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१. ११. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
राधेश्याम बंधु, जयप्रकाश मिश्र, अर्पण क्रिस्टी, प्रभु दयाल और दिनेश कुशवाह की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- सर्दियों के मौसम में पराठों के क्या कहने-! १५ व्यंजनों की स्वादिष्ट शृंखला में इस सप्ताह प्रस्तुत हैं- मटर-मक्का पराठा।

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- शिशु का ४७वाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- बैठे हुए गले के लिये मुलेठी का चूर्ण

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १६ नवंबर से ३० नवंबर २०११ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- Ctrl कुंजी के साथ + और - दबाने से किसी भी जालपृष्ठ के आकार (चित्र और अक्षर दोनों) को क्रमशः बड़ा या छोटा...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-१९, के लिये नए विषय की घोषणा हो गई है। रचना भेजने की अंतिम तिथि है ३० नवंबर। 

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- अभिव्यक्ति के पुराने अंकों में से प्रस्तुत है- २४ जुलाई २००४ को प्रकाशित शैल अग्रवाल की कहानी— अनोखी रात

वर्ग पहेली-०५६
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

1
उपन्यास अंश में भारत से प्रदीप सौरभ के उपन्यास
'देश भीतर देश' का एक अंश- 'मुखौटे और सवाल'

वह है, था, रहेगा, उसकी जिंदगी के तीन चेहरे ही मैं देख पाया। वैसे लगता है कि उसके हर चेहरे पर कई-कई मुखौटे मौजूद हैं। उसकी जीवन यात्रा तो पचास साल पहले शुरू हुई थी। मैंने उसे उसकी युवा अवस्था में देखा था। लगभग तीन दशकों की उसकी यात्रा का मैं साक्षी रहा हूँ। इस दौरान उसने मुखौटे पर मुखौटे चढाए। सवाल है कि आखिर एक इंसान के चेहरे पर कितने मुखौटे होते हैं? और इंसान इन्हें लगाने के लिए क्यों मजबूर हो जाता है? नई दिल्ली रेलवे स्टेशन। प्लैटफार्म नम्बर पर सात पर खास तरह के यात्री थे। अपनी शक्ल सूरत और वेशभूषा के चलते वे सबका ध्यान खींच रहे थे। इसी प्लैटफार्म पर गुवाहाटी की ओर जाने वाली ब्रम्हपुत्र एक्सप्रेस खड़ी थी। यात्री अपनी बोली-भाषा में बतिया रहे थे। आसपास खडे यात्रियों को उनकी बातचीत समझ नहीं आ रही थी। कुछ चुहलबाज उन्हें चिंकी बता रहे थे, कुछ नेपाली, कुछ बर्मी, तो कुछ मंगोलियन। अपनी अज्ञानता के साथ आसपास खड़े ये यात्री उनकी पहचान तय करने में लगे थे। विस्तार से पढ़ें...

मनोहर पुरी का व्यंग्य
गरीबों की संसद
*

श्रीश बेंजवाल का आलेख
कंप्यूटिंग के पितामह डेनिस रिची

*

राम गुप्त से सुनें
बाबर की कहानी नानक की जुबानी
*

पुनर्पाठ में नीरजा द्विवेदी का
संस्मरण- वह कौन थी

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पिछले सप्ताह-

1
आकांक्षा यादव की
लघुकथा- बच्चा
*

आज सिरहाने- नरेन्द्र कोहली की बाल कथाएँ
हम सबका घर तथा अन्य कहानियाँ

*

डॉ. श्रीप्रसाद का दृष्टिकोण
बच्चे पसंद करते हैं शिशुगीत
*

पुनर्पाठ में डॉ. जगदीश व्योम का आलेख
बाल साहित्य का केन्द्र लोक साहित्य

*

समकालीन कहानियों में
भारत से शीला इंद्र की कहानी- मेरा पूरा नाम?

आज सुबह से मीना की आँखों में बार-बार आँसू भर आते हैं। रह-रह कर उसे वह दिन याद आ रहा है जब वह पहली बार स्कूल गई थी। कितना उत्साह, कितनी प्रसन्नता थी उसे स्कूल जाने में। नए-नए कपड़े, नई-नई पुस्तकें और नया-नया शानदार बस्ता! सब कुछ उसे अपनी गुड़िया से भी अधिक प्यारा लग रहा था। उसके साथ उसके माँ और पापा भी कितने प्रसन्न थे। बार-बार उसे कितनी बातें प्यार से समझाते। स्कूल में कैसे बात करना, अध्यापिकाओं और लड़कियों से कैसा व्यवहार करना, मेहनत से पढ़ना और ध्यान से सुनना, बार बार न जाने कितनी बातें! उसे ऐसी अच्छी तरह याद है जैसे कल की ही बात हो। उसकी माँ बार-बार बड़े उत्साह से उसके पापा से कहतीं- ‘देखो, मीना के स्कूल में सब बड़े-बड़े आदमियों के बच्चे पढ़ते हैं, उसके लिए भी बढ़िया-बढ़िया कपड़े लाना! आज वे सब बातें याद करके उसे विस्तार से पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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