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आज सुबह से
मीना की आँखों में बार-बार आँसू भर आते हैं। रह-रह कर उसे वह
दिन याद आ रहा है जब वह पहली बार स्कूल गई थी। कितना उत्साह,
कितनी प्रसन्नता थी उसे स्कूल जाने में। नए-नए कपड़े, नई-नई
पुस्तकें और नया-नया शानदार बस्ता! सब कुछ उसे अपनी गुड़िया से
भी अधिक प्यारा लग रहा था।
उसके साथ उसके माँ और पापा भी कितने प्रसन्न थे। बार-बार उसे
कितनी बातें प्यार से समझाते। स्कूल में कैसे बात करना,
अध्यापिकाओं और लड़कियों से कैसा व्यवहार करना, मेहनत से पढ़ना
और ध्यान से सुनना, बार बार न जाने कितनी बातें! उसे ऐसी अच्छी
तरह याद है जैसे कल की ही बात हो। उसकी माँ बार-बार बड़े उत्साह
से उसके पापा से कहतीं-
‘देखो, मीना के स्कूल में सब बड़े-बड़े आदमियों के बच्चे पढ़ते
हैं, उसके लिए भी बढ़िया-बढ़िया कपड़े लाना!
आज वे सब बातें याद करके उसे वैसी गुदगुदी नहीं होती, जैसी कि
बचपन की बातें याद करके होती है। आज तो उसकी आँखें भर-भर आतीं
हैं। कैसा अचरज है, आज उसी का प्यारा इकलौता बच्चा स्कूल जा
रहा था, पर उसे कहीं कोई उत्साह या उमंग अपने अंदर नहीं लगती,
बल्कि एक अज्ञात भय से वह काँप रही है। न जाने कैसी बुरी-बुरी
कल्पनाओं से उसका मन बेचैन है।
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