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मनु का कहना है कि राजन
समझौता कर तो लेते हैं लेकिन झुकते कभी नहीं और मैं उनका
मान रखने के लिए पीठ दुहरा लेती हूँ अपनी। शायद इसीलिए
कद्दावर राजन का मेरूदंड सठियाने का नाम नहीं लेता। और
मेरी पीठ? दुखती तो है ही, दुखाती भी है। कभी शियाटिका
बन कर टाँगों को जकड़ लेती है तो कभी स्पांडैलाइटिस बन
कर काँधे कचोट लेती है।
बहरहाल, मनु की शादी सिर
पर है तो पीठ दिखाने का सवाल ही नहीं उठता। सोच इस बात
की है कि युनाइटेड नेशन्ज़ के इंटरफ़ेस चैपल में लीसा के
साथ अपनी शादी के लिए मनु ने मुझ से कहा है कि मैं
औपचारिक समारोह के समापन पर शांतिपाठ करूँ। मुझे कतई
ऐतराज़ नहीं, सिर्फ़ फ़िक्र-सा है। डेढ़-दो सौ मेहमानों
के सामने सस्वर, ''ओं घ्यो शांति अंतरिक्षत्रं'' कहते
हुए अगर अचानक टाँग में उठती हुई असह्य चीख को कराह बन
कर चीखने से रोकना है तो मुझे अपना दायाँ घुटना एक हाथ
से पकड़ कर आगे की तरफ़ से मोड़ते हुए दूसरे हाथ में
लेकर वहीं बायीं टाँग पर खड़ा होना पड़ेगा। कोई ख़ास
मुश्किल नहीं हैं। घर में वृक्ष आसन ऐसे ही करती हूँ,
लेकिन साड़ी पहन कर नहीं, मेरी छोटी बहन ममता का कहना
है, ''कोई बात नहीं। आप चैपल में भी वृक्ष आसन पर खड़ी
हो जाइएगा। अगर लीसा के परिवार में से किसी ने पूछा तो
हम कह देंगे कि हमारे यहाँ बेटे की माँ नई बहू को ऐसा ही
पोज़ बनाकर आशीर्वाद देती है।'' |