मुझे झूठ बोलने वाले व्यक्ति बहुत
अच्छे लगते हैं। कितना मुश्किल काम होता है यह।अपने चेहरे के सारे हाव भाव पर
नियंत्रण रख कर इस कार्य को अंजाम देना पड़ता है। सत्य बोलने में तो कुछ परिश्रम
करना ही नहीं पड़ता है जब जी में आया सत्य बोल दिया। कोई पूछे कि पिताजी घर पर है
तो यह कहना बहुत आसान है कि हाँ घर पर ही है बनिस्पत इसके कि आप यह जानते हुए भी कि
वे घर पर ही है कहें कि नहीं वे तो बाज़ार गए हैं। उस समय आप की आत्मा आपको भले ही
धिक्कारती है कि आप एम जी मार्ग पर नहीं चले किन्तु आप को यह बात भी मालूम है कि
आत्मा अमर है और जो अमर है उसका तो काम ही जीवन भर आपको कदम कदम पर धिक्कारना ही
रहेगा, उसकी बातों को गंभीरता से क्या लेना। आप उससे भयभीत न होते हुए झूठ बोलने का
एक साहसिक कार्य सम्पन्न कर डालते है।
झूठ बोलते समय ही मनुष्य के धैर्य और साहस की असली परीक्षा होती है और इतिहास गवाह
है कि जो इस कला में प्रवीण हो जाते हैं वे ही उन्नति के शिखर पर दिन दूनी रात
चौगुनी और दोपहर में अठगुनी गति से आगे बढ़ते जाते हैं। इतिहास का एक सबसे बड़ा
फायदा यह है कि उसे चाहे जब कभी भी गवाही के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है। इतने
लम्बे भूतकाल में हर तरह की इतनी सारी घटनाएँ घट चुकीं हैं कि किसी का भी उदाहरण
दिया जा सकता है बल्कि अब तो वर्तमान से भी गवाही दिलवाई जा सकती है।आज भी देश में
इसके अनेक प्रमाण मौजूद है।
मुझे झूठ बोलने वालों में सबसे अधिक पसंद भजन गायक हैं। वे भगवान के सामने भी झूठ
बोलते रहते हैं। उनका मानना है कि भगवान के सामने झूठ बोल कर ही उनसे कुछ हासिल
किया जा सकता है। मैं एक ऐसे ही भजन गायक को जानता हूँ जिनका व्यवसाय बहुत दूर दूर
तक फैला हुआ है। वे बहुत सम्पन्न व्यक्ति हैं परन्तु भगवान के सामने जब भी मौका
मिलता है झूठ बोलना प्रारम्भ कर देते हैं। सबसे पहले तो वे अपने आप को भगवान के
सामने भिखारी प्रदर्शित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। उस समय वे अपनी तुलना
किसी भिखारी से न कर के भगवान से करना ज़्यादा अच्छा समझते हैं। बड़े लोगों की यही
पहचान होती है कि वे अपने से ज्यादा सम्पन्न लोगों के मुकाबले में अपना आँकलन करते
हैं न कि अपने से छोटे के। भगवान के मन्दिर के द्वारे पर जाकर भी वह कहने लगते हैं
कि ` मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तुम्हारे आऊँ' तभी शायद जब भी वे आते हैं चादर
ओढ़ के नहीं आते साफ कुर्ता पजामा पहन कर ही आते हैं शायद चादर धुलवाते भी नहीं
होंगे। अरे भैया बहुत दिनों से तुम अपनी मैली चादर होने का रोना भगवान के सामने रो
रहे हो उसे धुलवा क्यों नहीं लेते साफ करवा कर फिर ओढ़ के आ जाओ किसने मना किया है,
किन्तु नहीं उन्हें तो झूठ जो बोलना है।
एक और सज्जन हैं वे इनके भी गुरू है आते ही भगवान से विनती करने लगते हैं कि उनकी
नाव मँझधार में फँसी है जिसे किनारे लगाना है। है न सरासर सफेद झूठ। आए तो कार में
बैठ कर और कह रहे हैं कि नाव मँझधार में फँसी है फिर आप कैसे निकल कर आए और जब
रास्ते भी इतने अच्छे हैं तो नाव में अकेले बैठ कर और न जानते हुए भी उसे चला कर
आने की क्या आवश्यकता थी। कभी कभी तो नाव की जगह पूरा बेड़ा ही भॅँवर में फँसा देते
है फिर भगवान से कहते है कि उसे पार लगाओ। लगता है फेंकने में गजब के माहिर है और
वो भी ऐसी जगह फेंक रहे हैं जहाँ दूर दूर तक कोई नदी या तालाब का नामोनिशान तक
नहीं। भगवान भी सोचते होंगे कि एक बार उन्होंने डूबते गजराज को मगरमच्छ से क्या बचा
लिया हर कोई अपनी नैया भँवर में फँसाने लग गया। अब किस किस को बचाएँ और क्यों बचाएँ
जब नाव चलानी नहीं आती तो क्यों चलाई।
एक और हमारे मित्र हैं त्रिपाठी जी। कल मिले तो चेहरा बड़ा लटका हुआ था। मैंनें
पूछा क्या हुआ बोले अयोध्या तबादला हो गया। मालूम पड़ा रोज मन्दिर में एक गीत गाते
थे `मुझे अपनी शरण में ले लो राम। अब राम जी ने अयोध्या तबादला करवा दिया तो रो रहे
हैं। जब तक भगवान ने नहीं सुनी तब तक तो ठीक था और अब जब सुन ली तो झूठ बोलने पर
पछता रहे हैं। एक और हैं वे भी झूम झूम कर झूठ का पुलिन्दा बाँचने लग जाते हैं तथा
अपने देखे हुए सपने का वर्णन करने लगते है कि ` रात श्याम सपने में आए दहिया पी गए
सररर सररर। वे जिस प्रकार इस घटना का वर्णन सबके सामने करते है उनके इस वक्तव्य पर
यह पता ही नही चलता कि वो इसका अफसोस मना रहे हैं या प्रसन्न हो रहे हैं। अब एक तो
यह बात भी समझ में नहीं आती कि यदि कोई सपने में तुम्हारी किसी चीज़ का उपयोग कर
लेता है तो वह तो सपना ही तो है उसमें नुकसान क्या हुआ। इस बात पर इतना गम्भीर होने
की क्या आवश्यकता है। दूसरे हमारे यहाँ तो दही को खाया जाता है पिया तो तभी जा
सकेगा जब वह छाछ के रूप में होगा अब इसी से पता चलता है कि वे सज्जन लोगों को दही
के नाम पर कितना पानी मिला कर बेफकूफ बनाते होंगे कितना पतला दही परोसते होंगे। कभी
वे गाते हैं ` छोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल,छोटो सो मेरो मदन गोपाल। जब छोटी
छोटी सी गायें है तो उनके बछड़े और कितने छोटे होंगे। क्या खरगोश बराबर ?
एक और क्षेत्र है जहाँ बहुत झूठ चल रहा है। आपका स्वास्थ्य खराब हो गया आप चिकित्सक
के पास दिखाने गए उन्होने बहुत सारी जाँच कराने को लिख दीं आप ने जाँच करा भी लीं
जाँच की रिपोर्ट भी आ गई क्या परिणाम रहा रिपोर्ट बता रही है कि सब सामान्य है। है
न सरासर झूठ। आपकी तकलीफ बढ़ती जा रही है व्याधियों और मर्ज ने आप को आपको घेर रखा
है पर कहने को सब सामान्य है। आदमी तो आदमी अब तो मशीनों को भी झूठ बोलने में मज़ा
आने लगा है। वे भी झूठ बोल कर आपसे पैसा ठगती रहती हैं। उनके लिए तो आप ही भगवान
हो। जब आप भगवान के सामने झूठ बोल कर उन्हें प्रसन्न करना चाहते हैं तो जाँच करने
वाली मशीनें भी आपके सामने झूठ बोल कर आपकी रिपोर्ट को नार्मल बता कर आपको प्रसन्न
क्यों न करें।
झूठ बोल कर जब देवताओं तक को खुश करने की फिराक में जब आदमी लगा हुआ है तब तो
बेचारा आदमी तो झूठ सुनकर खुश होगा ही और यह काम हर उत्पाद के विज्ञापन बखूबी
निभाते हैं। कितने कितने सचिन तेन्दुलकर, अमिताभ बच्चन तथा धोनी सरीखे लोग चंद
रूपयों की खातिर आप के सामने झूठ बोल कर आपको फाँसने की कोशिश करते रहते हैं। क्या
इसी झूठ का अनुसरण करने वाले ये सदी के महान खिलाड़ी या महानायक या भारत रत्न
सम्मान पाने के हकदार हैं। एक दिन मैं भी इन की बातों को सच मान कर केवल दो मिनट
में अपने भूखे बच्चों का पेट भरने का विज्ञापन देख कर नूडल्स खरीद लाया और घड़ी हाथ
में ले कर खड़ा हो गया। पानी को गैस पर चढ़ा कर उसमें नूडल्स डाल कर जैसे ही दो
मिनट पूरे हुए मैंने उन्हें गैस पर से उतार कर खाना शुरू कर दिया। जाहिर है उस दिन
उस कम्पनी का मेरे मुख से गालियाँ सुनने का मुहूर्त निकला होगा। फिर एक बार दुबारा
कोशिश की। पहले तो पानी उबलने में ही चार पाँच मिनट लग गए। फिर नूडल्स पकने में
पाँच सात मिनट लग गए तब जाकर बात बनी। कुल बारह मिनट लगे।
मुझे लग रहा है अब तो आदमी झूठ बोल रहा है, नेता झूठ बोल रहे है, खिलाड़ी झूठ बोल
रहे हैं, अभिनेता झूठ बोल रहे हैं, सरकार झूठ बोल रही है, विज्ञापन झूठ बोल रहे
हैं, भगवान के भक्त झूठ बोल रहे हैं, मुकदमे झूठे हैं, गवाह झूठ बोल रहे हैं,
पाकिस्तान झूठ बोल रहा है, अमेरिका झूठ बोल रहा है, सब झूठ बोल रहे है। गांधी जी का
चरित्र किस किस को सिखलाए कि झूठ बोलना पाप है। यहाँ तो झूठे का ही बोलबाला है और
उसे देख कर सच तो स्वयं ही अपने मुँह पर कालिख पोत कर छुपता फिर रहा है। |