|  | साँझ ढल रही थी कि फिर कोलाहल हुआ। उनका दिल फिर से काँप उठा। 
                    अपनी तरफ से तो उन्होंने कुछ किया ही नहीं, सब कुछ ऊपर से तय 
                    हो कर आया था। 
 दरअसल, प्रदेश में किसानों पर अरबों-खरबों का 
                    लगान बकाया है। कहने को तो यह प्रदेश का सबसे छोटा जिला है, लेकिन 
                    यहाँ भी करोड़ों का बकाया, वह भी पिछले कितने अरसे से वसूली के 
                    लिए रुका पड़ा है। किसी साल चुनाव तो किसी साल जनगणना और किसी 
                    बरस अकाल किसी बरस बाढ़। यानी हर साल कोई ना कोई बहाना आ ही 
                    जाता है और वसूली ठीक से नहीं हो पाती।
 सरकार का ध्यान इस तरफ 
                    गया तो उसने राजस्व वसूली के लिए सख्ती से अभियान चलाने का 
                    आदेश दिया था। और उसी के मुताबिक ही तो उन्होंने गाँव-गाँव 
                    जाकर इश्तहार बँटवाए, तकावी वसूली कराने वाले गाँव के आखिरी 
                    कारिंदे पटेल की मार्फत घर-घर जाकर खबर पहुँचाई कि फसल का समय 
                    है भाइयो, हर आदमी मण्डी में राजरास (फसल की पहली बिक्री) 
                    तुलाने के तुरंत बाद लगान जमा करा दे। तहसील के रिकॉर्ड में 
                    अपने बाप-दादा के जमाने से चला आ बकाया पूरा नहीं तो आधा-पद्दा 
                    ही जमा करादे। बजाज साहब ने अखबारों में खबरें छपवाईं, सरपंचों 
                    को सैकड़ों पत्र लिखे और हर टोले-मजरे में खुद जा कर तौजी जमा 
                    कराने के लिए किसानों को खूब प्रेरित किया। |