सप्ताह
का
विचार-
क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात नहीं कहता, वह केवल दूसरों का
दिल दुखाना चाहता है। -प्रेमचंद |
|
अनुभूति
में-
भारतेंदु मिश्र, राजीव राय, सुरेन्द्र प्रताप सिंह, सुषमा भंडारी
और राजा करैया की रचनाएँ। |
कलम गहौं नहिं हाथ-
गरम देश होने के
कारण इमारात के निवासियों को तरावट की तलाश सदा बनी रहती है।
इसके लिए ...आगे पढ़ें |
सामयिकी में- गाँव गाँव में पानी की समस्या पर विजय प्राप्त करती ग्रामीण
महिलाओं की कहानी कहता मनीष वैद्य का लेख-
पानपाटा की बदली
तस्वीर। |
रसोईघर से सौंदर्य सुझाव - गेंदे और गुलाब की पंखुड़ियाँ व
नीम की पत्तियों को एक कटोरी पानी में उबालकर चेहरे पर लगाने से
मुहाँसे दूर होते हैं। |
पुनर्पाठ में- १ मई २००१ को पर्व परिचय के अंतर्गत प्रकाशित
भारतीय त्योहारों व उत्सवों की जानकारी-
मई माह
के पर्व। |
क्या आप जानते
हैं? नाभिकीय भट्टियों में प्रयुक्त गुरु-जल विश्व का सबसे महँगा
पानी है। इसके एक लीटर का मूल्य लगभग १३,५०० रुपये होता है। |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला-८ के विषय आतंक का साया पर रचनाएँ प्रकाशित होने
का श्रीगणेश हो चुका है आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा है। |
हास
परिहास
1 |
1
सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
|
|
इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
भारत से
राजनारायण बोहरे की कहानी
हल्ला
साँझ ढल रही थी कि फिर कोलाहल हुआ। उनका दिल फिर से काँप उठा।
अपनी तरफ से तो उन्होंने कुछ किया ही नहीं, सब कुछ ऊपर से तय
हो कर आया था।
दरअसल, प्रदेश में किसानों पर अरबों-खरबों का
लगान बकाया है। कहने को तो यह प्रदेश का सबसे छोटा जिला है, लेकिन
यहाँ भी करोड़ों का बकाया, वह भी पिछले कितने अरसे से वसूली के
लिए रुका पड़ा है। किसी साल चुनाव तो किसी साल जनगणना और किसी
बरस अकाल किसी बरस बाढ़। यानी हर साल कोई ना कोई बहाना आ ही
जाता है और वसूली ठीक से नहीं हो पाती। सरकार का ध्यान इस तरफ
गया तो उसने राजस्व वसूली के लिए सख्ती से अभियान चलाने का
आदेश दिया था। और उसी के मुताबिक ही तो उन्होंने गाँव-गाँव
जाकर इश्तहार बँटवाए, तकावी वसूली कराने वाले गाँव के आखिरी
कारिंदे पटेल की मार्फत घर-घर जाकर खबर पहुँचाई कि...
पूरी कहानी पढ़ें।
*
मनोहर पुरी का व्यंग्य
सदन में चिल्लाने का अधिकार
*
अनिल पुसदकर
का दृष्टिकोण
नज़र नही आते लोग अब कटोरियों मे प्यार बाँटते
*
रंगमंच में
भारतेंदु मिश्र से जानें
भरत की सौदर्य दृष्टि
*
पूर्णिमा वर्मन का आलेख
ग्रीष्म के शीतल मनोरंजन |
|
|
पिछले सप्ताह
ब्रजेन्द्र
श्रीवास्तव उत्कर्ष का व्यंग्य
फिर गिरी छिपकली
*
विज्ञान
वार्ता में जाने-
कैंसर के इलाज
में मिली नई सफलताएँ
*
योगेशचंद्र
शर्मा का आलेख
मई दिवस की यात्रा
कथा
*
समाचारों में
देश-विदेश से
साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ
*
समकालीन कहानियों में
भारत से
विनीत गर्ग की कहानी
उम्मीद के आँसू
घर्रर्र...
की आवाज के साथ ऑटो स्टार्ट हुआ और खाली पड़ी सड़क पर रफ्तार
पकड़ता हुआ चल पड़ा। सर्दियों की रात में ऑटो में बैठना वैसे
ही आसान काम नहीं और ऊपर से ये गढ्ढे। पुणे की सड़कों पर कोई
भी गढ्ढों के अलावा कुछ सोच नहीं सकता और ये ऑटो ड्राइवर भी तो
इतना महान था कि रात के ढाई बजे, गुप्प अंधेरे में भी सड़क के
हर गढ्ढे की इकजैक्ट लोकेशन से पूरी तरह वाकिफ था। मज़ाल क्या
जो पिछले पाँच मिनट में सड़क का एक गढ्ढा भी इसने मिस किया हो।
शैः, सरकार भी जाने कैसे-कैसे लोगों को ऑटो चलाने का परमिट दे
देती है। वरुण ऑटो ड्राइवर को कोसने लगा।
''कहाँ जा रहे हैं साहब? कुछ ज्यादा ही जल्दी की ट्रेन में
टिकिट कटा ली। अब देखिये ना नींद खराब हो गई।'' पूरी कहानी पढ़ें...
|