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संजीव सलिल
की
लघुकथा- मोहन भोग
*
बीनू भटनागर का
आलेख-
राष्ट्रकवि की काव्य साधना
*
डॉ. उषा गोस्वामी की कलम से
संस्कृत भाषा और साहित्य का
महत्त्व
*
पुनर्पाठ में रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति का
संस्मरण- मनोहर श्याम जोशी
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समकालीन कहानियों में भारत से
पुष्पा सक्सेना की कहानी
अनाम रिश्ता
“ये पोटली
बाँध कर कहाँ चलीं, माँजी?”जस्सी के घर से बाहर जाने के उपक्रम
पर निम्मो बहू ने आवाज़ लगाई।
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“आज सरसों का साग पकाया था, भाई जी को बहुत अच्छा लगता है।
थोड़ा सा साग और चार मकई की रोटी ले जा रही हूँ।“ जस्सी ने धीमी
आवाज़ में कहा।
“बहुत सेवा कर ली भाई जी की, अच्छा हो उन्हीं के घर रहकर उनकी
पूरी देखभाल कर लीजिए।“
“ये क्या कह रही है, निम्मो, अपना घर छोड़ कर उनके घर जा कर
रहूँ? विस्मित जस्सी समझ नहीं पाई, निम्मो क्या कहना चाहती थी।
“ठीक ही तो कह रही हूँ, अपने बेटे के समझाने पर भी बात समझ में
नहीं आती। ये रोज़-रोज़ भाई जी के घर के चक्कर लगाने पर
मुहल्ले-पड़ोसी कितनी बातें बना रहे हैं। कुछ तो अपने बेटे की
इज्ज़त का ख्याल कीजिए। क्यों हमारी नाक कटाने पर तुली हैं?”
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