कनछेदी सदन में अन्य अनेक सदस्यों की तरह से
अपनी पिछली सीट को छोड़ कर सामने आ कर बोला, '' महोदय मैं आपसे अपने चिल्लाने के
अधिकार के लिए सुरक्षा की माँग करता हूँ। मेरी प्रार्थना है कि आप मुझे सुरक्षा
प्रदान करें और मेरी विनती स्वीकार करें। सीधे साधे बोलने वाले सदस्य की ओर तो कोई
ध्यान ही नहीं देता। न तो उसकी बात आप सुनते हैं और न ही मीडिया उसका नोटिस लेता
है।``
अध्यक्ष जी ने कनछेदी को अपने स्वाभाविक स्वर में डाँटते हुए कहा,'' आप अपने स्थान
पर जा कर बोलिए अथवा चिल्लाइए। यहाँ से आप जो भी बोलेंगे वह रिकार्ड में नहीं जा
सकता। आई से नथिंग विल गो आन रिकार्ड।`
''पर आप मेरी बात तो सुनिए सर। `` कनछेदी ने मिमियाती हुई आवाज में घिघिआते हुए
अपना कोई तर्क प्रस्तुत करने का असफल प्रयास किया।
''मैंने कहा न कि आप अपनी सीट पर जाएँ और फिर वहाँ से मेरी अनुमति लें। आप इस तरह
से जबरदस्ती नहीं कर सकते। यह सदन है कोई मछली बाजार नहीं।`` अध्यक्ष जी अब पूरे
रोष भरे जोश में आ चुके थे।
''महोदय ! मैंने यह कब कहा कि यह मछली बाजार है। मछली बाजार तो इससे कहीं अच्छा
होता है। वहाँ पर बड़े से बड़ा सौदा छोटे छोटे संकेतों में दबे मुँदे ही होता है।
वहाँ पर इस तरह से चिल्लाना नहीं पड़ता और अपनी बात कहने के लिए यूँ मिमियाना भी
नहीं पड़ता।`` कनछेदी फिर धीरे से बोला।
अध्यक्ष जी ने उसको बात पूरी करने का अवसर न देते हुए कड़े शब्दों में
चेताया,''मैंने एक बार कह दिया न कि कुछ भी रिकार्ड पर नहीं जाएगा।``
'' यह बात आप एक बार नहीं कई बार कह चुके हैं। सुबह से कितने ही माननीय सदस्य आपके
जुबानी चाबुक की मार सह चुके हैं। वास्तव में महोदय मेरा व्यवस्था का प्रश्न है।
व्यवस्था के प्रश्न को आप इस तरह से नकार नहीं सकते।`` अब कनछेदी भी थोड़ा अड़ गया
।
''तो आप मेरी व्यवस्था को व्यवस्था के प्रश्न से चुनौती दे रहे हैं। माननीय सदस्य
बताएँ कि किसी नियम के अर्न्तगत आप व्यवस्था का प्रश्न उठा रहें।`` अध्यक्ष जी ने
अपनी भृकुटी तानते हुए कहा।
''सर! मैं कह रहा था।`` कनछेदी ने कुछ आश्वस्त हो कर अपनी बात कहने का प्रयास किया
ही था कि अध्यक्ष जी का स्वर सदन में गूँज उठा, ''नहीं नहीं आप पहले रूल कोट करें।
यही नियम है। मैं आपको यों ही बोलने की अनुमति नहीं दे सकता।``
''महोदय! मैं बोल तो रहा ही हूँ। पर आप वह नहीं बोलने दे रहे जो मैं बोलना चाहता
हूँ। अब तक तो मेरी बात समाप्त भी हो जाती।`` कनछेदी ने समझाने का प्रयास करते हुए
कहा।
''नहीं नहीं माननीय सदस्य इस प्रकार सदन को हाँक नहीं सकते। आप जबरदस्ती अपनी बात
नहीं मनवा सकते। मैंने कहा न कि पहले आप अपनी सीट पर जाएँ। फिर प्वाइंट ऑफ आर्डर
कोट करें और जब मैं अनुमति दूँ तब अपनी बात कहें। तब तक नथिंग विल गो ऑन
रिकार्ड।``अध्यक्ष जी ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा।
''सर! यह तो सरासर ज्यादती है। आप मेरा प्वाइंट ऑफ आर्डर तक सुनने को तैयार नहीं
हैं। दूसरों की आप कोई भी बात सुन लेते हैं।``
माननीय सदस्य, अब आप मुझ पर... चेयर पर आरोप लगा रहे हैं। आप जानते हैं कि आपको सदन
से निष्कासित कर सकता हूँ।`` अध्यक्ष जी ने चेतावनी दे डाली।
''जानता हूँ महोदय इसी लिए तो मैं इतनी देर से प्रार्थना कर रहा हूँ कि... कनछेदी
ने फिर कुछ कहने का प्रयास किया।
अध्यक्ष जी ने अपने आसन पर खड़े होते हुए कहा,'' आप बैठ जाइए। यू सी आई एम ऑन माई
लेगस। जब मैं खड़ा हुआ हूँ तो सदन में कोई भी माननीय सदस्य खड़ा नहीं रह सकता। यह
नियमों के विरुद्ध है। इसलिए आप कृपा करके बैठ जाएँ।``
''सर! यह कैसा नियम है कि जब आप खड़े हों तो हम बैठ जाएँ। यह तो भारतीय सभ्यता और
संस्कृति के एकदम विपरीत है। आप आयु में हमसे बड़े हैं । आपका पद भी हम से बड़ा है।
आप खड़े हों और हम बैठे रहें यह तो सरासर बदतमीजी ही होगी न सर। आप सुबह से बैठे
बैठे थक गए हों तो खड़े खड़े ही मेरी बात सुन लीजिये। मैं कह रहा था कि उत्तर
प्रदेश में....`` कनछेदी ने अपनी बात का खुलासा करने की भूमिका बनाने का प्रयास
करते हुए कहा।
'' सर यह राज्य का मामला उठा रहे हैं। राज्यों का कोई विषय इस सदन में नहीं उठाया
जा सकता।`` एक सदस्य ने बीच में टोकते हुए कहा।
'' हाँ! हाँ! राज्य के किसी भी मामले पर यहाँ चर्चा नहीं हो सकती।`` बागी सनसनी
पार्टी के सारे के सारे सदस्य एक स्वर में चिल्लाए।
''माननीय सदस्य चुप रहें और अपने अपने स्थान पर बैठ जाएँ। आप जानते हैं कि मैंने
किसी चर्चा की अनुमति नहीं दी है।`` अध्यक्ष जी ने सभी सदस्यों को चुप रहने का आदेश
देते हुए कहा, जिसे किसी ने नहीं माना।
'' पर सर माननीय सदस्य तो हमारे राज्य का नाम ले रहे हैं।`` एक बासपाई ने अपनी कड़क
और बुलंद आवाज में कहा।
''आप लेने दीजिए जो भी नाम यह लेना चाहें। इन्हें मैं देख लूंगा। आप कृपया चुपचाप
बैठे रहें और मुझे सदन को चलाने दें। आप मुझे सदन को चलाना सिखाने का प्रयास न
करें।`` अध्यक्ष जी ने अनुरोध किया।
''सर! मैं कह रहा था कि उत्तर प्रदेश.. ``कनछेदी बैठते बैठते उठ गए।
''महोदय! यह फिर उत्तर प्रदेश का नाम ले रहे हैं।`` वह कड़कदार स्वर फिर गूंजा। सदन
में एक दम सन्नाटा छा गया।
''सर! पहले भी बहुत से राज्यों के विषय में यहाँ चर्चाएँ होती रहीं हैं। उत्तर
प्रदेश कोई देश से बाहर नहीं है। यह कानून और व्यवस्था का प्रश्न है।`` कनछेदी ने
फटाफट सदन में छाई चुप्पी का लाभ उठाते हुए अपनी बात कही।
''यही तो हम कह रहें कि कानून और व्यवस्था राज्यों का विषय है। उसे आप यहाँ नहीं
उठा सकते।`` बहुत सारे सदस्य एक साथ सदन के कुएँ अर्थात वेल में चले आए।
''सर! मैं यह विषय अपने व्यक्तिगत अधिकार के लिए उठा रहा हूँ किसी पार्टी के लिए
नहीं। जो दोनों दल उस राज्य में हंगामा कर रहे हैं मुझे उनसे कुछ लेना देना नहीं
है। मैं तो अपने अधिकार की रक्षा चाहता हूँ जो संविधान ने मुझे दिया है। मेरा
अधिकार है जानने का अधिकार। सर मैं जानना चाहता हूँ कि उत्तर प्रदेश की क्रान्ति
विरोधी पार्टी की अध्यक्षा ने ऐसा क्या कह दिया कि वहाँ की सरकार ने उन्हें
गिरफ्तार कर लिया। बदले में क्रान्ति विरोधी पार्टी के कार्यकर्त्ताओं ने क्रान्ति
कर दी और बागी पार्टी के स्वयं सेवकों ने उनके घर को आग के हवाले कर दिया।`` कनछेदी
ने कहा।
''सर! हम पहले भी कह चुके हैं कि हमारी पार्टी के किसी कार्यकर्ता ने आग नहीं लगाई।
आग क्रान्ति विरोधी पार्टी के कार्यकर्त्ताओं ने स्वयं ही लगाई है ताकि हमें बदनाम
किया जा सके।``बागी पार्टी वाले एक साथ खड़े हो कर बोले।
''खैर! मुझे इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि आग किस ने लगाई और किस को लगाई। वह तो
रोज ही लगती रहती है। कभी यहाँ तो कभी वहाँ। मैं तो वह शब्दावली जानना चाहता हूँ
जिसके कारण इतना हंगामा हो रहा है।`` कनछेदी ने अपना मत स्पष्ट किया।
''वह शब्द यहाँ नहीं दोहराए जा सकते। ज्ञात हुआ है कि वे शब्द अभद्र और असंसदीय
थे।`` एक सदस्य ने कहा।
क्यों क्या सदन में आज तक किसी असंसदीय भाषा का प्रयोग कभी नहीं हुआ?`` कनछेदी ने
प्रश्न किया।
'' हुआ है परन्तु उसे सदन की कार्यवाही से निकाल दिया जाता है।`` अध्यक्ष जी ने
स्पष्ट किया।
''ठीक तो उन शब्दों को भी बाद में कार्यवाही से निकाल देना मुझे कोई अपत्ति नहीं
होगी।`` कनछेदी ने कहा।
अध्यक्ष! जी माननीय सदस्य वास्तव में चाहते क्या हैं। यह स्पष्ट नहीं है एक
क्रान्ति विरोधी पार्टी के सदस्य ने उठ कर कहा। असल में यह हमारी नेता को बदनाम
करना चाहते हैं। ऐसा हम कभी नहीं होने देगें। चाहे हमें उसके लिए धरना देना पड़े।``
'' तो हमें पता कैसे चलेगा कि जिस को हिरासत में लिया गया उसका कसूर क्या था। आप
किसी के नाम पर कुछ भी कह कर उसे जेल में बंद कर दें। यह कोई जंगल राज है।`` एक
विपक्षी सदस्य बोले।
'' अध्यक्ष जी यह मामला अदालत में चल रहा है। इसलिए इसे सदन में नहीं उठाया जा
सकता। मेरी आप से प्रार्थना है कि इस मामले को यहीं समाप्त कर दिया जाए। पहले ही
सदन का बहुत सा बहुमूल्य समय नष्ट हो चुका है। आप जानते हैं कि सदन के एक एक मिनट
पर लाखों रुपयों का व्यय होता है।'' एक स्वतंत्र सदस्य ने कहा।
''अवश्य होता है। पर क्या पहले नहीं होता था। आज तक सदन के कितने घंटें ऐसे ही नष्ट
हुए हैं इसका हिसाब है आप के पास। और आगे नहीं होगें इसकी क्या गारण्टी है ``
कनछेदी ने कहा। कुछ देर रूक कर बोला,'' जो बात अदालत में बताई जा सकती है। अथवा
आरोप पत्र में लिखी जा सकती है वह देश की इस सबसे बड़ी अदालत में क्यों नहीं कही जा
सकती।``
''नहीं नहीं हम ऐसा नहीं होने दे सकते।`` बागी समाजवादी पार्टी और क्रान्ति विरोधी
पार्टी के लोग एक साथ उठ खड़े हुए। सदन में हमारा आपसी गठबंधन है। विपक्षी हमें आपस
में लड़वाने का प्रयास कर रहे हैं।
'' हमें पूरी बात जानने का पूरा अधिकार है।`` सभी विपक्षी सदस्य जो अब तक चुप बैठे
थे एक साथ खड़े हो कर चिल्लाए। जो यहाँ पर गठबंधन करते हैं और प्रदेश में एक दूसरे
पर कीचड़ उछालते हैं उनकी दोगली नीति को नहीं चलने दिया जाएगा।``
सदन का महौल धीरे धीरे बिगड़ने लगा। सारे मामले को संभालने का प्रयास करते हुए एक
विपक्षी नेता ने कहा,'' अध्यक्ष जी आप गृह मंत्री को आदेश दें कि वह सदन में आ कर
अपना वक्तव्य दें और सारी स्थिति को साफ करें।
तभी एक बागी पार्टी वाला सदस्य चिल्लाते हुए बोले,'' नहीं नहीं पहले क्रान्ति
विरोधी नेता इस्तीफा दें।``
सत्ता पक्ष की ओर बैठे एक क्रान्ति विरोधी ने कहा,'' नहीं नहीं उत्तर प्रदेश में
कानून और व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है इसलिए जल्दी से जल्दी उत्तर प्रदेश की
सरकार को बर्खास्त कर देना चाहिए।
सदन में चारों ओर हंगामा मच गया। कोई किसी की बात नहीं सुन रहा था। अध्यक्ष जी की
हर अपील बेकार सिद्ध हो रही थी। तभी अध्यक्ष जी ने अपने आसन से उठ कर सदन के स्थगन
की घोषणा कर दी। सभी सदस्य एक दूसरे के गले में बाहें डाले हुए कैंटीन की ओर बढ़
चले। आखिर इतना चिल्लाने के बाद उनके गले सूख गए थे और भोजन का समय भी होने ही वाला
था। आज उन्होंने राट्रीय हित में अपने अपने गलों का जम कर प्रयोग जो किया था। तभी
एक नेता ने सुझाया,'' भैया क्या आपको नहीं लगता कि सूखे गले को तर करने के लिए यहाँ
पर एक बार का प्रावधान तो किया ही जाना चाहिए। अच्छा हो हम सब मिल कर अगले सत्र में
इसकी मांग करें।``
कनछेदी ने देखा कि आस पास चल रहे सदस्यों की आँखों में एक विशेष चमक आ गई और वे
अपने सूखे होठों को थकी हुई जिह्वा से तर करने का असफल प्रयास करने लगे।
३ मई २००८ |