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१९. ४. २०

सप्ताह का विचार- जहाँ चक्रवर्ती सम्राट की तलवार कुंठित हो जाती है, वहाँ महापुरुष का एक मधुर वचन ही काम कर देता है। -हरिऔध

अनुभूति में-
आचार्य संजीव सलिल, सूर्यभानु गुप्त, मधु संधु,  चंद्रसेन विराट और डॉ. राजेश कुमार की रचनाएँ।

कलम गहौं नहिं हाथ- अधिक समय नहीं हुआ है जब मानव ने एक एक कर प्रकृति के हर तत्त्व को जीतना शुरू किया और उसका स्वामी ...आगे पढ़ें

सामयिकी में- हिंदी की लिपि बदलने की मंशा के पीछे छुपे रहस्य को खोलते प्रभु जोशी के विचार- षडयंत्र को ज़रूरत बताने की मासूमियत का मर्म

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव - टमाटर के गूदे में मट्ठा मिलाकर लगाने से धूप से जली हुई त्वचा को आराम मिलता है और वह जल्दी स्वस्थ हो जाती है।

पुनर्पाठ में- १ जून २००१ को 'घर- परिवार' स्तंभ के अंतर्गत प्रकाशित गृहलक्ष्मी के साथ काम-काज की बातें- सुनो कहानी

क्या आप जानते हैं? कि क्विक सिल्वर या पारा ऐसी एकमात्र धातु है, जो तरल अवस्था में रहती है और इतनी भारी होती है कि इस पर लोहा भी तैरता है।

शुक्रवार चौपाल- चौपाल में इस सप्ताह आँसू और मुस्कान नाटक का दूसरा भाग पढ़ा जाना था लेकिन सदस्यों के अलग ... आगे पढ़ें

नवगीत की पाठशाला में- सदस्यों को "आतंक का साया" विषय पसंद आ रहा है। सभी भाग ले सकते हैं, विशेष विवरण के लिए ऊपर का लिंक देखें।


हास परिहास
1

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सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में यू.एस.ए. से
अनिल प्रभा कुमार की कहानी
उसका इंतज़ार

झाड़न से तस्वीरों पर की धूल हटाते-हटाते, धरणी के हाथ रुक गए। बाबू जी की तस्वीर के सामने आकर उसकी आँखें अपने आप झुक गईं। बाबू जी की आँखें जैसे अभी भी किसी के आने का इंतज़ार करती हों। एक ही प्रश्न होता था उनका। उस दिन भी यही हुआ था।
''कोई बात बनी?'' प्रश्न सुनते ही सभी ठठा कर हँस पड़े थे। यह प्रत्याशित प्रश्न था। बेटे का परिवार अभी दरवाज़े से घर में दाखिल भी नहीं हो पाया कि न नमस्ते न जय राम जी की। सीधे-सादे बाबू जी की उत्कंठा एकदम औपचारिकता के सारे जाल को लाँघ कर प्रगट हो उठी। सब लोगों के हँसने से थोड़ा वह झेंप गए और थोड़ा समझ गए कि जवाब ना में है। न हँस सकी तो धरणी। जी चाहा, बाबू जी को छोटे बच्चे कि तरह बाहों में भर लें और सहला कर कहें कि मैं समझती हूँ आपकी बेचैनी, पर कुछ कर नहीं सकीं। पूरी कहानी पढ़ें...
*

शरद तैलंग का व्यंग्य
मुझको भी जेल करा दे
*

रवींद्र स्वप्निल प्रजापति का संस्मरण
अगरिया गाँव क्यों नहीं जाते
*

महेश परिमल का ललित निबंध
तृप्ति वो ही प्याऊ वाली
*

डॉ. संजीता वर्मा का निबंध
कला और सौंदर्य

पिछले सप्ताह

अविनाश वाचस्पति का व्यंग्य
अचार में चूहा
*

घर परिवार में
अर्बुदा ओहरी के साथ- यात्रा की तैयारी

*

गोपीचंद्र श्रीनागर का आलेख
डाकटिकटों पर भारत के प्रसिद्ध किले

*

फुलवारी में याक के विषय में
जानकारी, शिशु गीत और शिल्प

*

समकालीन कहानियों में भारत से
ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानी गवर्नेस

दीनानाथ चुप बैठे हैं। सामने देख रहे हैं। सामने बैठी स्त्री को उन्होंने ज़रा-सा देखा है। वह नर्स की नौकरी के लिए उनके पास आई है। वह दीनानाथ के सामने बैठी है। बीच में मेज़ है। मेज़ पर वो खत है जो दीनानाथ जी ने, जवाब के रूप में इस स्त्री को लिखा था। दून टाइम्स जैसे लोकल अखबाल में दीनानाथ जी ने गवर्नेस के लिए विज्ञाजन दिया था। संपर्क के लिए अपनी केवल बिहार की कोठी का पता भी दिया था। कुल एक चिट्ठी आई। उनकी शर्तें ही ऐसी थीं। सबसे मुश्किल शर्त यही कि गवर्नेस को चौबीस घंटे उनके रेजिडेंस में रहना होगा। विज्ञापन में उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि वो अकेले हैं और उन्हें गवर्नेस की ज़रूरत है। विज्ञापन में यह भी साफ कर दिया गया था कि उनकी सेहत ठीक नहीं है। कुल एक चिट्ठी। मारिया की चिट्ठी। जो सामने बैठी है। पूरी कहानी पढ़ें...

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