सप्ताह
का
विचार-
जहाँ चक्रवर्ती सम्राट की तलवार कुंठित हो जाती है, वहाँ
महापुरुष का एक मधुर वचन ही काम कर देता है। -हरिऔध |
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अनुभूति
में-
आचार्य संजीव सलिल, सूर्यभानु गुप्त, मधु संधु, चंद्रसेन
विराट और डॉ. राजेश कुमार की रचनाएँ। |
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इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
यू.एस.ए. से
अनिल प्रभा कुमार की कहानी
उसका इंतज़ार
झाड़न से
तस्वीरों पर की धूल हटाते-हटाते, धरणी के हाथ रुक गए। बाबू जी
की तस्वीर के सामने आकर उसकी आँखें अपने आप झुक गईं। बाबू जी
की आँखें जैसे अभी भी किसी के आने का इंतज़ार करती हों। एक ही
प्रश्न होता था उनका। उस दिन भी यही हुआ था।
''कोई बात बनी?''
प्रश्न सुनते ही सभी ठठा कर हँस पड़े थे। यह प्रत्याशित प्रश्न
था। बेटे का परिवार अभी दरवाज़े से घर में दाखिल भी नहीं हो
पाया कि न नमस्ते न जय राम जी की। सीधे-सादे बाबू जी की
उत्कंठा एकदम औपचारिकता के सारे जाल को लाँघ कर प्रगट हो उठी।
सब लोगों के हँसने से थोड़ा वह झेंप गए और थोड़ा समझ गए कि जवाब
ना में है।
न हँस सकी तो धरणी। जी चाहा, बाबू जी को छोटे बच्चे कि तरह
बाहों में भर लें और सहला कर कहें कि मैं समझती हूँ आपकी बेचैनी,
पर कुछ कर नहीं सकीं।
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शरद तैलंग का
व्यंग्य
मुझको भी जेल करा दे
*
रवींद्र
स्वप्निल प्रजापति का संस्मरण
अगरिया गाँव क्यों नहीं जाते
*
महेश परिमल का
ललित निबंध
तृप्ति वो
ही प्याऊ वाली
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डॉ. संजीता वर्मा का निबंध
कला और सौंदर्य |
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पिछले सप्ताह
अविनाश
वाचस्पति का व्यंग्य
अचार में चूहा
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घर परिवार में
अर्बुदा ओहरी के साथ-
यात्रा की तैयारी
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गोपीचंद्र श्रीनागर का आलेख
डाकटिकटों पर भारत के प्रसिद्ध किले
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फुलवारी में याक के विषय में
जानकारी,
शिशु गीत और
शिल्प
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समकालीन कहानियों में
भारत से
ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानी
गवर्नेस
दीनानाथ चुप बैठे हैं। सामने देख
रहे हैं। सामने बैठी स्त्री को उन्होंने ज़रा-सा देखा है। वह
नर्स की नौकरी के लिए उनके पास आई है। वह दीनानाथ के सामने
बैठी है। बीच में मेज़ है। मेज़ पर वो खत है जो दीनानाथ जी ने,
जवाब के रूप में इस स्त्री को लिखा था।
दून टाइम्स जैसे लोकल अखबाल में
दीनानाथ जी ने गवर्नेस के लिए विज्ञाजन दिया था। संपर्क के लिए
अपनी केवल बिहार की कोठी का पता भी दिया था। कुल एक चिट्ठी आई।
उनकी शर्तें ही ऐसी थीं। सबसे मुश्किल शर्त यही कि गवर्नेस को
चौबीस घंटे उनके रेजिडेंस में रहना होगा। विज्ञापन में
उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि वो अकेले हैं और उन्हें गवर्नेस
की ज़रूरत है। विज्ञापन में यह भी साफ कर दिया गया था कि उनकी
सेहत ठीक नहीं है। कुल एक चिट्ठी।
मारिया की चिट्ठी। जो सामने बैठी है।
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