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“ये पोटली
बाँध कर कहाँ चलीं, माँजी?”जस्सी के घर से बाहर जाने के उपक्रम
पर निम्मो बहू ने आवाज़ लगाई।
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“आज सरसों का साग पकाया था, भाई जी को बहुत अच्छा लगता है।
थोड़ा सा साग और चार मकई की रोटी ले जा रही हूँ।“ जस्सी ने धीमी
आवाज़ में कहा।
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“बहुत सेवा कर ली भाई जी की, अच्छा हो उन्हीं के घर रहकर उनकी
पूरी देखभाल कर लीजिए।“
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“ये क्या कह रही है, निम्मो, अपना घर छोड़ कर उनके घर जा कर
रहूँ? विस्मित जस्सी समझ नहीं पाई, निम्मो क्या कहना चाहती थी।
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“ठीक ही तो कह रही हूँ, अपने बेटे के समझाने पर भी बात समझ में
नहीं आती। ये रोज़-रोज़ भाई जी के घर के चक्कर लगाने पर
मुहल्ले-पड़ोसी कितनी बातें बना रहे हैं। कुछ तो अपने बेटे की
इज्ज़त का ख्याल कीजिए। क्यों हमारी नाक कटाने पर तुली हैं?”
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“किन मुहल्ले वालों की बात कर रही है, निम्मो? मेहर की मौत के
बाद कहाँ थे ये मुहल्ले वाले? अकेली जान को अगर भाई जी और
अमिया ने सहारा न दिया होता तो मेरे साथ दो नन्हे बच्चों को
मेरी विधवा माँ क्या सम्हाल पाती?” |