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कहानियां
। कविताएं । साहित्य
संगम ।
दो पल ।
कला दीर्घा
। साहित्यिक निबंध
।
उपहार
। परिक्रमा |
इस
सप्ताह साफसुथरा
चांटापोंछा धर। एक
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पिछले सप्ताह ° परिक्रमा
में
प्रेरक
प्रसंग में °
महानगर की कहानियां ° रसोईघर में ° कहानियों
में यह
इक्कीसवीं सदी के संध्याकाल का एक भारतीय महानगर हैं सम्पूर्ण
परिवेश 'इंटरनेट' की न दिखने वाली सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिक तरंगों के
गसे हुए जाल में बंधा पड़ा है। 'हार्ड प्लास्टिक' की दीवारों
से बने हुए अपार्टमेंट्स में लोग बैठेबैठे पूरा कारोबार कर
रहे हैं। सड़कों पर बाहर तभी निकलते हैं जब पर्यटन की इच्छा
हो या बदलाव के लिए वाकई किसीसे रूबरू मिलना हो, अन्यथा टीवी
साइज के 'पावडा' (पर्सनल आडिओ विजुअल डिवाइस एपरेटस) घरघर
में कल्पवृक्ष की भांति लगे हैं और अपने कमाए हुए 'मेन मिनट्स'
खर्च करके लोग अपनेअपने 'पावडा' से अपना अपना काम कर रहे हैं आशा
से दीर्घजीवी कोई वस्तु |
° पिछले अंकों से ° ° हास्य
व्यंग्य में
महेश द्विवेदी का लेख फुलवारी
में
लोक
कथाओं के क्रम
में कन्नड़ लोककथा
पुण्यकोटि गाय
संस्मरण
में रानी पात्रिक
की मधुर पर्यटन
में वियना के
दार्शनिक स्थलों फिल्म
इल्म में इस
माह की
°
परिक्रमा
में |
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।
उपहार
। परिक्रमा |
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प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना
परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी
सहयोग :प्रबुद्ध कालिया
साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार
शुक्ला