इस सप्ताह—
समकालीन कहानियों में
भारत से अलका सिन्हा
की कहानी
अपूर्णा
''बोलो बिट्टू, तोमार नाम की? बोलो।'' दादी ने पूछा तो बिट्टू ने अपनी बड़ी-बड़ी भोली
आँखें दादी के पोपले चेहरे पर टिका दीं। दादी ने उसे पुचकारा, ''बिट्टू बोलो, आमार
नाम हिम।'' पर हिम नहीं बोला।
दादी के गले में बाँहें डाल हँसता रहा, जैसे अपना नाम
बोलने में कोई गुदगुदी होती हो। दादी ने फिर समझाना चाहा, पर हिम वैसे ही नटखट-सा
मुस्कराता रहा। फिर एकाएक आँखों को गोलमटोल करता हुआ तुतला उठा, ''तोमार नाम की?''
दादी ने जैसे सोचा ही न हो, वह कुछ सकपका गई। नाम याद करते हुए सचमुच एक गुदगुदी-सी
हो गई पूरे शरीर में। दादी को यों निरुत्तर देख हिम ने समझाते हुए कहा, ''बोलो,
आमार नाम दा-दी।''
*
हास्य व्यंग्य में
गुरमीत बेदी समझा रहे हैं—
संभावनाएँ बहुत हैं...!
ग़रीब की मजबूरियों, मुल्क
की समस्याओं और लीडर के बहानों की तरह मेरे बेटे के सवालों
का भी कोई अंत नहीं है। उसका ताज़ा सवाल नव वर्ष के
ग्रीटिंग कार्ड में अंकित इन शब्दों को लेकर है कि नया
साल, नई संभावनाएँ लेकर आए। बेटा पूछ रहा है कि ऐसी कौन सी
संभावनाएँ हैं जो बीते साल अपना जलवा दिखाने से रह गई थी
और इस साल धूम मचाएँगी? लगे हाथ वह यह भी पूछ रहा है कि पापा, नई
संभावनाएँ लेकर कौन आएगा?
*
दृष्टिकोण के अंतर्गत
सिद्धेश्वर सिंह की उड़ान
गाँधीगिरी
के आश्चर्यलोक में
इस वर्ष हिंदी भाषा को एक नया शब्द मिला है-
गाँधीगिरी। यह
अलग बात है कि भाषा के जानकार और जिज्ञासु इस शब्द के निर्माण और निहितार्थ पर लंबी
बहस कर सकते हैं लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस एक अकेले शब्द
ने आज के समय और समाज में गाँधीवाद की प्रासंगिकता और प्रयोग पर नए सिरे से बहस छेड़
दी है। यह सभी को मालूम है कि इस बहस का कारण एक आम बंबइया हिंदी फ़िल्म 'लगे रहो
मुन्ना भाई' और उसके कथ्य के साथ निरंतर हो रहे प्रयोगों की नई- नई कड़ियाँ
हैं।
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साहित्यिक निबंध
में दीप्ति गुप्ता द्वारा रेखाचित्र
गुलाब सिंह
आम
के पेड़ का थाँवला बनाता ''गुलाब सिंह'', बड़ा मगन हुआ, कुछ
गुनगुनाता-सा, अपने काम में लगा हुआ था। कल से उसने लगभग सभी
पेड़ों के थाँवले बनाकर, फूलों की क्यारियों की सफ़ाई कर उनकी
डौलें भी विशेष रूप से आकर देते हुए बना डाली थीं। आज
आलूबुखारे के दो पेड़ों के थाँवले बनाने शेष थे। उसका जोश
आसमानी पींगें भर रहा था। वह कभी बग़ीचे के इस कोने में कुछ
सफ़ाई करता दिखता, तो दूसरे ही पल बग़ीचे के दूसरे सिरे पर अंगूर
की बेल को सुलझाता हुआ, आम के तने पर उसकी फुनगियों और पत्तों
को ठीक से बैठाता नज़र आता। कभी वह एकाएक ग़ायब हो जाता।
*
आज सिरहाने महेश
मूलचंदानी का कविता संग्रह
कुत्ते की पूँछ
अवांछनीय
नारेबाज़ियों से हटकर, समकालीन व्यंग्य कविता के क्षेत्र में, अपनी आवाज़ को
बुलंदी के साथ उठाने वाले होशंगाबाद के युवा व्यंग्यकार महेश मूलचंदानी का
इसी वर्ष प्रकाशित काव्य संग्रह ''कुत्ते की पूछ'', आजकल के बाज़ारू व्यंग्य
संकलनों जैसे थोथा नहीं है। व्यंग्य की सार्थकता को स्वयं में समेटे एक सौ
बीस पृष्ठ की यह किताब अपने पैनेपन के साथ प्रस्तुत हुई है। 'कमाल' जैसी
क्षणिका में उन्होंने जहाँ उपेक्षित गाँवों की पीड़ा को स्पर्श करने का कमाल
किया है वहीं ''उपाय, योजना, हल, दोस्ती, रुझान और निमंत्रण'' के माध्यम से
दिग्भ्रमित राजनीति पर करारा व्यंग्य किया है।
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इस माह के कवि
प्रवीण चंद्र शर्मा,
के साथ सुभाष काक, गोविंद नारायण मिश्र, 'यायावर' और आदित्य शुक्ल की
नई रचनाएँ |
ताज़ा हिंदी चिट्ठों के सारांश
नारद से |
-पिछले अंकों से-
कहानियों में
अंतर्मन के रास्ते
-
शरद आलोक
शिमला
क्लब. . . -राजकुमार
राकेश
पिंजरे
में बंद तोते-विपिन
जैन
सही पते पर- सूरज
प्रकाश
इच्छामृत्यु- नरेन्द्र मौर्य
काला
लिबास-सुषम बेदी
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हास्य व्यंग्य में
सेवा वंचित-नरेंद्र
कोहली
नया साल मुबारक-
अमृत राय
नेता जी की नरक यात्रा-
गिरीश पंकज
झूठ के नामकरण-डॉ अखिलेश बार्चे
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घर परिवार में
भावना कुँअर का आलेख
सर्दियों में सर्दी
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फुलवारी में
बच्चों के लिए मौसम की जानकारी
बादल कैसे बनते हैं
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साहित्यिक निबंध में
डा जगदीश व्योम की पड़ताल
हिंदी कविता में नया साल
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धारावाहिक में
डॉ
अशोक चक्रधर के विदेश
यात्रा-संस्मरण
ये शब्द मुँह
से मत निकालिए!
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पर्व परिचय में
साल भर के पर्वों की सूची
पर्व पंचांग-२००७
और
सरोज मित्तल से मजेदार जानकारी
देश विदेश में क्रिसमस
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विज्ञान वार्ता में
डा गुरुदयाल प्रदीप की पुकार
हाय रे दर्द
*
साहित्य समाचार में
विश्व के हर कोने से इस माह के
नए समाचार
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