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हास्य व्यंग्य


फिर गिरी छिपकली
ब्रजेन्द्र श्रीवास्तव 'उत्कर्ष'


वैसे तो आज हम वैज्ञानिक युग मे जी रहे है किन्तु, हमारी विचारधारा वही घिसीपिटी बाबा आदम के जमाने की है। अब परसों की ही बात है; मेरे पैर पर एक छिपकली गिरी। मैं प्रसन्न हो गया कि मेरे चरण स्पर्श कर रही है। मैंने आशीर्वाद दे दिया सौभाग्यवती भव:। किन्तु, ज्ञानी पुरुष होने के कारण मेरे दिमाग मे खुजली होने लगी कि पता नही ये छिपकली कुँवारी है या शादीशुदा। शादीशुदा है तो ठीक है; किन्तु, यदि कुँवारी हुई तो उसे सौभाग्यवती का आशीर्वाद कैसे? हाय! हमारा आशीर्वाद मिथ्या हो जाएगा। तभी एक और विचार मेरे दिमाग मे जबरदस्ती घुस आया कि पता नही ये छिपकली है भी या छिपकला। नर है या मादा। मादा है तो ठीक! किन्तु, नर को सौभाग्यवती होने की जरूरत क्या? नर तो खुद ही किसी नारी के इर्द-गिर्द नारा बनके अपने सौभाग्य पर इठलाता रहता है। हाय! मैंने पहली बार आशीर्वाद दिया, वो भी त्रिशंकु की तरह मझधार मे लटक गया। हाय! मैंने आशीर्वाद क्यों दिया?

हम इसी उधेढबुन मे उलझे थे, तभी हमारे छुटपन के छकाउ यार शेखू पधारे। सोफे पर लदते हुए हमारे जख्म कुरेदने लगे। मैंने अपनी परेशानी वाली छिपकली पुराण उन्हे सुनाई। किन्तु शेखू हमारी समस्या सुलझाने की बजाय और उलझाते हुए बोले, 'शरीर पर छिपकली गिरने से महापाप लगता है और व्यक्ति नरक मे जाता है...।" नरक का नाम सुन मेरे नयन नाले बन गए। स्वर्ग जाने का अपना सपना टूटता देख मैंने शेखू से कुछ उपाय करने को कहा। शेखू मुझे स्वर्ग तक सीधी पहुँच रखने वाले बाबा झंझटिया नाथ के पास ले गया। मेरी आँखो से गंगा-जमुना बहते देख बाबा ने अपने नेत्र बन्द कर लिए, किन्तु किसी और नेत्र से हमारा परीक्षण करते हुए बोले, "बच्चा तू बहुत संकट में है, तेरे ऊपर मौत का साया है।" मौत का साया सुन मुझे भैसे पर सवार यमराज नजर आने लगे। मैंने घबराकर बाबा के चरण पकड लिए और कहा, "महाराज मेरे ऊपर छिपकली गिरी थी...।" बाबा ने मेरी बात बीच में ही काटते हुए अपनी भृकुटी तानकर पूछा, "बच्चा कौन-सी छिपकली थी। क्या नाम था उसका? मैंने रिरियाते हुए कहा, "महाराज दीवार पर रेगने वाली छिपकली का भला क्या नाम हो सकता है।"

"जय काल भैरव! मै त्रिकालज्ञ हूँ, सब जानता हूँ। तुझे 'छिप-छिप दोष' हुआ है। वो छिपकली नही तुम्हारे पूर्व जन्म की पत्नी है... तुझसे बहुत प्यार करती है। छिपकली योनि मे भटककर कष्ट में है, इसीलिए तेरे पास आई है।" बाबा बोले। वैसे तो दुर्भाग्यवश इस जन्म में मैं अभी कुँवारा हूँ, किन्तु अपने पूर्व जन्म की पत्नी को कष्ट में जान मुझे बहुत कष्ट हुआ। मैंने बाबा से अपनी प्रिय पत्नी के कष्ट दूर करने का उपाय पूछा। बाबा बोले, "बच्चा द्वापर युग महाराज छपाक देव को भी 'छिप-छिप दोष' हुआ था; तब मेरे गुरुदेव ने कष्ट निवारण हेतु 'छिपकली मेघ यज्ञ' करवाया था। तुझे भी वही यज्ञ करवाना होगा...।" यज्ञ का नाम सुन मैं अपनी जेबे टटोलने लगा। तभी शेखू ने बाबा जी की बात बीच में ही काटते हुए पूछा, "महाराज 'अश्वमेघ यज्ञ' तो सुना था किन्तु, 'छिपकली मेघ यज्ञ' क्या होता है।"

बाबा ने फिर अपनी कथा शुरू की, "अमावस की अँधेरी रात को, श्मशान में, सोने की छिपकली को यज्ञ कुन्ड मे प्रवेश कराया जाता है...।" बात जब मेरी खोपडी के ऊपर से होकर गुजरी, तो मैंने अपनी बेअक्ल जबान फिर हिलाई, "महाराज मैंने आज तक छिपकली को सोते हुए नहीं देखा है, तो फिर मैं सोने वाली छिपकली लाऊँगा कहाँ से? महाराज ने दशहरे के रावण के माफिक लाल-लाल आँखे तरेरी और चीखे, "शम्भू! जय काल भैरव! मूर्ख तेरे मरने की घडी नजदीक आ रही है, इसीलिए तू ऊल-जलूल बाते कर रहा है। चल भाग जा यहाँ से; अन्यथा यही भस्म कर दूगा।" शेखू महाराज के आगे हाथ जोड उन्हे मनाने लगा। तभी बाबा जी का चेला बोला, "सोने वाली छिपकली नही, बल्कि सोने से बनी छिपकली, मतलब वो सोना जो महिलाएँ धारण करती हैं।" 'महिलाएँ' शब्द सुन बाबा जी के चेहरे पर 'शान्ती' छा गई। प्रेम से बोले, "बच्चा इस यज्ञ को करने के लिए तुम्हे आधा किलो सोने की छिपकली बनवानी होगी व अन्य विभिन्न दिव्य पदार्थों का इन्तजाम करना होगा।" आधा किलो सोना सुन मैं वही सोने लगा। खैर किसी तरह शेखू ने मेरी मौत टालने का व मेरी पत्नी को कष्टों से मुक्त करने का सौदा रू.पाँच हजार में तय किया।

भगवान जी से सीधा कनेक्शन रखने वाले बाबा जी को अगले दिन रुपये देने का वादा कर, हम घर आकर घोडे बेचकर सो गए। किन्तु, सपने में मौत के महाराज, भैसे पर लदकर पधारे, मुझे डपटते हुए बोले, "मूर्ख! जाहिल! पढे लिखे गँवार! तू भी इन ठग, पाखंडियो,ढोंगियों, लुटेरों की बातों मे फस अन्धविश्वासी हो गया है। तू और छिपकली दोनों ही प्रकृति की सन्तान है। फिर छुआ-छूत, भेद-भाव, पाप-पुण्य कैसा? धर्म तो समानता व प्रेम का पाठ पढाता है। धर्म तो सत्कर्म कि सीख देता है। सत्कर्मो मे ही स्वर्ग व दुष्कर्मो मे ही नरक है। तभी भैसे ने मुझे जोरदार सीँघ मारी। मैं अन्धविश्वास की व सोने वाली दोनों प्रकार की नींदो से जाग गया।

२६ अप्रैल २०१०

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