बाल गीत एवं शिशुगीत रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- पर्वों के दिन शुरू हो गए हैं और दावतों की
तैयारियाँ भी। इस अवसर के लिये विशेष शृंखला में शुचि प्रस्तुत
कर रही हैं-
पनीर
जालफ्रेजी। |
बचपन की
आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में
संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु-
सैर चिड़ियाघर की।
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भारत के अमर शहीदों की गाथाएँ-
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रारंभ पाक्षिक शृंखला के अंतर्गत- इस अंक
में पढें सुभाषचंद्र बोस की अमर
कहानी। |
- रचना और मनोरंजन में |
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशालाओं के विषय में कृपया
प्रतीक्षा करें। अगली कार्यशाला की घोषणा ५ दिसंबर को की जाएगी।
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लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत-
प्रस्तुत है पुराने अंकों
से १ जुलाई २००३
को प्रकाशित
गज़ाल ज़ैगम की कहानी—"खुशबू"।
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वर्ग पहेली-१०८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
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सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य एवं
संस्कृति में-
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बालदिवस के अवसर पर भारत से विनायक
की कहानी
पीली बिल्ली
फिर आना
“माँ, शेर की
दुम क्या हमारी दुम से बड़ी होती हैं ?” “चुप कर! सो जा! बड़ा
दुम वाला आया हैं।” सियारिन ने बेटे को जोर की डाँट लगाईं।
पिछले एक घंटे से वह थपकी दे-देकर अपना सिर पीट रही है और यह
दुष्ट, सोना तो दूर, शेर की दुम की नाप-जोख में लगा है। एक
बच्चा हो, शैतान भी हो, तो भी गनीमत। लेकिन यहाँ तो सियारिन के
चार-चार नयनतारे हैं। दो तो माँद में ही बाप की अगल-बगल चिपके
सो रहे हैं, तीसरा माँ का स्तन मुँह में डाले चुलबुला भी रहा
है और सो भी रहा हैं। लेकिन इधर इस चौथे ने तो नाक में दम कर
रखा है। आधी रात को शेर की दुम के बारे में पूछ रहा हैं।
“अबकी बोला, तो दूँगी एक कंटाप ! कसकर !” माँ ने खोजी सिर को
फिर धमकाया। कुछ देर के लिए आतंकी सन्नाटा। लेकिन दो मिनट बाद
ही छोटा शृंगाल फिर हुआ बेचैन। कसमसाया, और फिर नन्हे बोल
फूटे- “माँ, नींद नहीं आ रही है।”
आगे-
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हास परिहास में मीरा
ठाकुर
के साथ- बच्चों के मुख से
*
अमिताभ शंकर राय चौधरी का दृष्टिकोण
भूत कथाएँ तथा बाल मनोविज्ञान
*
डॉ.चक्रधर नलिन से जानें
बाल साहित्य में नवलेखन
*
पुनर्पाठ में- अजय ब्रह्मात्मज का आलेख
बच्चों
का फिल्म संसार
* |
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पिछले-सप्ताह-
दीपावली विशेषांक में |
१
शेरसिंह की लघुकथा
भाई दूज
*
ओम निश्चल का निबंध
अँधेरे में एक दिया तो बालें
*
कुमार रवीन्द्र का चिंतन
तुलसी के राम की
मर्यादा और उनका राज्यादर्श
*
पुनर्पाठ में-
प्रेम जनमेजय की कलम से
त्रिनिडाड-की-जगमगाती-दीवाली-और-अकेलेपन...
*
साहित्य संगम के अंतर्गत अरुण मांडे की मराठी कहानी का हिंदी
रूपांतर-
ड्रैगन के अंडे
सुबह उठा। आज ऑफ़िस जाने की कोई जल्दी नहीं थी। एक माह की
छुट्टी ले ली थी। दीपावली अंकों के लिए विज्ञान-कथाएँ लिखनी
थीं। एक-दो कहानियाँ लिख कर भेज चुका था। शुरूआत तो अच्छी हुई
थी। परंतु कल ही एक कहानी वापस आ गई थी। संपादक महोदय को पसंद
न आने के कारण कोई दूसरी कहानी भेजने का आदेश दिया गया था।
वस्तुतः इतनी अच्छी कहानी वापस भेजने की वजह समझ में नहीं आई।
ठीक है। जैसे ’’बॉस इज़ ऑलवेज़ राइट‘‘, वैसे ही ’’संपादक इज़
ऑलवेज राइट!‘‘ कोई बात नहीं। दूसरी कहानी भेज देंगे। वापस आई
हुई कहानी कहीं और भेज देंगे। दूसरे संपादक को वह अधिक पसंद
आने की संभावना थी। ख़ैर! तो मैं स्नान आदि से मुक्त हो कर
प्रसन्नचित्त से कहानी लिखने बैठा। काग़ज़ निकाले रोटरिंग पेन
खोला। लेकिन कुछ सूझ नहीं रहा था। फिर एक अगरबत्ती जलाई। गणेश
की तस्वीर को प्रणाम किया।
आगे- |
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