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                   अमलतास
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					अर्बुदा ओहरी
 
 स्वर्णिम छटा को समेटे हुए 
                  अमलतास गर्मियों के मौसम में इठलाता, पीले सुनहरी फूलों से लदा 
                  हुआ, सूरज की रोशनी को और भी चमकीला बना देता है। गरमाल, 
                  राजवृक्ष, स्वर्णांश, बहावा, कोनराई कितने ही नामों से पहचाने 
                  जाने वाले इस वृक्ष को अंग्रेज़ी में गोल्डन शावर" या "गोल्डन 
                  ट्री" भी कहा जाता है। वनस्पति विज्ञान में अमलतास को "कैसिया 
                  फिस्टुला" कहते हैं और आयुर्वेद में इसे "स्वर्ण वृक्ष"। 
                  वाल्मीकि ऋषि ने इसकी स्वर्णिम आभा को देखते हुए "कंचन वृक्ष" 
                  नाम दिया। इसके सौंदर्य के कारण भिन्न-भिन्न नामों से इसे 
                  अलंकृत किया गया है। भारत में प्रायः हर प्रदेश में इसका नाम 
                  अलग है। कहीं माला के समान लटकते फूलों के कारण इसे कृतमाल कहा 
                  गया तो कहीं इसकी सुंदरता व प्रकृति के कारण सोनहली। परंतु प्यार 
                  से दिए गए अमलतास के सभी नाम बड़े ही प्यारे हैं। यह मूल रूप से दक्षिण एशिया, 
                  दक्षिणी पाकिस्तान और भारत का वृक्ष है पर अमेरिका, म्यामार, 
                  श्रीलंका, बर्मा, वेस्टइंडीज़ में भी बहुतायत से पाया जाता है। 
                  यह सूर्य प्रिय वृक्ष है जो लवण तथा आकाल की स्थिति को भी सह 
                  सकता है। अमलतास को उगाना ज़्यादा मेहनत वाला नहीं है हालांकि 
                  बीजों को उगाना थोड़ा मुश्किल होता है। बस एक बार जड़ पकड़ ले तो 
                  फिर यह परेशान नहीं करता और इसे फिर ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत 
                  नहीं होती है। रूखा मौसम यह बहुत पसंद करता है परंतु ज़रा-सी भी 
                  सर्दी अमलतास को पसंद नहीं। यह मध्यम आकार का वृक्ष है 
                  जिसकी औसत लंबाई १० से
                  २० मीटर होती है तथा इसकी वृद्धि भी 
                  तेज़ी से होती है। अमलतास की पत्ते एक से डेढ़ फिट लंबे, बड़े व 
                  संयुक्त होते हैं तथा चार से आठ पत्ते मिल कर जोड़े बनाते हैं। 
                  यों तो पत्ते बारहमासी होते हैं परंतु मार्च, अप्रैल के आसपास 
                  इसकी पत्तियाँ झड़ जाती हैं यानी कि जब अमलतास के पेड़ पर फूलों 
                  के आगमन का समय होता है तब यह अपनी पत्तियों को त्याग देता है। 
                  अमलतास का फूल का रूप बड़ा ही सजीला होता है। प्रत्येक फूल में 
                  समान आकार की पाँच पंखुड़ियाँ होती हैं जो ४ 
                  से ७ से.मी. के व्यास में सुव्यवस्थित 
                  रहती हैं। वनस्पति विज्ञान में फूलों की इस प्रकार की व्यवस्था 
                  को 'पेंडुलस रेसीम' कहते हैं। अप्रैल, मई, जून में जब भीषण गर्मी 
                  होती है तब अमलतास के फलने का समय होता है। इसे अधिकांशतः सजावट 
                  की दृष्टि से पार्क में व सड़क के किनारे उगाया जाता है। बारिश के मौसम में अमलतास पर फल 
                  आते हैं। इसके फल को लेग्यूम कहते हैं जो क़रीब
                  ३० से ६० 
                  सेमी लंबे फली के आकार के होते हैं। लेग्यूम की गंध बड़ी ही तीखी 
                  होती है। एक फली में २५ से
                  १०० तक भूरे रंग के बीज होते हैं। 
                  इसके बीज बहुत स्वादिष्ट होते हैं इसलिए इस पर कीड़े लगने का डर 
                  भी बना रहता है। फली के अंदर का गूदा काले रंग का होता है तथा 
                  बहुत ही मीठा भी होता है। बंदर इस फली के गूदे को बड़े ही चाव से 
                  खाते हैं। शायद इसीलिए अमलतास को 'बंदर लाठी' नाम से भी जाना 
                  जाता है। फली के अंदर पाए जाने वाले काले गूदे को गुजरात में 'गरमाला 
                  नो गोल' यानी अमलतास का गुड़ कहा जाता है।  केरल की लोकभाषा मलयालम में 
                  आमलतास को 'केनीकोन्ना' नाम से पहचाना जाता है। केरल के एक 
                  त्योहार 'विशु' में केनीकोन्ना का खास महत्व है। विशु भगवान 
                  कृष्ण का ही एक और नाम है। विशु का त्योहार केरल के 'मेदम' माह 
                  के पहले दिन मनाया जाता है। विशु में 'विशुकन्नि' की पूजा, 
                  अर्चना होती है। पूजा में देवगृह में बाकी पूजा सामग्री के साथ 
                  अमलतास के फूलों को विशेष रूप से विशुकन्नि को अर्पित किया जाता 
                  है। इस अवसर पर अमलतास की ऐसी धूम होती है कि सारे फूल तोड़ लिए 
                  जाते हैं। शायद ही कोई अमलतास ऐसा बचता हो जिस पर फूलों का चिह्न 
                  बचा दिखाई दे। अमलतास केरल का प्रांतीय पुष्प भी है।  अमलतास थाइलैंड का भी राष्ट्रीय 
                  फूल है। थाइलैंड की भाषा में में इसे "डोक ख्यून" नाम से जाना 
                  जाता है। थाइलैंड में अमलतास कहीं भी आसानी से देखा जा सकता है। 
                  इसके फूलों का सुनहरी पीला रंग थाई राजसिकता व बौध धर्म के 
                  प्रतीक के रूप में माना जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि पीला 
                  रंग सोमवार के दिन के लिए इंगित है और सोमवार के दिन ही थाइलैंड 
                  के राजा का जन्म हुआ था। सन २००६ में थाइलैंड में फूलों के एक 
                  समारोह में इसे शाही फूल "रेचाफ्रूइक" नाम दिया गया। रेचाफ्रूइक 
                  डोक ख्यून का ही एक और नाम है। अमलतास स्वास्थ्यवर्धक भी है 
                  जिसके कारण इसका प्रयोग अनेक दवाओं में होता है। मूलतः वनस्पति 
                  शास्त्र में अमलतास को 'औषधीय वृक्ष' के नाम से जाना जाता है। 
                  अमलतास का शाब्दिक अर्थ अम्लीय, क्षारीय प्रकृति वाला वृक्ष। 
                  क्षारीय प्रकृति होने के कारण अमलतास की छाल का उपयोग मुख्यतः 
                  चमड़ा-शोधन में किया जाता है। यूनानी दवाइयाँ बनाने के लिए 
                  अमलतास को बहुत उपयोग में लिया जाता है। इसका पाचन तंत्र पर बहुत 
                  ही अच्छा असर देखा गया है। अमलतास के बीज के आस-पास लगा गूदा पेट 
                  साफ़ करने के लिए दवा के रूप में प्रयोग में आता है। इसलिए 
                  जिन्हें कब्ज़ रहता है उन्हें इसके सेवन की सलाह दी जाती है। 
                  छोटे बच्चों को अमलतास के बीज पीस कर दिए जाते हैं जिससे उनके 
                  पेट में हवा बनने की समस्या नहीं होती तथा हाज़मा भी ठीक रहता 
                  है। ऐसा भी माना जाता है कि यह शरीर में एकत्रित विषैले पदार्थों 
                  को निकालने में मदद करता है। यहाँ तक कि पेट के कीड़ों से निजात 
                  पाने के लिए भी अमलतास को उपयोग में लाया जाता है। यह मूत्र 
                  वर्धक के रूप में भी काम आता है। 
 अमलतास का गूदा पथरी, मधुमेह तथा दमे के लिए अचूक दवा के रूप में 
                  माना जाता है। यह एक अच्छा दर्द निवारक है साथ ही साथ रक्त शोधक 
                  के रूप में भी इसके सकारात्मक प्रभाव देखे गए हैं। त्वचा के लिए 
                  भी इसे उत्तम माना जाता है और त्वचा की जलन को कम करने के लिए 
                  इसका प्रयोग किया जाता हैं। यह गर्मी में त्वचा की देखभाल के लिए 
                  अच्छा साबित हो सकता है। अमलतास की फलियों को चमत्कारिक गुणों से 
                  भरपूर माना जाता है। प्रायः अलसर, तेज़ बुखार, मलेरिया, पीलिया, 
                  कमज़ोरी एवं पेचिश जैसे रोगों में इनके प्रयोग गुणकारी सिद्ध हुए 
                  हैं। पुरानी मान्यता के अनुसार अमलतास की सूखी फली को यदि तकिए 
                  के नीचे रखकर सोया जाए तो बुरे, डरावने व दुखद स्वप्नों से 
                  मुक्ति मिलती है अतः भीरु प्रकृति के लोगों के लिए यह एक सफल 
                  टोटके की तरह सिद्ध हुआ है।
 मैक्सिको में यह वृक्ष आग जलाने 
                  के स्रोत के रूप में जाना जाता है। इसकी लकड़ी लाल भूरा रंग लिए 
                  होती है तथा मज़बूत, भारी व स्थाई होने के कारण कहीं-कहीं 
                  फर्नीचर बनाने के काम में आती है।  अमलतास के बीज में
                  २४ प्रतिशत प्रोटीन,
                  ५१ प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट व क़रीब
                  ४ से ५ 
                  प्रतिशत वसा होता है। फूलों में भी विभिन्न प्रकार के कार्बनिक 
                  रसायन पाए जाते हैं। फलियों में ग्लूकोज़ प्रचुर मात्रा में पाया 
                  जाता है। कार्बोहाइड्रेट, वसा तथा प्रोटीन के सही संतुलन का कारण 
                  ऐसा माना जाता है कि यह शरीर को सही अनुपात में ऊर्जा प्रदान 
                  करता है तथा शरीर को इससे अच्छी ताक़त भी मिलती है।  भारतीय डाकतार विभाग ने अमलतास 
                  की सुंदरता तथा औषधीय गुणों को ध्यान में रखते हुए दो डाक-टिकट 
                  भी जारी किए हैं। २० नवंबर
                  २००२ को २० 
                  रुपये का अमलतास की फोटो लगा लिफ़ाफ़ा भी जारी किया। १६ जून 
					२००७ |