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११. १०. २०१०

सप्ताह का विचार- विश्व की सर्वश्रेष्ठ कला, संगीत व साहित्य में भी कमियाँ देखी जा सकती है लेकिन उनके यश और सौंदर्य का आनंद लेना श्रेयस्कर है।

अनुभूति में-
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प्रवीण पंडित, आदिल रशीद, नरेश अग्रवाल, प्रभुदयाल और सुनीतिकुमार मिश्र की रचनाएँ।

सामयिकी में- "हिंदी में अँग्रेजी शब्दों की भरमार एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।" इस अवधारणा के पीछे छिपे रहस्यों को उजगार करता अनिल त्रिवेदी का आलेख...

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव- मेथी की पत्तियों का लेप बनाकर चेहरे पर लगाने से कील मुँहासे और झाँई दूर हो जाते हैं।

पुनर्पाठ में- १ मार्च २००२ को प्रकाशित सूर्यबाला का संस्मरण- एक छोटी यात्रा एक नन्हीं सहयात्री।

क्या आप जानते हैं? १०वीं शती में चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित खजुराहो मंदिर १५वीं शती तक वीरान हो चुके थे इन्हें १८वीं शती में फिर से खोजा गया।

शुक्रवार चौपाल- जब भी कभी किसी नाटक का मंचन होता है आमतौर से उसके बाद वाले शुक्रवार को चौपाल की छुट्टी रहती है। ... आगे पढ़ें...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- १० की वर्षा से संबंधित रचनाओं का प्रकाशन अभी लगभग एक सप्ताह और जारी रहेगा। आगे पढ़ें...


हास परिहास


सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में यू.एस.ए से
प्रतिभा सक्सेना की कहानी स्वीकारोक्ति

ट्रेन का सफ़र कभी-कभी बड़ा यादगार बन जाता है। मुझे बहुत यात्राएँ करनी पड़ी हैं और अधिकतर अकेले ही। पति अधिकतर टूर पर और फिर उन्हें इतनी छुट्टी भी कहाँ। उस दिन भी विषय-विशेषज्ञ बन कर एक मीटिंग में जा रही थी। पहले ही पता कर लिया था जिस कूपे में मेरा रिज़र्वेशन है उसमें एक महिला और हैं। मुझे सी ऑफ़ कर ये चले गए। वे महिला समवयस्का निकलीं। चलो, अच्छी कट जाएगी!
बातें शुरू -
'आप कहाँ जा रही हैं।'
'इंदौर, और आप?'
'हमें तो उज्जैन तक जाना है, आप भी अकेली हैं?'
'हाँ अकेली ही, अक्सर जाना-आना पड़ा है, आदत-सी हो गई है।'
'हमारी भाभी बीमार हैं सो अचानक चल दिए आप तो इन्दौर रहती हैं शायद। पूरी कहानी पढ़ें...
*

रामवृक्ष सिंह का व्यंग्य
आक्टोपस बाबा पधारो म्हारे देस
*

गौतम सचदेव का ललित निबंध
बिल्ली और छींका
*

डॉ. शिवकुमार माथुर का आलेख
मालवा का लोक नाट्य- माच
*

विजयदशमी के अवसर पर विशेष-
मैसूर का दशहरा

पिछले सप्ताह
 

शरद तैलंग का व्यंग्य
झूठे का बोलबाला
*

सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक का संस्मरण
छोड़ गए नंदन जी हमको
*

पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे से जानें
नवदुर्गा के औषधि रूप
*

गृहलक्ष्मी के साथ बिताएँ
स्फूर्तिदायक सुबह

*

समकालीन कहानियों में यू.एस.ए से
उत्कर्ष राय की कहानी श्यामली

श्यामली ने काँपते हाथों से अँगूठी को उठा लिया उस पर जड़ा छोटा सा हीरा, अपनी चमक से अंधेरे कोने को दमका रहा था। श्यामली बार बार अँगूठी को देखे जा रही थी। पता नहीं कब बीते हुए दिनों की याद चल चित्र के समान आँखों के आगे उतरने लगी।
“मैडम मैडम क्या आज मुख्य अतिथि को फूल देने के लिये मैं चुनी जाऊँगी?” श्यामली ने अपनी कक्षाध्यापिका से पूछा था
“अरे नहीं, मैंने दीपिका को चुना है।“ कक्षाध्यापिका ने प्यार से श्यामली को गाल पर थपकी देते हुए कहा।
“पर दीपिका तो पहले भी फूल दे चुकी है।“
“तुम अभी नहीं समझोगी, गोरे गोलमटोल बच्चे अधिक प्यारे लगते है न।“ शायद कक्षाध्यापिका की कही बात ही सबसे पुरानी होगी। पूरी कहानी पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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