खुदाबख्श बहुत ही चिन्तित था।
अचानक यह क्या हो गया? बड़े मजे की जिन्दगी चल रही थी। आज तक
किसी ने उसकी ओर ऊँगली तक नहीं उठाई थी। अब अचानक क्या हो गया?
क्यों हो गया? सोच सोच कर वह परेशान था। उसके विचारों के तार
इस एक क्यों पर आ कर अटक जाते और वह अपने हाथ में पकड़े आदेश
पत्र को फिर से देखने लगता । उसमें साफ साफ उसके तबादले के
बारे में लिखा था। उसे यहाँ से बदल कर किसी बड़े रेलवे स्टेशन
पर भेजा जा रहा था। उसके स्थान पर कोई और होता तो प्रसन्नता से
नाच उठता।
खुदाबख्श केबिन मैन के
रूप में पिछले दस सालों से यहीं टिका हुआ था। यह रेलवे
क्रासिंग शहर के पास ही पड़ता था। शहर से राज मार्ग तक आने जाने
का यह एक मात्र रास्ता था। मुख्य रेल लाइन पर होने के कारण दिन
भर यहाँ से रेलगाड़ियाँ आती जाती रहतीं थीं। उसका पूरा दिन रेल
लाइन के बैरियर को उठाने गिराने में व्यतीत होता था। केबिन के
पास ही उसने फालतू पड़ी जमीन पर दो कच्चे कमरे बना लिए थे। उसके
साथ वाली जमीन पर पीर साहब की एक मजार सजा ली थी। सुबह शाम वह
नियमित रूप से वहाँ की साफ सफाई करके अगरबतियाँ जला देता था।
रेलवे क्रासिंग के आस पास जिस प्रकार की गंदगी और बदबू होती है
उसका वहाँ नामो निशान तक नहीं था। उसने मजार के आस पास की भूमि
पर सुगन्धित फूलों और साग सब्जी का एक बगीचा बना लिया था।
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