इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
त्रिलोक सिंह ठकुरेला,
धर्मेन्द्र कुमार सिंह सज्जन, अशोक भाटिया, योगेन्द्र शर्मा
अरुण और ब्रजेश कुमार शुक्ल की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- दाल हम रोज खाते हैं, पर कुछ नया हो तो क्या
कहने? प्रस्तुत है १२
व्यंजनों की स्वादिष्ट शृंखला में-
दाल पँचरतन। |
बचपन की
आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में
संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु-
अंतर्मुखी शिशु को प्रोत्साहन।
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बागबानी में-
फुहारे या बूँदें- अगर अपने
बगीचे में स्प्रिंकलर सिस्टम लगवाने जा रहे हैं तो एक बार फिर
से सोचें। बूँद पद्धति, फुहार पद्धिति से श्रेष्ठ है... |
वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की
जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से-
१६ अप्रैल से ३०
अप्रैल २०१२ तक का भविष्यफल।
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- रचना और मनोरंजन में |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला-२१ में हरसिंगार के फूल पर
आधारित नवगीतों का प्रकाशन पूरा हो चुका है। जल्दी ही इसकी
समीक्षा प्रकाशित होगी। |
साहित्य समाचार में-
देश-विदेश से
साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों,
सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें |
लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत-
प्रस्तुत है- १६ जनवरी २००४ को
प्रकाशित,
भारत से
सूरज प्रकाश की कहानी—
यह जादू नहीं
टूटना चाहिये।
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वर्ग पहेली-०७८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
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सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
१
समकालीन कहानियों में
भारत से
सुमति सक्सेना लाल
की
कहानी-
किस रास्ते
पर
आज सुबह दस बजे से कमरे में खटपट चल रही है। खिड़की की आधी
ग्रिल काट कर के ए.सी. लगाने के लिए जगह बनाई जा रही है।
मिस्टर चौधरी के दिमाग में झल्लाहट भरी है। झुँझलाहट सिर्फ
खटपट से ही थोड़ी है...उसके लिए तो बहुत से कारण हैं आजकल उनके
मन में। वे मन ही मन बड़बड़ाए थे...ये लड़के...सरकारी नौकरी
करेंगे और रहना चाहेंगे उद्योगपति के तरीके से। अंजना को लगा
था कि वे ए.सी. के ख़िलाफ हैं, उस ने उन्हें मनाते हुए समझाया
था ‘‘पापा गर्मी बहुत हो गयी है...माँ की तबियत कितनी ज़्यादा
तो ख़राब है। उन्हें पूरा आराम चाहिए...और उनके लिए यही कमरा
सही है...घर के एक किनारे पर बना हुआ है सो चौके, बच्चे, आने
जाने वाले सबके शोर से दूर रहतीं हैं...फिर बगल में ही पूजा
है...कुछ नही तो अपने पलंग पर ही बैठ कर भगवान जी को हाथ जोड़
लेतीं हैं। उन्होंने अंजना को ध्यान से देखा था...मन में अजब
सी ममता उमड़ी थी उसके लिए।
विस्तार
से पढ़ें...
*
जवाहर चौधरी का व्यंग्य
पधारो जी म्हारा देस
*
शीला इंद्र का संस्मरण
कैसी औरते थीं वे
*
देवर्षि कलानाथ शास्त्री का निबंध
ललित निबन्धों के
पुरोधा डॉ. विद्यानिवास मिश्र
*
पुनर्पाठ में प्रभात कुमार से जानें-
आसमान में
चित्रकारी-ऑरोरा बोरियोलिस |
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पिछले सप्ताह-
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१
सुमन गिरि का प्रेरक प्रसंग
काँच की बरनी और दो
प्याले चाय
*
रचना प्रसंग में विजय कुमार से जानें
क्या कविता का अनुवाद संभव
है
*
आज सिरहाने इला प्रसाद का
कहानी संग्रह- उस स्त्री
का नाम
*
पुनर्पाठ में देखें-
कोहिनूर का घर गोलकुंडा
*
समकालीन कहानियों में भारत से
पावन
की कहानी-
फेसबुक मित्र
दिल्ली एयरपोर्ट। सुबह आठ बजकर
पचास मिनट।
मैं ठीक समय पर पहुँच गया था। एयरपोर्ट के डिपार्चर लाउन्ज में
खड़ा उसे आसपास तलाश कर रहा था। मुझे विश्वास था कि मैं उसे
पहचान जाऊंगा। मैंने उसे कभी नहीं देखा था सिर्फ फेसबुक में
लगी तस्वीर देखी थी। जब वह कहीं नहीं दिखाई दी तो मैंने मोबाइल
फोन पर उसका नम्बर मिलाया। दूसरी तरफ तुरन्त घण्टी बजी मानों
उसका मोबाइल मेरे ही नम्बर की प्रतीक्षा कर रहा हो।
‘हैलो?’ उसका परेशान और व्याकुल स्वर मेरे कानों में पड़ा।
‘क्या आप अभी पहुँची
नहीं? मैं आ चुका हूँ।’ मैंने हिचकते हुए धीमे स्वर में कहा।
‘मैं रास्ते में हूँ। ड्राइवर बता रहा था कि बस पहुँचने ही
वाले हैं।’
‘ठीक है।’ मैंने कहा और फोन काट दिया।
एकाएक मुझे कुछ याद आया।
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