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 २९. ६. २००९

इस सप्ताह- समकालीन कहानियों में यू.एस.ए से सुदर्शन प्रयदर्शिनी की कहानी धूप
अब हम साथ नहीं रह सकते। रेखा नहीं जानती थी कि ये शब्द कैसे अपने-आप आज निकले थे, जो विशाल तक पहुँचने से पहले उसके हाथ में पकड़े चाय के कप पर ठहर गये थे और चाय की ऊपरी सतह पर तैर रहे थे। चाय के कप का कंपन बढ़ गया था। शायद इन शब्दों का भारीपन सतह पर बैठ नहीं पा रहा था। दोनों की नजरें मिली जैसे खाली कोटर हों और जिनका सब कुछ बहुत पहले ही झर चुका हो। विशाल की आँखें उस ओर उठीं और फिर जैसे हताहत पक्षी की तरह नीचे बैठती गईं। सुबह-सुबह उसकी आवाज में जो रोष होता था, वह वहीं का वहीं झाग हो गया था। उसे लगा होगा कि वह शायद रोज कुछ ज्यादा ही कहता या झटकता रहा है। चाय का कप धीरे-धीरे होंठों की सीमा तक पहुँचने से पहले ही थरथरा गया था और बिन-आवाज किए बीच की टेबल पर ढेर हो गया था। एक अजगर सी चुप्पी दोनों के बीच पसर गई थी। रेखा जानती थी वह ऊँचा-ऊँचा बोलेगा, गालियाँ देगा और उसके सारे खानदान की खपच्चियाँ उधेड़ेगा। पूरी कहानी पढ़ें-

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स्नेह मधुर का व्यंग्य
कैसे कैसे अभिनंदन समारोह

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डॉ. राजकुमार सिंह का निबंध
हिंदी काव्य में गंगा नदी

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संस्कृति में मानसी से जानकारी
भारतीय शास्त्रीय संगीत

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समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

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पिछले सप्ताह

प्रमोद ताम्बट का व्यंग्य
ये मीठे मीठे लोग

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डॉ. ओमप्रकाश पांडेय का आलेख
भारतीय संस्कृति में डूबा एक फ़्रांसीसी परिवार

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डाकटिकटों के स्तंभ में प्रशांत पंड्या के साथ करें
शौक डाक-टिकटों के संग्रह का

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स्वाद और स्वास्थ्य में
स्वास्थ्यवर्धक संतरे

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कथा महोत्सव में पुरस्कृत-
अजय कुमार गुप्ता की कहानी रेलगाड़

यह जीवन तो एक रेलगाड़ी के सदृश्य है, जो एक स्टेशन से चलकर गंतव्य तक जाती है। न जाने कितने स्टेशनों से होकर गुज़रती है। मार्ग में अगणित पथिक आपके साथ हो लेंगे और अगणित सहयात्री आप से अलग हो जाएँगे। कुछ सहयात्री लंबी अवधि के लिए आपके साथ होंगे, जिन्हें अज्ञानवश हम मित्र-रिश्तेदार समझते हैं, परंतु शीघ्र ही वे भी अलग हो जाएँगे। लंबी अवधि की  यात्रा भी सदैव मित्रतापूर्वक नहीं बीत सकती, तो कभी कोई छोटी-सी यात्रा आपके जीवन में परिवर्तन ला सकती है, संपूर्ण यात्रा को अविस्मरणीय बना सकती है।'  विजय चेन्नई रेलवे स्टेशन पर बैठकर एक आध्यात्मिक पुस्तक के पन्ने पलटते हुए यह गद्यांश देखा। चारों ओर जनसमूह, परंतु नीरव और सूना। वह अकेले ही अकेला नहीं था। उसने चारो ओर नज़र दौडाई, सभी लोग भीड़ में, परंतु अकेले। किसी को किसी और की सुध नहीं। इधर-उधर देखा, चाय की दुकान, फल की दुकान, मैग्ज़ीन कार्नर और यहाँ तक पानी पीने का नल, हर जगह विशाल जन समूह।  पूरी कहानी पढ़ें-

अनुभूति में-
क्षेत्रपाल शर्मा, डॉ. वशिष्ठ अनूप,  डॉ. अश्वघोष, चंद्रसेन विराट और अर्बुदा ओहरी की नई रचनाएँ।

कलम गही नहिं हाथ- पिछले सप्ताह एक शाम शहर के एक जानेमाने रेस्त्राँ में जाना हुआ। रेस्त्राँ कुछ खाली-खाली सा था। शाम के सात बजे...  आगे पढ़े

रसोई सुझाव- अंडे की ताज़गी की पहचान के लिए उसे नमक मिले ठंडे पानी में रखें। यदि डूब जाए तो ताज़ा है और यदि ऊपर आ जाए तो पुराना।

पुनर्पाठ में - १ अप्रैल २००१ को साहित्य संगम में प्रकाशित अमृता प्रीतम की पंजाबी कहानी का हिंदी रूपांतर एक जीवी... एक रत्नी... एक सपना...।

 

शुक्रवार चौपाल- पिछले प्रदर्शन के बाद थियेटरवाला द्वारा खजूर में अटका की तैयारियाँ शुरू हो गई हैं। दूसरी और प्रतिबिंब का नाटक...  आगे पढ़ें

सप्ताह का विचार- चिंता से चित्त को संताप और आत्मा को दुर्बलता प्राप्त होती है, इसलिए चिंता को तो छोड़ ही देना चाहिए। -ऋग्वेददी


हास परिहास

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सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

पाठशाला में इस माह की कार्यशाला-३ का विषय है सुख-दुख इस जीवन में, सभी भाग ले सकते हैं।

 
अभिव्यक्ति का १३ जुलाई का अंक कदंब विशेषांक होगा। इस अवसर पर कदंब के पेड़ या फूल से संबंधित कहानी और व्यंग्य का स्वागत है।

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