खिड़की पर
गमले
-पूर्णिमा वर्मन
१ जनवरी २००३
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सूरज निकला फूल खिले
पत्तों के संग गले मिले
खिल खिल हँसते
मिल मिल हँसते
हँसते हँसते पूछा करते,
"पीली पीली धूप उड़ाते
सूरज दादा कहां चले?"
सूरज गुमसुम देखा करता
कभी किसी से कुछ ना कहता
धूप उड़ाता
खुशी लुटाता
अपने पथ पर बढ़ता रहता
खिड़की पर सज जाते गमले
हौले से मुसकाते गमले
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