इस सप्ताह- |
1
अनुभूति
में-
रमाकांत, नवीन चतुर्वेदी,
सुबोध श्रीवास्तव, डॉ. चंद्रशेखर जोशी,
और कमल आशिक की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- सर्दियों के मौसम
में पराठों के क्या कहने-! १५ व्यंजनों
की स्वादिष्ट शृंखला में इस सप्ताह प्रस्तुत हैं-
दाल का पराठा।
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बचपन की
आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में
संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से-
शिशु का ५०वाँ सप्ताह। |
स्वास्थ्य सुझाव- आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका
मिश्रा के औषधालय से-
अरुचि के लिये
मुनक्का हरड़ और चीनी। |
वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की
जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से-
१६ दिसंबर से
३१ दिसंबर
२०११ तक का भविष्यफल। |
- रचना और मनोरंजन में |
कंप्यूटर की कक्षा में-
यू-ट्यूब पर प्रदर्शित वीडियो की गुणवत्ता कम ज्यादा कर के हम उसके
लोड होने का समय भी कम ज्यादा कर सकते हैं।...
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नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला-१९, में १ दिसंबर
से नई रचनाओं के प्रकाशन का क्रम निरंतर जारी है, रचनाएँ
अभी भी भेजी जा सकती हैं। |
लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- अभिव्यक्ति के पुराने अंकों में से
प्रस्तुत
है- १ अक्तूबर २००२
को प्रकाशित दीपिका जोशी संध्या की कहानी—सदाफूली।
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वर्ग पहेली-०५९
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
|
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
1
समकालीन कहानियों में भारत से
मनमोहन सरल की कहानी-
जमी हुई झील
हमारी कैब को
चेक पोस्ट पर रोक दिया गया। मैंने तो समझा था कि यह महज
औपचारिकता भर होगी। पासपोर्ट, विसा वगैरह जाँच कर जाने दिया
जायेगा। सिक्योरिटी पर बेहद लम्बी और बेहद स्मार्ट औरत थी।
उसने मेरा पासपोर्ट तो तुरंत लौटा दिया पर कैट का पासपोर्ट
अपनी कठोर मुट्ठी में दबा कर उसे कार से उतरने को कहा। कैट,
यानी कैथरीन, के पासपोर्ट में तकनीकी आपत्ति थी। वह डाइवोर्सी
थी और पासपोर्ट में अभी तक उसके पूर्व पति का नाम काटा नहीं
गया था। पूर्व पति अमेरिकी था पर साथ में मुझे देख कर उस ऑफिसर
ने मान लिया था कि मैं कैट का पति हूँ। उस जिद्दी ऑफिसर को यह
समझाने में हमें काफी मशक्कत करनी पडी़ कि हम दोनों का रिश्ता
क्या है। पर आखीर में वह समझ गई और हम दोनों पर शरारती मुस्कान
फेंक कर बोली, 'ओके, एनज्वाय योरसेल्फ!' वहाँ से चलने के बाद
और होटल के रास्ते तक मैं उसके इस वाक्य का प्रयोजन समझने की
कोशिश करता रहा।
विस्तार
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*
शरद तैलंग की लघुकथा
कंबल
*
विजय कुमार से सामयिकी में
शिक्षा वहाँ राजनीति यहाँ
*
इंदिरा गोस्वामी की लेखनी से
मैं और मेरा लेखन
*
पुनर्पाठ में- पर्यटक के साथ देखें
स्पानी स्थापत्य का सौंदर्य मैड्रिड |
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पिछले सप्ताह- |
1
कृष्णकुमार अग्रवाल
का व्यंग्य- इस हमाम में
*
कुमार रवीन्द्र का निबंध
अज्ञेय की असाध्य वीणा
*
डॉ. परमानंद पांचाल का दृष्टिकोण
हिंदी-को-संविधान-की-आठवीं-अनुसूची-से-...
*
पुनर्पाठ में-
नवगीतकार कैलाश गौतम
*
समकालीन कहानियों में
यू.के. से
महेन्द्र दवेसर दीपक की कहानी-
शारदा
वह
लक्षमण-रेखा लाँघ आई है और छोड़ आई है वे कन्धे जिनपर उसकी
अर्थी निकलनी थी। साथ में छोड़ आई है कॉफ़ी टेबल पर खुला पत्र और
घर की चाबियाँ। लैच लॉक वाला दरवाज़ा अब बंद हो चुका है। अब
पीछे मुड़कर देखना नहीं हो सकेगा। अपने पत्र में उसने लिखा –
“प्रिय रजत, प्रभा, मैंने पाप सोचा। तुमने उसे पूरा किया। मेरी
सोच दंडनीय हो गयी। तुम्हारा पाप हो गया पुण्य-स्वरूप! यदि यही
विधाता का न्याय है तो मुझे स्वीकार है क्योंकि मैं स्वयं अपनी
मौत के षडयंत्र की भागीदार हूँ। तुम मुझे पूरी तरह भूल सको
इसलिए मैं अपनी हर निशानी – शादी का एल्बम, विडियो रिकॉर्डिंग
और दूसरे फ़ोटोग्राफ़ साथ लिए जा रही हूँ। तुम लोग सुख वैभव में
जियो मेरे सच्चे मन से यही प्रार्थना है। छोटे रिंकु को मौसी
का प्यार देना। सस्नेह, तुम्हारी, शारदा”। घर के बाहर टैक्सी
खड़ी थी। उसने पिछली सीट पर अपने को फेंका और ड्राइवर से कहा...
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