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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से सुमति सक्सेना लाल की कहानी— किस रास्ते पर


आज सुबह दस बजे से कमरे में खटपट चल रही है। खिड़की की आधी ग्रिल काट कर के ए.सी. लगाने के लिए जगह बनाई जा रही है। मिस्टर चौधरी के दिमाग में झल्लाहट भरी है। झुँझलाहट सिर्फ खटपट से ही थोड़ी है...उसके लिए तो बहुत से कारण हैं आजकल उनके मन में। वे मन ही मन बड़बड़ाए थे...ये लड़के...सरकारी नौकरी करेंगे और रहना चाहेंगे उद्योगपति के तरीके से। अंजना को लगा था कि वे ए.सी. के ख़िलाफ हैं, उस ने उन्हें मनाते हुए समझाया था ‘‘पापा गर्मी बहुत हो गयी है...माँ की तबियत कितनी ज़्यादा तो ख़राब है। उन्हें पूरा आराम चाहिए...और उनके लिए यही कमरा सही है...घर के एक किनारे पर बना हुआ है सो चौके, बच्चे, आने जाने वाले सबके शोर से दूर रहतीं हैं...फिर बगल में ही पूजा है...कुछ नही तो अपने पलंग पर ही बैठ कर भगवान जी को हाथ जोड़ लेतीं हैं।

उन्होंने अंजना को ध्यान से देखा था...मन में अजब सी ममता उमड़ी थी उसके लिए। कितने शांत भाव से...बिना किसी लंबे चौड़े प्रदर्शन के गीता का ख़्याल रखती है...उनका भी। ‘बहुत अच्छी लड़की है’ वह सोचते हैं...मन आता है उससे भी कहें यह बात या कुछ ऐसा ही...पर एक संकोच में बँधे चुप रह जाते हैं। इतना मीठा बोल पाना सरल है क्या उनके लिए? अब अंजना उनसे इतनी बात तो करती है, नही तो वह तो उनके सामने प्रायः चुप ही रहती थी। अब जब से अजय के यहाँ आकर लग कर रहना शुरू हुआ है तब से लग रहा है जान पा रहे हैं।

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