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24. 6. 2007

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हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह—
साहित्य संगम में कोल्लूरि सोम शंकर की
तेलुगू कहानी का हिंदी रूपांतर लड़का, लड़की और इंटरनेट
हैदराबाद रेलवे स्टेशन पर मुसाफ़िरों का शोर मच रहा है! सुबह के साढ़े छै बजने वाले हैं। हैदराबाद से नई दिल्ली जाने वाली आंध्र प्रदेश एक्सप्रेस दो नंबर प्लेटफ़ार्म पर खड़ी है.....` माइक पर लगातार घोषणाएँ जारी है! संदीप का इंतजार कर रहा है नवीन! संदीप को सी-ऑफ करने के लिए आना था! देरी हो रही। है! संदीप के आने की सूचना तक नहीं! नवीन बेचैन होने। लगा! इतने में दूर से हाथ हिलाता हुआ संदीप आ गया!
`क्या रे? इतनी देर? और पांच मिनट न आता तो ट्रेन निकल चुकी होती!`
"क्या करुँ यार? कल रात इंटरनेट सेंटर में बहुत देर हो गई! हम जो गरम मसाला वेब साइट देखते हैं ना, उन में बहुत सारे अपडेट आये हैं!

*

हास्य-व्यंग्य में मुरली मनोहर श्रीवास्तव का गब्बरी संवाद
एक करोड़ जनता और एक मिस इंडिया? बड़ी बेइंसाफ़ी है!
"सरदार आप कहें तो उठा लाऊँ सभी को इस गुस्ताखी के लिए। वैसे जमाना इतना खराब आ गया है कि इस देश में सही बात कहना बड़ा खतरनाक काम हैं मैंने तो आपका नमक खाया है मेरी बात छोड़िए अभी भी पुराने जमाने के उसूल मानता हूँ और नमक की कद्र करता हूँ वर्ना यहाँ तो ऐसे लोग पैदा हो गए हैं कि नमक की बोरी भी खा लें तो भी वफादारी न करें सरदार आपकी बसंती के होते कोई ऐरी गैरी मिस इंडिया बन जाए यह भला जंगल के लोग कैसे बर्दाश्त करेंगे? सुना है ये बड़ी प्रतियोगिता वाले छोटे मोटे गांव वालों को घास ही नहीं डालते कुछ खास पैमाने सेट कर के दस बीस छोरियों में से पूरे देश की ब्यूटी का फैसला कर डालते हैं।

*

धारावाहिक में
ममता कालिया के उपन्यास दौड़ की चौथी किस्त
विपणन के सभी पहलुओं पर खुल कर बहस हुई। बहुत-सी ईंधन कंपनियाँ मैदान में आ गईं थीं। कुछ बहुराष्ट्रीय तेल कंपनियाँ एल.पी.जी. इकाई खोल चुकी थीं, कुछ खोलने वाली थीं। दूसरी तरफ़ कुछ उद्योगपतियों ने भी एल.पी.जी बनाने के अधिकार हासिल कर लिए थे। इससे स्पर्धा तो बढ़ ही रही थी। व्यावसायिक उपभोक्ता भी कम हो रहे थे। निजी उद्योगपति अपनी फर्मों में अपनी बनाई एल.पी.जी. इस्तेमाल कर रहे थे। बहुराष्ट्रीय कंपनी की फ़ितरत थी कि शुरू में वह अपने उत्पाद का दाम बहुत कम रखती। जब उसका नाम और वस्तु लोगों की निगाह में चढ़ जाते वह धीरे से अपना दाम बढ़ा देती।

*

टिकट संग्रह में इस बार
भारत, थाईलैंड और कैनेडा के डाक टिकटों में अमलतास
इस लेख का प्रारंभ लाओस के एक टिकट से हुआ था तो इसका समापन भी लाओस के ही एक सुंदर टिकट से करते हैं। इस टिकट को 1988 में हेलसिंकी नगर में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय डाक-टिकट प्रदर्शनी के अवसर पर जारी किया गया था। प्रदर्शनी का नाम था फ़िलांडा-88, ध्यान से देखें तो टिकट के बायीं ओर निचले कोने पर 1988 का वर्ष अंकित किया गया है। इसके साथ ही टिकट का मूल्य 33 किप अंकित है। इसके ऊपर अमलतास का वानस्पतिक नाम कैसिया फिस्टुला बारीक अक्षरों में लिखा है। नाम के ठीक ऊपर हल्के और गहरे नीले रंग में एक आकृति है। बताइए तो कि यह क्या है?  -- ये है फ़िलांडा-88 के कलात्मक लोगो का चित्र।

*

साहित्य समाचार में

 

गीत, अंजुमन,
कविता और नई हवा
स्तंभों के अंतर्गत
ढेर सी
नई रचनाएँ

-पिछले अंकों से-
कहानियों में
बसेरा- शैल अग्रवाल
अंतिम तीन दिन- दिव्या माथुर

पेड़ कट रहे है- सुमेर चंद
वसीयत- महावीर शर्मा

मुलाक़ात- शिबन कृष्ण रैणा
थोड़ा आसमान...- रवींद्रनाथ भारतीय
*

हास्य व्यंग्य में
अमलतास की...- शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
अमलतास बोले तो?- अभिनव शुक्ल
काश! हम भी कबूतरबाज़ होते-गुरमीत बेदी
पॉलिथीन युग पुराण- वीरेंद्र जैन
*

प्रकृति में
अर्बुदा ओहरी का आलेख
अमलतास

*

टिकट संग्रह में
पूर्णिमा वर्मन ढूँढ लाई हैं
डाक टिकटों के संसार में अमलतास
*

निबंध में धर्म प्रकाश जैन का
अमलतास से परिचय

और डॉ जगदीश व्योम की गलियों में
फिर फूले अमलतास

*

दृष्टिकोण में
"भारतदीप" का विश्लेषण
मुद्दे उछलते क्यों हैं

*

रसोईघर में
तपती गरमी के लिए ठंडी
आम मधुरिमा

*

महानगर की कहानियों में
पर्यावरण की खुशबू में डूबी
सुभाष नीरव की धूप

*

घर परिवार में
अतुल अरोरा पर मौसम की मार
अब तक छप्पन

सप्ताह का विचार
बेहतर ज़िंदगी का रास्ता बेहतर किताबों से होकर जाता है। - शिल्पायन

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

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