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 ६. १०. २००९

सप्ताह का विचार- विश्व में अग्रणी भूमिका निभाने की आकांक्षा रखनेवाला कोई भी देश शुद्ध या दीर्घकालीन अनुसंधान की उपेक्षा नहीं कर सकता।- होमी भाभा

अनुभूति में-
दे
वेन्द्र आर्य, कृष्ण शलभ, सत्येन्द्र कुमार अग्रवाल और हरे राम समीप के साथ महेशचंद्र द्विवेदी की रचनाएँ।

कलम गहौं नहिं हाथ- हाथों की महिमा अपरंपार है। कोई "अपने हाथ जगन्नाथ" कहता है, तो कोई कहता है, "ये हाथ मुझे दे दे ठाकुर।"... आगे पढ़ें

रसोई सुझाव- जमाने से पहले अगर दूध में पिसी हुई बड़ी इलायची और केसर डालकर दो तीन उबाल दिए जाएँ तो ऐसा दही खाने से सर्दी नहीं होती।

पुनर्पाठ में - १६ अगस्त २००१ को साहित्य संगम के अंतर्गत प्रकाशित ई हरिकुमार की मलयालम कहानी का हिंदी रूपांतर- साँवली मालकिन

क्या आप जानते हैं? कि तमिलनाडु के तंजावुर नगर में स्थित वृहदेश्वर मंदिर विश्व का पहला ऐसा मंदिर है जो ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है।

शुक्रवार चौपाल- बहुत दिनों बाद इस सप्ताह चौपाल फिर से सहज मंदिर में लगी। सबीहा के निर्देशन में के. पी. सक्सेना के नाटक खिलजी के दाँत... आगे पढ़ें

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-४ पर विशेष टिप्पणियाँ अभी नहीं आई हैं। आशा है वे जल्दी आएँ और शुरू हो कार्यशाला- ५ के गीतों का प्रकाशन।


हास परिहास

1
सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
कथा महोत्सव में पुरस्कृत
शैली खत्री की कहानी बादल छँट गए

आँख के कोने से एक बूँद आँसू निकल आया। नहीं, ये आँसू दुख के नहीं बेबसी के हैं। परिस्थितियों का क्या किया जाए। सच, समय और परिस्थितियाँ बड़ी बलवान होती हैं। ये अपने इशारों पर नचा कर रख ही देती हैं। सपने तोड़ती नहीं हैं तो सपने पूरे भी नहीं होने देती। उन सपनों का बजूद आँखों तक ही सिमटा कर रख देती हैं। फिर धीरे-धीरे बहुत कुछ समा जाता है आँखों में। वे प्यारे, मासूम और महत्वपूर्ण से लगने वाले सपने एक याद बनकर रह जाते हैं। एक ऐसी याद जिन पर न मुस्कुराया जाए और जिन्हें न भूलाया ही जा सके। सोचता-सोचता दीप रुक गया। क्या फ़ायदा इन बातों पर विचार करने से। उचित तो यह होगा कि आज के अपने नए काम के बारे में सोचा जाए, सपनों की मीमांसा फिर कभी की जाएगी। पूरी कहानी पढ़ें...
*

आस्ट्रेलिया से हरिहर झा का व्यंग्य
भारतीय छात्र- जाएँ भाड़ में
*

स्वदेश राणा का धारावाहिक संस्मरण
नचे मुंडे दी माँ का पहला भाग
*11

रंगमंच में स्वयं प्रकाश का आलेख
हिंदी नाटक कहाँ गया

*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

पिछले सप्ताह-
 

गिरीश पंकज का व्यंग्य
चार निलंबितों की वार्ता
*

विज्ञान वार्ता में शंभु सुमन से सुनें
एस्पिरिन की कहानी
*11

रघूत्तम शुक्ल का आलेख
विश्वव्यापी भारतीय संस्कृति

*

दीपिका जोशी से जानें
अन्नकूट और गोवर्धन-पूजा के विषय में
*

भाई दूज के अवसर पर गौरव गाथा के अंतर्गत सत्यवती मलिक की कहानी भाई-बहन

''माँजी...! हाय...! माँजी...! हाय!'' एक बार, दो बार, पर तीसरी बार 'हाय! हाय!' की करुण पुकार सावित्री सहन न कर सकी। कार्बन पेपर और डिज़ाइन की कॉपी वहीं कुरसी पर पटककर शीघ्र ही उसने बाथरूम के दरवाज़े के बाहर खड़े कमल को गोद में उठा लिया और पुचकारते हुए कहा, ''बच्चे, सवेरे-सवेरे नहीं रोते।''
''तो निर्मला मेरा गाना क्यों गाती है? स्नानागार में अभी तक पतली-सी आवाज़ में निर्मला गुनगुना रही थी, ''एक... लड़का था... वह रोता... रहता...।''
''बड़ी दुष्ट लड़की है। नहाकर बाहर निकले तो सही, ऐसा पीटूँ कि वह भी जाने।'' माँ से यह आश्वासन पाकर कमल कपड़े बदलने चला गया। आगे पढ़ें...

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
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