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विश्वव्यापी भारतीय संस्कृति
रघूत्तम शुक्ल


विष्णु पुराण की निम्नलिखित पंक्तियों कहा गया है कि संसार का आदि सभ्य देश भारत ही है, जिसका विस्तार उत्तर में हिमालय और दक्षिण में समुद्र तक उल्लिखित है।
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्
वर्ष तत् भारतं नाम भारती यत्र संततिः
अर्थात भारत देश समुद्र के उत्तर में और बर्फीले पर्वतों के दक्षिण में स्थित है। यहाँ भारत के वंशज निवास करते हैं। कहना न होगा कि राजा भरत के नाम पर इसे भारतवर्ण और सिंधु के नाम पर हिंदू भूमि या

हिन्दुस्तान कहा गया। सिंधु को अँग्रेजी में इंडस कहते हैं। जिसके कारण भारत का अँग्रेजी नाम इंडिया पड़ा। 'भा' का अर्थ प्रकाश, ज्ञान या विद्या से है और रत का अर्थ है लीन रहना। ज्ञान, सभ्यता और संस्कृति को विश्व में विस्तृत करना, सबको सुखी, समृद्ध तथा सुसंस्कृत बनाना इस भूमि के पावन लक्ष्य रहे हैं। सारे विश्व में यहाँ का सांस्कृतिक साम्राज्य था इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि आर्य संस्कृति के सूक्ष्म और स्थूल चिह्न आज भी विश्व में सर्वत्र विद्यमान हैं।

भौगोलिक सीमाओं से परे

भारतीय श्रेष्ठ ज्ञान, संस्कार और उच्च परंपराएँ जाति, धर्म और भौगोलिक सीमाओं से परे हैं। यही कारण है कि मंसूर, समृद्ध फौजी बुल्लाशाह और दारा शिकोह जैसे इस्लाम धर्मावलंबियों ने वेदांत ज्ञान का अवलंब किया। मैक्समुलर, शॉपेनहर और गोल्डस्टकर आदि ने उपनिषदों की महत्ता को मुक्त कंठ से स्वीकारा और उच्चतम बुद्धि की उपज करार दिया। मानव सभ्यता के आदि ग्रंथ वेद भारत में ही गूँजे। उपनिषद इन्हीं वेदों के ज्ञान कांड हैं। वेदों में विमान और नौकायन के उल्लेख यह स्पष्ट करते हैं कि जल, थल और नभ मार्ग से हमारे पूर्वज यातायात करने में सक्षम थे। और देश-देशांतर में गमन करते थे। यजुर्वेद में लिखा है- अयं वेनश्चोदयत् पृथ्विगर्भा ज्योतिर्जरायू रजसो विमाने। इम मपासंगमें सूर्यस्य शिशुं न विप्रांमतिभींरिहतिं। उपयामगृहीतो सिकर्यत्वा (यजुर्वेद अध्याय ७ मंत्र १६)  इसी तरह अध्याय ४ मंत्र ३४ में बाज पक्षी की भांति देशांतर में जा जाकर ऐश्वर्य युक्त होने और दूसरों को ऐश्वर्य युक्त बनाने का वर्णन आया है जो विश्व एकीकरण की ओर संकेत करता है- श्येनो भूत्वापरां पत यज्ञमानस्य गह्वान गच्छ तन्नौ संस्कृतम्। रामायणकालीन पुष्पक और महाभारत में उल्लिखित शाल्व का सौभ विमान प्रसिद्ध ही है।

भारतीय संस्कृति का अनेक भाषाओं पर प्रभाव

विश्व की अनेक भाषाओं में संस्कृत शब्दों तथा आराध्य देवी देवताओं में भारतीय देवी देवताओं के नामों तथा चरित्रों का मिलना जुलना यह स्पष्ट करता है कि यह भारतीय संस्कृति ही देन है। संस्कृत ही सब भाषाओं की जननी है और यह भाषा भारत में ही समृद्ध हुई। संस्कृत के हम्र शब्द का अर्थ रनवास या रानियों के निवास से है। अंग्रेजी का हैरम और उर्दू का हरमसरा इसी अर्थ को प्रकट करते हैं। हंस पक्षी को अफगानिस्तान की पुश्तो भाषा में जंस जर्मनी में ज्यूस और अंग्रेजी में गूज कहते हैं। ये शब्द स्थान परिवर्तन के कारण बदलते चले गए हैं। हमारे यहाँ ईश्वर को यह्वन अर्थात् जो आवाहन के योग्य है कहते हैं। यहूदियों और यूरोप वासियों द्वारा इसे यहोबा या जेहोवा कहा जाता है। भारतीयों का कोद्धा इस्लाम का खुदा बन जाता है। कोद्धा का अभिप्राय है क प्रश्नवाचक अर्थात् अनिर्वचनीय तथा श्रद्धा सत्यवाचक अर्थात् शिव ब्रह्म या सृजक। हिंदू विवाह रीतियों में कंगन खोलने की परंपरा है। कंगन को हस्तबंध कहा जाता है। अंग्रेजी का हज्बैंड शब्द इसी आधार पर बना।

अन्य धर्म और भारतीय देवता

ऐसे प्रकट चिह्नों और अवशेषों की कमी नहीं है, जिनसे भारतीय संसकृति के विश्व के कोने कोने में फैले होने के प्रमाण मिलते हैं। दक्षिण अमरीका के पेरू देश में इंका नामक प्राचीन सभ्यता थी। ये लोग शिव के उपासक और अपने को सूर्य का वंशज माननेवाले थे। कंबोजिया के अंगकोरवाट के मंदिर वहाँ भारतीय संस्कृति का होना प्रमाणित करते हैं। दक्षिण भारत के राजेन्द्र चोल ने यहाँ विजय पायी थी। जावा बारबोडर नामक स्थान से ऐसे ही प्रमाण मिले हैं। सन १९०७ में प्राचीन हिट्टाइट राज्य की राजधानी बोगाजकोई में पाई गयी मिट्टी की पट्टिकाओं में वैदिक देवता मित्र वरुण इंद्र नासत्यस का उल्लेख है।

हिंदू राज्यों का विस्तार

टैल अर्मना में पाये गये पत्रों में संस्कृत की रूपरेखावाले नाम पाए गए हैं। कैस्साइट जाति के कुछ नाम संस्कृत के हैं। शूर्य और मारितस नाम के राजा सन १७४६ और ११८० में बेबीलोनिया में थे। इनके नाम सूर्य और मारुत से बिगड़कर ही बने थे। ऐतिहासिक उपन्यासकार अमृतलाल नागर के अनुसार रघु ने ईरान और राम ने ईराक जीता था। रघु ने अफगानिस्तान पर भी विजय पाई और हेते या हिट्टी असुर उनके डर से लंका चले गए। इन्हें बाद में राम ने मारा। वे कहते हैं ईराक में स्थित राजा सगर या सार्गेन महान की अयोध्या भी राम ने अपने अधिकार में कर ली थी।

हुफरात की अजुत से सरयू स्थित अयोध्या तक और लंका से कश्मीर तक प्रतापी सम्राट रामचंद्र ने प्रजा को अत्याचारी दुष्टों के निर्मम पंजे से छुड़ाया। जावा में हिंदू राज्य थे। सुमात्रा में सबसे पुराना हिंदू राज्य श्रीविजय (पेलंबग) था। बोर्नियो के राजा मूलवर्मा ने बहु सुवर्णकम नामक यज्ञ किया और ब्राह्मणों को बीस हज़ार गायें दान दीं। यह राजा अश्ववर्मा के पुत्र और कुंडुंग के पौत्र थे। कुंडुंग ही कौंडिन्य थे। इस नाम का एक भारतीय ब्राह्मण चौथी शती में 'फू-नान' का राजा चुना गया। इसे कंबुज या कंबोज भी कहते हैं। वहाँ उसने हिंदू राज्य और संस्कृति स्थापित की। स्याम या थाईलैंड के पर्व त्यौहार आज भी ब्राह्मण प्रणाली पर हैं। बर्मा के मान राज्य का नाम द्वारवती था। जापान में बौद्ध धर्म के अतिरिक्त गणेश और विष्णु की प्रतिमाएँ मिली हैं। युधिष्ठिर की दिग्विजय में अर्जुन ने प्राग्ज्योतिषपुर के राजा भगदत्त से युद्ध किया और कर वसूला। भगदत्त की सेना में चीनी सिपाही भी थे। अर्थात् भगदत्त का राज्य विस्तार चीन तक था। महाभारत के अनुसार देवों ने समुद्रतल वासी कालेयों और अर्जुन ने अर्जुन ने निवातकवचों का दमन किया। भौगोलिक दृष्टि से यह स्थान कैलीफोर्निया और अमरीका है जहाँ भारत का ध्वज फहराया।

देवताओं के राजा इंद्र या इन दर या इनथोर मध्य एशिया के आर्य शासक थे, जो हमारे ही साथी मित्र हितैषी और पूज्य थे। वे भारतीय मनीषी ही थे जिन्होंने पृथ्वी की अन्य ग्रहों से सापेक्षिक गति का अध्ययन कर कालगणना के सिद्धांत निकाले। जो कार्य आर्यभट्ट ने किया उसका श्रेय कोपरनिकस (पोलैंड) को दिया गया। गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज न्यूटन से पहले महाभारत के समय में भी विद्यमान थी। शांति पर्व में भीष्म कहते हैं-
भूपैः स्थैर्यं गुरुत्वं च काठिन्यं प्रसवात्मता
गंधो भारश्च शक्तिश्च संघातः सथापनी धृतिः
भारत ने विश्व को सभ्य और सुसंस्कृत बनाकर आर्य अथवा वैदिक संस्कृति विस्तीर्ण एवं प्रसारित की। लेकिन तीन सौ वर्षों की पराधीनता में भारत ने बहुत कुछ खोया है और आक्रमणकारियों द्वारा उसकी महान संस्कृति की विनाश किया जाता रहा है। अब वह समय है कि हम जागें और जो कुछ खोया है उसका पुनः संरक्षण करें।

१९ अक्तूबर २००८

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