छोड़ गए नंदन जी
हमको
--सुरेशचंद्र
शुक्ल शरद आलोक
(विश्व हिंदी
सम्मलेन के एक चित्र में बाएँ से अशोक चक्रधर, शरद आलोक, शेर
बहादुर सिंह, शमशेर अहमद खान, प्रो कालीचरण स्नेही और कन्हैया
लाल नंदन)
७७ वर्ष की
आयु में आज दिल्ली में हमारे प्रिय मित्र साथी अपने परिवार में
दो बेटियों पत्नी और सभी हिंदी प्रेमियों को सदा के लिए छोड़कर
चले गए। दिनमान, सारिका, नवभारत टाइम्स, सन्डे मेल , बहुत सी
पत्र पत्रिकाओं के सलाहकार, अतिथि संपादक और अनेकों देश -
विदेश की संस्थाओं के पदाधिकारी आदर्श लेखक, संवेदनशील कवि और
पत्रकार कन्हैया लाल नंदन के जाने से हिंदी जगत को बहुत धक्का
लगा है। उनके जैसा दूसरा हिंदी में लेखक नहीं है, वह अपने आप
में अनोखे थे।
अभी परसों यानि २२ सितम्बर को अपने लेखक मित्र और चंडीगढ़,
पंजाब से निकलने वाली पत्रिका 'प्रथम इम्पैक्ट' के
राजनीति-संपादक कृपाशंकर जी के साथ अंसारी रोड दरिया गंज में
टहल रहा था। मैं भी ' प्रथम इम्पैक्ट' पाक्षिक पत्रिका में
विशेष संवाददाता हूँ। कृपाशंकर जी ने बताया और कहा कि वह देखो
पहले यहाँ 'सारिका' और 'दिनमान' पत्रिका का कार्यालय हुआ करता
था। तो मैंने उन्हें बताया कि यहाँ मैं सन १९८५ में कन्हैया
लाल नंदन से मिलने आया था। और १९८६ में यहाँ पर ही सारिका के
संपादक अवध नारायण मुदगल से मिलने आया था। मुदगल जी के साथ-साथ
आगरा में कैंट होटल में एक साथ ठहरा था और एक बार मेरा और
मुदगल जी का लखनऊ में 'नवभारत टाइम्स' में साक्षात्कार भी लिया
गया था। पता चला कि मुदगल जी भी आजकल बीमार चल रहे हैं।
नंदन जी से मेरा परिचय पुराना है। पर उनसे मेरे सम्बन्ध लन्दन
में होने वाले छठे विश्व हिंदी सम्मलेन से अधिक घनिष्ट हुए।
अक्सर मेरी बातचीत यानि तीन या छ महीने में एक बार हुआ करती थी
वह भी फोन पर। इसी वर्ष मेरी उनसे अंतिम बातचीत उनके लन्दन में
एक साहित्यिक कार्यक्रम के आगमन पर हुई थी। वह कहते थे कि
प्रवासी लेखकों को भी सम्मान मिले। इसपर उन्होंने मुझसे भी
बातचीत की थी। लन्दन में डॉ सत्येन्द्र श्रीवास्तव उनके अच्छे
मित्रों में थे।
एक वाक्या मुझे छठे विश्व हिंदी सम्मलेन का स्मरण आ रहा है।
उद्घाटन सत्र था। जिसमें विद्या निवास मिश्र, दैनिक जागरण के
मेरे मित्र नरेन्द्र मोहन, विदेश राज्य मंत्री विजय राजे
सिंधिया, डॉ लक्ष्मी मल सिंघवी, प्रकाशक विजय प्रकाश बेरी,
नामवर सिंह, रुपर्ट स्नेल, डॉ विद्याविन्दु सिंह, राजेंद्र
अवस्थी और बहुत से हिंदी सेवी और विद्वान मौजूद थे। यह एक बहुत
अच्छा विश्व हिंदी सम्मलेन था। उद्घाटन सत्र में फोटो खीचना
माना था क्योंकि फोटो खीचने से आग लगने का अलार्म बोलने का
खतरा था। ऐसा बताया गया था। मैंने और अन्य लोगों ने फोटो खीचना
जारी रक्खा । कार्यक्रम का संचालन मेरे अग्रज मित्र प्रो
महेंद्र के वर्मा कर रहे थे।
मंच और फोटो खीचने वालों में संवाद शुरू हो गया। नंदन जी मेरे
पीछे वाली सीट पर बैठे थे। उन्होंने कहा सुरेश जी आप इस
सम्मलेन के अंतर्राष्ट्रीय समिति के सदस्य हैं और आपही जब
संवाद करेंगे तो क्या असर पड़ेगा।
आयोजक समिति के लन्दन के पदाधिकारियों पर इसका क्या प्रभाव
पड़ेगा। मुझे उनकी बात एक बार में समझ में आ गयी। तब मैंने भी
औरों को भी फोटो खीचने के सम्बन्ध में संवाद करने से मना किया
और शान्ति की स्थापना हुई। नंदन जी ने धन्यवाद दिया। इस विश्व
हिंदी सम्मलेन में मुझे एक सत्र की अध्यक्षता, एक की
सह-अध्यक्षता और एक का सह-संचालन करने का अवसर मिला था।
नरेन्द्र मोहन और सिंघवी जी कि कृपा से मेरे काव्यसंग्रह का
लोकार्पण भारतीय हाई कमीशन में विजय राजे सिंधिया के द्वारा
हुआ था।
इसी सम्मलेन में अपने आयोजक सदस्यों के सहयोग से एक सत्र
असंतुष्टों का अतिरिक्त कराने की अनुमति मिल गयी थी। काश यदि
इसी प्रकार अमेरिका में होने वाले हिंदी सम्मलेन में प्रवासी
विषयों पर हुए सत्रों में उन्हें सही प्रतिनिधित्व न मिलने पर
उनका यदि एक सत्र और आयोजित होता और विदेशों से आये प्रवासी
साहित्यकारों और लेखकों की बात सुनने का सुनहरा अवसर सभी को
मिलता। आशा है कि भारत सरकार आने वाले सम्मलेन में इसका ध्यान
रखेगी। नंदन जी के बहाने हम हिंदी की ही बात कर रहे हैं। नंदन
जी के साथ-साथ दो बार मैं यू के में होने वाले अनेकों कवि
सम्मेलनों में सम्मिलित हो चुका हूँ। मैनचेस्टर और लन्दन में
साथ-साथ कवितायेँ पढ़ने का अवसर मिला। मैं और नंदन जी
मैनचेस्टर में एक कमरे में घंटों रहे।
नंदन जी अनेकों पत्र पत्रिकाओं के सफल संपादक रहे हैं और हिंदी
पत्रकारिता में शालीनता का परिचय दिया। वह एक अच्छे कवि और
चिन्तक लेखक थे। उनकी कविताओं में रामधारी सिंह दिनकर सा ओज था
और पन्त जैसी पृकृति कि सुकुमारिता थी नंदन जी कि कविता में।
नंदन जी काफी समय से पेसमेकर के साथ चल रहे थे। जब मैंने कुछ
महीने पूर्व नार्वे आने का निमंत्रण दिया तो उन्होंने कहा यदि
आप मेरे पेसमेकर का स्पांसर बन जाएं तो मैं आपके कार्यक्रम में
आ सकता हूँ। मैंने नार्वे कि सरकार के साथ बातचीत कि थी पर
आगामी वर्ष के पहले यह संभव नहीं था। क्या पता था कि नंदन जी
नार्वे में हमारे कार्यक्रम में आये बिना ही चले जायेंगे।
ईश्वर से प्रार्थना है कि वह उनके परिवार को इस अपार दुःख सहने
की शक्ति दें और उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करें। |