बहुत
सम्पन्न पुरूष थे ज्ञानदेव जी लेकिन उतने ही दयालु प्रकृति
के भी। गरीबों का दुःख दर्द समझने वाले तथा उनके प्रति
सहानुभूति रखने वाले बहुत ही सज्जन व्यक्ति।
अर्धरात्रि का समय था कडाके की सर्दी पड़ रही थी। एक फुटपाथ
के किनारे उनकी गाडी आकर खडी हो गई। फुटपाथ पर कुछ अत्यन्त
गरीब लोग फटे पुराने कपडों को ओढ कर ठण्ड से बचने का
प्रयास करते हुए सो रहे थे। ज्ञानदेव जी ने गाडी में से
कुछ कम्बल निकाले तथा वे उन लोगों को एक एक कर ओढाने लगे।
जैसे ही वे इस पुण्य कार्य को समाप्त कर के जाने लगे
उन्हें फुटपाथ के एक कोने से एक अत्यन्त वृद्ध व्यक्ति
उनकी ओर आता दिखाई दिया। अपने पास आखिरी बचे कम्बल को उस
वृद्ध को दे कर वे चले गए। वृद्ध व्यक्ति उनको भरपूर दुआएं
देता रहा।
दूसरे दिन सुबह होते ही उनके नौकर ने उन्हे सूचना दी कि एक
वृद्ध व्यक्ति उनसे मिलना चाहता है। बाहर आकर उन्होंने
देखा कि रात्रि में जिस व्यक्ति को वे कम्बल दे कर आए थे
वही खडा था। उनको देखते ही वृद्ध व्यक्ति कम्बल उनके पैरों
में रख कर कहने लगा : ‘साहब आप अपना यह कम्बल वापस ले
लीजिए। इस के कारण मैं और मेरी बुढ़िया रात भर सो नहीं
पाए’। ज्ञानदेव जी ने आश्चर्य से पूछा : क्यों मैं कुछ
समझा नहीं।
वृद्ध बोला “रात भर मेरी बुढिया कम्बल मुझे ओढाती रही कहती
रही तुम्हें इसकी ज्यादा आवश्यकता है और मैं उसे क्योंकि
उसे बुखार था। बस यही चलता रहा। इसी बात पर हम झगड़ते रहे।
सारे फसाद की जड़ यह एक कम्बल ही था। यदि यह नहीं होगा तो
हम पहले की तरह ही प्रेम से रहते रहेंगे’। यह कह कर वह
वापस जाने लगा।
ज्ञानदेव जी ने उसको रोक कर अपने नौकर से धीरे से कुछ कहा।
थोडी देर में जब नौकर वापस आया तो उसके हाथ में एक कम्बल
और था।
१२ दिसंबर २०११ |