इधर कामनवेल्थ के खेल शुरू हुए है
और उधर मुझे आक्टोपस बाबा याद आने लगे हैं जिन्होंने फुटबॉल वर्ल्ड कप के मैचों के
बारे में सारी भविष्यवाणियां सच कर के दुनिया को कब्जे में कर लिया था। राष्ट्रकुल
खेलों का महत्त्व भी कुछ कम नहीं है पर आक्टोपस बाबा हैं कि कहीं नजर ही नहीं आ रहे
हैं। लगता है वे हिंदुस्तान आने से घबरा गए हैं। उन्हें लगता है कि यहां उन्हें कोई
घास डालनेवला नहीं।
हम हिन्दुस्तानियों के लिए चमत्कार रोज-मर्रा की बातें है। हम इन छोटी-छोटी बातों
से न विचलित होते हैं और न ही चमत्कृत। यहाँ आए दिन चमत्कार होते रहते हैं। पेड़ों
से अलग-अलग देवी-देवता निकल आते हैं। पत्थर की मूर्तियाँ हजारों लीटर दूध पी जाती
हैं। पौराणिक चरित्रों की आत्माएं खंडहरों में भटकती दिख जाती हैं। आनुवंशिक
गड़बड़ी के कारण पाँचवीं टांग के साथ पैदा हुई बछिया को बैलगाड़ी पर सजाकर नुमाइश
करनेवालों, झाड़-फूंक, मूठ-वशीकरण, जंतर-मंतर, गंडे-तावीज, पीर-पंडित,
अघोरियों-संन्यासियों, नागाओं और साधुओं से भरे हमारे इस देश के लोगों को दुनिया के
किसी कोने में ऐसे किसी भी बाबा के अवतरण पर बिलकुल भी आश्चर्य नहीं होता। वे इसे
सहजता से लेते हैं। अपने तईं सब ईश्वर की लीला है। फिर आक्टोपस बाबा को पूछता कौन?
हम तो हस्त-रेखाएं देखकर भविष्य बता देते हैं। बच्चे के जन्म-समय, स्थान आदि के
आधार पर उसके पूरे जीवन-काल में घटित होनेवाली बातों की भविष्य-वाणी कर सकते हैं।
स्पेन के कप्तान ने हमारे किसी ज्योतिषी को अपनी जन्म-पत्री भेज दी होती तो वे बता
देते कि निश्चय ही सन 2010 का विश्व कप स्पेन की टीम ही जीतेगी। ज्योतिषी क्या,
अपने यहाँ के हजारों तोतों को यह बात मालूम है। वे अपने पिंजरे में घुसेंगे और सही
जवाब वाला कार्ड निकाल लाएंगे। क्या मजाल जो उनकी बताई बात झूठी निकल जाए। हमारे
पास आक्टोपस बाबा का हजार विकल्प पहले से ही मौजूद हैं।
अपने यहाँ हजारों बैल ऐसे हैं, जो भविष्य बता सकते हैं। बस आप एक सवाल अपने मन में
सोचकर मुट्ठी बंद कीजिए। एक मुट्ठी में एक सवाल है, दूसरी में दूसरा। दोनों
मुट्ठियाँ आगे कीजिए। बैल महाराज जिस मुट्ठी पर मुँह मार दें, उसके लिए सोचा गया
विकल्प फलित होगा। अब ये दूसरी बात है कि भारत की फुटबॉल टीम कभी वर्ल्ड कप के
फाइनल दौर तक पहुँची नहीं और उसकी रैंकिंग करीब 137वीं है। वर्ना बिना रीढ़ वाले
ऑक्टोपस की क्या मजाल थी जो बात-बे-बात फर्राटेदार टें-टें बोलनेवाले भारतीय तोते
की बोलती बंद कर देता और सर्वज्ञानी बैल से टक्कर ले लेता। हमारे यशस्वी और कर्मठ
फुटबॉल खिलाड़ियों ने देश के भविष्यद्रष्टा तोतों, बैलों और लाखों ज्योतिषियों को
इतना शानदार कारनामा करने का मौका ही नहीं दिया। इसके लिए आखिर दोषी कौन है? आप खुद
सोचें।
वैसे तो रीढ़-विहीन प्राणियों की सूची बहुत लंबी है, लेकिन उनमें सबसे समझदार
ऑक्टोपस ही होते हैं। चूंकि उनके रीढ़ नहीं होती, इसलिए वे मनचाहा आकार ग्रहण कर
सकते हैं। यूं तो आधुनिक समाज में रीढ़विहीनता बहुत बड़ा वरदान है। बिना पेंदी के
लोटे की तरह, जिधर सुविधा देखो उधर ही लुढ़क जाओ। जहाँ मलाई अधिक दिखे, वहीं मुँह
मारने पहुँच जाओ। हमें तो लगता है कि समझदार ऑक्टोपस ने बस इस सुविधा के चलते ही,
विकल्प मिलने पर भी विधाता से कहा होगा कि रहने दो यार रीढ़-वीढ़। हम तो बिना रीढ़
के ही ठीक हैं। जहाँ जगह पाएँगे वहीं फिट हो जाएँगे। सो आक्टोपस बाबा यह समझ गए
होंगे कि भैये इस समय भारत में फिट होने का उनका हौसला बेकार ही जाने वाला है
इसलिये शांत बने रहना ही अच्छा है।
लेकिन भई समझदारी एक तरफ और सरलता एक तरफ, हम ठहरे सरल प्राणी। सरल प्राणी
महापुरुषों से जल्दी ही प्रभावित हो जाते हैं। ऑक्टोपस बाबा की चमत्कारी शक्तियों
का हमारे मन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा है। यदि वे कहीं मिल जाएं तो उनकी चरण-रज
लेकर धन्य हो जाएँ। हाल-फिलहाल तो उनसे मुलाकात की कोई टिप्पस भिड़ती दिख नहीं रही
है। अगर बच्चे बड़े न हो गए होते तो उनमें से किसी एक का नाम ही ऑक्टोपस रख देते।
कम से कम इसी बहाने बार-बार बाबा का नाम जपने का सौभाग्य तो मिलता। लेकिन अब क्या
करें! बच्चे इतने बड़े हो गए हैं कि उनका नए सिरे से नामकरण तो छोड़ो नाम-परिवर्तन
की भी संभावना नहीं!
अब तो बस उन्हीं लोगों का आसरा है जो बात-बेबात पाले बदलते हैं कशेरुकी प्राणी होकर
भी अकशेरुकी प्राणियों जैसा आचरण करते हैं। मेरी ही तरह उनके आदर्श भी तो श्री श्री
एक हजार आठ ऑक्टोपस बाबा ही हैं। सच कहें तो ऑक्टोपस बाबा को शीघ्रातिशीघ्र भारत आ
जाना चाहिए। यहाँ के अधिसंख्य जनों को ऑक्टोपस का सूप बनाने की कला नहीं आती।
हिन्दुस्तानियों का यह अज्ञान ही बाबा के लिए अभयदान सिद्ध होगा।
राष्ट्रकुल खेल जारी हैं और तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं वाले इस देश की लगभग सवा सौ
करोड़ जनता पलक पाँवड़े बिछाए उनका इंतजार कर रही है। हम खाने-पीने के मामले में
सर्वग्रासी नहीं हैं किन्तु हमारी आध्यात्मिक क्षुधा सर्वग्रासी है। फुटबॉल के
मैदान में भारत चाहे फिसड्डी हो, लेकिन आस्था के मामले में हमारा जवाब नहीं। यहाँ
हम विश्वजयी हैं। तो हे मेरे बाबा ऑक्टोपस, इस कलि-ग्रस्त भरत-भूमि के
बहु-व्याधि-ग्रस्त मनुजों का उद्धार करने शीघ्र पधारो म्हारे देस और दिल्ली के
राष्ट्रकुल खेलों की भी शोभा बढ़ाओ! हम आपके स्वागत में पलक पाँवड़े बिछाए बैठे
हैं। |