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                    ट्रेन का सफ़र कभी-कभी बड़ा 
					यादगार बन जाता है। मुझे बहुत यात्राएँ करनी पड़ी हैं और 
					अधिकतर अकेले ही। पति अधिकतर टूर पर और फिर उन्हें इतनी छुट्टी 
					भी कहाँ। 
                    उस दिन भी विषय-विशेषज्ञ बन कर 
					एक मीटिंग में जा रही थी। पहले ही 
					पता कर लिया था जिस कूपे में मेरा रिज़र्वेशन है उसमें एक 
					महिला और हैं। मुझे सी ऑफ़ कर ये चले गए।
					वे महिला समवयस्का निकलीं। चलो, अच्छी कट जाएगी !बातें शुरू -
 'आप कहाँ जा रही हैं।'
 'इंदौर, और आप?'
 'हमें तो उज्जैन तक जाना है, आप भी अकेली हैं '
 'हाँ अकेली ही, अक्सर जाना-आना पड़ा है, आदत-सी हो गई है।'
 'हमारी भाभी बीमार हैं सो अचानक चल दिए आप तो इन्दौर रहती हैं 
					शायद।
 'नहीं अहिल्याबाई विश्वविद्यालय में एक मीटिंग है, बस अगले दिन 
					लौटना है।'
 'हाँ हम भी दो दिन की सी.एल. ले के, हो सकता है एकाध दिन और 
					रुक जाएँ।'
 
                    पता लगा मेरठ में पढ़ाती हैं, और 
					खूब घुल-मिल कर बातें होने लगीं। कहाँ -कहाँ के सूत्र निकल आए। |