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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है भारत से
ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानी— गवर्नेस


दीनानाथ चुप बैठे हैं। सामने देख रहे हैं। सामने बैठी स्त्री को उन्होंने ज़रा-सा देखा है। वह नर्स की नौकरी के लिए उनके पास आई है। वह दीनानाथ के सामने बैठी है। बीच में मेज़ है। मेज़ पर वो खत है जो दीनानाथ जी ने, जवाब के रूप में इस स्त्री को लिखा था।

दून टाइम्स जैसे लोकल अखबाल में दीनानाथ जी ने गवर्नेस के लिए विज्ञाजन दिया था। संपर्क के लिए अपनी केवल बिहार की कोठी का पता भी दिया था। कुल एक चिट्ठी आई। उनकी शर्तें ही ऐसी थीं। सबसे मुश्किल शर्त यही कि गवर्नेस को चौबीस घंटे उनके रेजिडेंस में रहना होगा। विज्ञापन में उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि वो अकेले हैं और उन्हें गवर्नेस की ज़रूरत है। विज्ञापन में यह भी साफ कर दिया गया था कि उनकी सेहत ठीक नहीं है।

कुल एक चिट्ठी। मारिया की चिट्ठी। जो सामने बैठी है। दीनानाथ जी ने मारिया के साथ खतो-किताबत की। मारिया ने दीनानाथ की तमाम शर्तें मान लीं और दीनानाथ जी ने उसे ज़रूरी सामान सहित इतवार को अपने रेजिडेंस पर बुला लिया, इस आश्वासन के साथ कि वो मारिया को नौकरी पर रख रहे हैं। वो पहुँच गई है। वो यानी मारिया। मारिया सामने बैठी है। मेज की परली तरफ़। दीनानाथ जी के सामने।

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