मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


साहित्य संगम 

साहित्य संगम के इस अंक में प्रस्तुत है इ हरिकुमार की मलयालम कहानी का रूपांतर "साँवली मालकिन"। रूपांतरकार हैं रीना तंगचन।


हर रोज़ झोपड़ी के चबूतरे पर बैठी हुई सुलू पिता को पगडण्डी से ऊपर जाते हुए देखकर सोचती है - मेरी माँ कब आएगी?

कल रात उसने सपने में माँ को फिर देखा। माँ ने पास आ कर सुलू को गले से लगाया। हर रोज़ वह यही सपना देखती है - माँ आती है, उसे गले से लगाती है, गोद में बैठाती है, उसके बालों को सहलाती है। रोज़ सपने में माँ को देखती तो है पर माँ का चेहरा याद नहीं रहता। फिर भी मिलने का संतोष बना रहता है।

वह रोज़ सुबह पिता से कहती है, ''अप्पा, मैंने एक सपना देखा।'' उस समय तामि भी नहीं पूछता कि चार साल की सुलू ने सपने में क्या देखा। उसे मालूम है कि सुलू कौन सा सपना देखती है। वह रोज़ एक ही सपना तो देखती है और काम पर जाते समय याद दिला देती है कि वह माँ को वापस लाने की याद रखे।

हर रोज़ ऐसे ही सुबह होती है। सुलू का सारा दिन झोपड़ी के बाहर इस चबूतरे पर बीतता है, माँ का इंतज़ार करते, अकेले खेलते हुए, भूखे पेट कभी कभी कांजी पी कर, देर तक शाम ढले पिता के काम से वापस लौटने तक मालिक की हवेली के सामने कड़ी दोपहर में तपते हुए सूरज के नीचे तामि खड़ा है। दूर छायादार वृक्ष उसे हाथ हिला कर अपनी ओर बुलाते हैं लेकिन तामि को ज़मींदार का इंतज़ार है।

पृष्ठ-  . . ३.

आगे-

 
1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।