| लालच से कभी किसी का भला नहीं हुआ 
है। बिल्ली बंदर का किस्सा हो या बिल्ली भेडि़ये का। अंगूर सदा खट्टे ही रहते 
हैं और रोटी कभी बिल्ली नहीं खा पाती है। किसी को भी लालच से लाभ हुआ हो, ऐसी 
मिसाल नहीं मिलती हैं। फिर भी लालच वो बला है जिससे गले मिलने के लिए सभी आतुर रहते 
हैं। लालच सदा ही ले डूबता है, कभी लालच में घिरकर कोई डूबने से बच नहीं पाया है। 
चाहे वो इंसान हो या कोई जीव जंतु। आज आपको चूहे की ऐसी कथाएँ बतला रहा हूँ जो लालच 
से घिरने पर अपने प्राण दे बैठे, वो सौ ग्राम का जीव लालच के कारण ही निर्जीवता को 
प्राप्त हुआ। एक शब्द ज्ञानधारी चूहे ने अपने 
पैने दाँतों से कागज को कुतरने से पहले अपनी निगाहों और पढ़ने के कौशल के जरिए उस 
लेख को पढ़ लिया जो कि फल-सब्जी के खाने से मिलने वाले फायदों को बतला रहा था। उस 
लेख को पढ़ने पर चूहे का अपने चूहेधर्म यानी कागज कुतरने से मोह भंग हो गया और वह 
तुरंत ही फल-सब्जियों की तलाश में दौड़ता कि तभी वो कागज चूहे की कूद फांद के कारण 
उलट गया और उसके दूसरी ओर प्रकाशित विज्ञापन पढ़ने पर उसे ज्ञान हुआ कि मध्यम 
प्रदेश (एम.पी.) में अचार बनाने की एक मल्टीनेशनल फैक्टरी लगी हुई है जहाँ पर 
रोजाना हजारों बोतलें अचार बनाया जाता है। विज्ञापन में दरअसल श्रमिकों की माँग की 
गई थी परंतु अपना चूहा क्योंकि आधुनिक युग का ज्ञानवान चूहा था और पढ़ना जानता था 
इसलिए वो यह समझ गया कि अचार बनाने में फल-सब्जियों का ही इस्तेमाल किया जाता है।
 विज्ञापन पढ़ते ही वो मध्यम 
प्रदेश की ओर जाने वाली एक फ्लाईट में चढ़ गया जबकि उससे जानकारी पाकर बाद में 
फ्लाईट में सवार हुआ चूहा पकड़ा गया। बाद वाली फ्लाईट चाहे देरी से गई परंतु विमान 
के सुरक्षाकर्मियों ने तलाश करके उसकी बलि चढ़ा दी। चूहे की बलि का किस्सा आप 
अखबारों में पिछले दिनों पढ़ ही चुके हैं, वो चूहा विदेश से भारत में फल-सब्जियों 
की तलाश में ही पहुँचा था परंतु वो फ्लाईट से बाहर निकल नहीं पाया और जब जहाज का 
दोबारा उड़ने का समय हुआ तो वो उतरता कि इससे पहले दिखलाई दे गया और जब दिखलाई दे 
ही गया तो उसे तलाश करके मार डाला गया। इस चूहामार युद्ध में चूहे ने विमान में 
भरपूर आतंक भी फैलाया।  तो अपना यह पहले वाला सौ ग्राम का 
चूहा, जिसे विज्ञापन पढ़ने पर आइडिया आया था, वो सकुशल उस अचार फैक्टरी में प्रवेश 
पा गया। उस फैक्टरी में घुसने में उसे खूब मशक्कत करनी पड़ी क्योंकि रात्रि में 
दरवाजे के नीचे जाने पर उसके जाति वालों ने उसे खदेड़ दिया पर वो वहाँ से खदेड़े 
जाने पर भी नहीं रुका और सीवर की नालियों के जरिये फल-सब्जियों के उस भंडार में जा 
पहुँचा जहाँ पर पहुँचने की उसकी दिली तमन्ना थी। चूहे के दिल रहा होगा और वो चूहा 
दिलदार भी था क्योंकि विपरीत परिस्थितियों में उसने हौसला नहीं खोया था।भंडार में पहुँचकर उसने खूब फल-सब्जियों को खाने का कम और कुतर डालने का खूब आनंद 
उठाया और विटामिन हासिल किए और कैलोरी का खर्चा किया। वो महंगी गोभी, शकरकंदी, 
शलजम, घिया, आम, कमल ककड़ी, सीताफल, आलू इत्यादि सभी पर अपने पैने दाँत आजमा रहा 
था। कुछ सब्जियाँ तो अचार के लिए जरूरी होती हैं परंतु कुछ सब्जियाँ अचार का वजन 
बढ़ाने और कम कीमतें होने के कारण प्रयोग में लाई जाती हैं। जिससे अचार व्यवसाय 
में खूब मुनाफा मिलता है। चूहा चाहे पढ़ा हुआ था परंतु उसे अचार बनाने की विधि के 
बारे में जानकारी नहीं थी। उसे नहीं मालूम था कि फल-सब्जियों का अचार बनाने से पहले 
खूब उबालकर फिर मशीनों में सुखाया भी जाता है। उसके बाद ही अचार बनता है। 
फैक्टरियों में धूप इत्यादि दिखलाने की रस्म-अदायगी नहीं की जाती और न इतना समय 
ही होता है। यह कार्य मशीनों के द्वारा ही निपटाये जाने का युग है।
 जिस भंडार में चूहे ने दावत उड़ाई 
थी, वो उसी में खर्राटे भर रहा था। उसे नहीं मालूम था कि उसके खर्राटों की आवाज 
किसी के कानों तक नहीं जाएगी क्योंकि चूहे के खर्राटे कोई आसमान नहीं हिला सकते 
जबकि इस चूहे की मौत से भी पृथ्वी पर कोई भूकम्प नहीं आया। शाम होते न होते 
फल-सब्जियों के उस ढेर में एकाएक उबला पानी छोड़ दिया गया, उस पानी के निकलने के 
सभी रास्ते पहले से ही बंद कर दिए गए थे। गर्मागर्म खौलते पानी और फल-सब्जियों के 
बीच में छिपे रहने के कारण वो जब तक उछलकर बाहर अपना मुँह निकालता। तब तक तो वो 
पूरी तरह उबल चुका था। उसकी चूहालीला समाप्त हो चुकी थी। यही चूहालीला बाद में 
अचारलीला बनी। जिसकी खबर अखबार में पिछले दिनों आप सभी पढ़ ही चुके हैं कि पाँच 
किलो के एक अचार के डिब्बे में ढाई सौ ग्राम का चूहा निकला। सौ ग्राम का चूहा ढाई 
सौ ग्राम का कैसे बना, कुछ तकनीकी पहलुओं के चलते इस रहस्य से पर्दा नहीं हटाया जा 
रहा है।  इस संदर्भ में कई ज्वलंत 
प्रश्नों पर प्रबुद्ध और अचार प्रेमी संगत की प्रतिक्रिया की जरूरत है। वैसे इस 
प्रकरण से इंसान के अतिरिक्त अन्य जीव जंतु भी सबक ले सकते हैं। इंसान को इस 
रिपोर्ट को अपने घर में जगह-जगह पर चस्पा कर देना चाहिए और इसकी आडियो कैसेट बनाकर 
घर में बजानी चाहिए, जिससे वे सभी सावधान हो सकें और इनकी हत्या का सबब इंसान की 
लापरवाही न बने। अचार खाने से बचना भी इसका एक निदान है परंतु ऐसे इंसान ने अचार 
खाना छोड़ दिया फिर तो वो जीभ के चटकारे कैसे ले पाएगा, रसना का बेरस होना एक भला 
इंसान सह नहीं सकता।  पहला प्रश्न, पाँच किलो अचार के 
डिब्बे में चूहा ही निकल सकता है। उसमें से हाथी का निकलना क्यों संभव नहीं है?
दूसरा प्रश्न, इस डिब्बे में से छिपकली इत्यादि का मिलना तो संभव है और एकाध 
प्रकरणों में वे मिली भी हैं परंतु उनका इन अचारों में मिलना छिपकलियों के साक्षर 
होने का सबूत नहीं माना जा सकता है?
 और अब तीसरा और अंतिम पर निहायत जरूरी प्रश्न-
 चूहा, छिपकली इत्यादि तो इतने बड़े होते हैं कि बाद में अचार में आँखों से दिखलाई 
दे जाते हैं परंतु काक्रोच, गोभी के कीड़े, सुर्रियाँ इत्यादि जो अचार बनाते समय 
इसमें घुल जाते हैं, क्या वे कभी पकड़े जा सकते हैं? और क्या इंसान इस डर से कभी 
अचार खाना छोड़ सकेगा?
 १२ अप्रैल 
२०१० |