"पालक एक आने गठ्ठी, टमाटर छह
आने रत्तल और हरी मिर्चें एक आने की ढेरी "पता नहीं तरकारी
बेचनेवाली स्त्री का मुख कैसा था कि मुझे लगा पालक के पत्तों
की सारी कोमलता, टमाटरों का सारा रंग और हरी मिर्चों की सारी
खुशबू उसके चेहरे पर पुती हुई थी।
एक बच्चा उसकी झोली में दूध
पी रहा था। एक मुठ्ठी में उसने माँ की चोली पकड़ रखी थी और
दूसरा हाथ वह बार-बार पालक के पत्तों पर पटकता था। माँ कभी
उसका हाथ पीछे हटाती थी और कभी पालक की ढेरी को आगे सरकाती थी,
पर जब उसे दूसरी तरफ बढ़कर कोई चीज़ ठीक करनी पड़ती थी, तो
बच्चे का हाथ फिर पालक के पत्तों पर पड़ जाता था। उस स्त्री ने
अपने बच्चे की मुठ्ठी खोलकर पालक के पत्तों को छुडात़े हुए
घूरकर देखा, पर उसके होठों की हँसी उसके चेहरे की सिल्वटों में
से उछलकर बहने लगी। सामने पड़ी हुई सारी तरकारी पर जैसे उसने
हँसी छिड़क दी हो और मुझे लगा, ऐसी ताज़ी सब्जी कभी कहीं उगी
नहीं होगी।
कई तरकारी बेचनेवाले मेरे घर
के दरवाज़े के सामने से गुज़रते थे। कभी देर भी हो जाती, पर
किसी से तरकारी न ख़रीद सकती थी। रोज़ उस स्त्री का चेहरा मुझे
बुलाता रहता था।
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