कलम गही नहिं हाथ
अकेलेपन का अँधेरा
पिछले सप्ताह एक शाम शहर के एक जानेमाने
रेस्त्राँ में जाना हुआ। रेस्त्राँ कुछ खाली-खाली सा था। शाम के सात बजे
थे और यह समय इमाराती रेस्त्राओं में भीड़-भाड़ वाला नहीं होता। अपने
खाने का आर्डर देकर हम प्रतीक्षा करते हुए बातचीत में लगे थे कि वेटर को
एक छोटा सा बर्थ डे केक ले जाते हुए देखा। हमारे चेहरे पर भी मुस्कान आ
गई, शायद किसी का जन्मदिन होगा। यह रेस्त्राँ काफ़ी बड़ा है और एक कोने
से हर कोना नहीं दिखाई देता। सज्जा भी कुछ ऐसी है कि बीच बीच में अवरोध
बनाकर ट्रे या प्याले प्लेट रखने के स्थान बनाए गए हैं, इसलिए पता नहीं
चला कि जन्मदिन किसका है।
थोड़ी देर में वेटर-वेट्रेसों के ज़ोर-ज़ोर
से हैपी बर्थ डे गाने की आवाज़ें आने लगीं। फिर ज़ोर-ज़ोर से ताली की
आवाज़ें फिर हैपी बर्थ डे, हैपी बर्थ डे, थैंक्यू थैंक्यू। ऐसे दृश्य
यहाँ असामान्य नहीं हैं। लोगों को हंगामे का शौक होता ही है। अपनी
मित्रमंडली के साथ जन्मदिन बिताना और रेस्त्राँ को पहले से सूचित कर
उसमें शामिल कर लेना काफी मजेदार बात है। जब ४-६
कर्मचारी मिलकर व्यावसायिक ढंग से हंगामा करते हैं तो रेस्त्राँ के सभी
लोग एक बार मुड़कर उस ओर देख ही लेते हैं, बस खर्च करने वाले का अहं
संतुष्ट हो जाता है। आखिर दुनिया में इनसान को और चाहिए ही क्या?
इस प्रकार जन्मदिन मानाने का एक और कारण भी है। बहुत से लोग
परिवार से दूर रहते हैं। व्यस्त दुनिया में दोस्त बनाने का समय भी बहुतों
के पास नहीं है। इस चमक-दमक वाली दुनिया में हर किसी पर विश्वास कर दोस्त
बना लेना आसान भी तो नहीं। ऐसी स्थिति में अगर बंद कमरे में अकेले अपना
जन्मदिन मनाने की इच्छा नहीं हो तो इस प्रकार जन्मदिन मनाना एक अच्छा
सौदा हैं। लोग रेस्त्रा के हंगामे के बीच दूर अपने देश फोन लगाते हैं,
अपनों से बात करते हैं, अपनों की बात वेटरों से करवाते हैं, गालों तक
छलकते हुए आँसू पोछते हैं और अकेलेपन का अंधेरा पंख लगाकर उड़ जाता है।
हाँ तो उस दिन हंगामे के बाद हमने एक
वयोवृद्ध सज्जन को प्रसन्न मुखमुद्रा के साथ धीरे धीरे होटल से बाहर जाते
देखा। सज्जन रुपरंग से एशियन नज़र आते थे। वेटरों की भीड़ उनके पीछे थी,
ज़ाहिर है आज के बर्थ-डे ब्वाय वही थे। वे खुशी-खुशी
वेटरों से हाथ मिला रहे थे। इमारात के नियमों के अनुसार
प्रवासियों के लिए बिना काम किए इस देश में रहना संभव नहीं है। इसलिए
उम्रदराज़ प्रवासी यहाँ यदाकदा ही दिखाई देते हैं। जीवन के इस पड़ाव पर
वे किस कारण इस देश में अकेले हो आए होंगे यह सवाल देर तक मन को मथता
रहा।
पूर्णिमा वर्मन
२९ जून २००९
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