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श्यामली ने काँपते हाथों से अँगूठी को उठा लिया
उस पर जड़ा छोटा सा हीरा, अपनी चमक से अंधेरे कोने को दमका रहा
था। श्यामली बार बार अँगूठी को देखे जा रही थी। पता नहीं कब
बीते हुए दिनों की याद चल चित्र के समान आँखों के आगे उतरने
लगी।
“मैडम मैडम क्या आज मुख्य अतिथि को फूल देने के लिये मैं चुनी
जाऊँगी?” श्यामली ने अपनी कक्षाध्यापिका से पूछा था
“अरे नहीं, मैंने दीपिका को चुना है।“ कक्षाध्यापिका ने प्यार
से श्यामली को गाल पर थपकी देते हुए कहा।
“पर दीपिका तो पहले भी फूल दे चुकी है।“
“तुम अभी नहीं समझोगी, गोरे गोलमटोल बच्चे अधिक प्यारे लगते है
न।“
शायद कक्षाध्यापिका की कही बात ही सबसे पुरानी होगी। जब उसे
अहसास हुआ कि वह गोरी नहीं है। चिड़चिड़ाती हुई वह घर पहुँचकर
अपनी माँ के आगे रोने लगी। माँ ने उसको चुप तो करा दिया पर
उसके जन्म के समय से उठी इस समस्या की चिंता में खुद डूबने
उतरने लगी। समय बीतने के साथ श्यामली का आत्मविश्वास घर
मोहल्ले एवं विद्यालय में रंगरूप से संबंधित कड़वी बातें कहे
जाने के कारण टूटता गया। |