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                        पाणिग्रहण संस्कार के समय मैंने अपने मेंहदी भरे हाथ 
                        विदेशी पति के हाथों पर पूर्ण समर्पण के साथ रख दिए। जीवन 
                        के प्रति हमारे सिद्धान्त एवं मूल्य तो एक ही थे पर अपने 
                        देश और माटी का छूटना अलग बात थी। मन में एक कसक-सी थी। 
                        मेरा देश छोड़ना मेरे अरमानों की उड़ान के कारण नहीं बल्कि 
                        अपने विदेशी पति के भारतीय प्रेम के कारण था जिसका मुझे 
                        गर्व भी था। 
                         कृष्ण 
                        जन्माष्टमी की गहन, घनघोर बरसती रात; हवा की परत दर परत 
                        चीरता हवाई जहाज़ मुझे जन्म से मिले हर अपनेपन की सीमाओं 
                        से दूर ले उड़ा और जब नीचे उतरा तो कैलिफोर्निया में 
                        चमचमाते सूरज और मुस्कुराती हुई फूलों की वादियों ने मुझे 
                        हाथों हाथ थाम लिया। लगा मौसम कोई तीन चार महिने की 
                        कुलाचें ले आगे भाग गया और मैं भारत के मानसूनी मौसम में 
                        सर्दियों का मज़ा लेने लगी।  सुहावने 
                        मौसम और वैवाहिक जीवन के शुभारम्भ के मनचले दिन, बन्द 
                        रेलवे क्रासिंग से गुज़रते एक्सप्रेस ट्रेन के डिब्बों की 
                        तरह खटाखट भागते गए और देखते ही देखते गर्मियाँ 
                        (कैलिफोर्निया की) अपना गीत गा चलती बनीं। सूरज भी शरमा कर 
                        बादलों की ओट हो लिया। पेड़ों की पत्तियाँ पेड़ से अपना 
                        दामन छुड़ा धरती की गोद सो गईं। अक्तूबर-नवम्बर में बादलों 
                        भरी, बरसती- सुबह, दोपहर, शाम पहली बार मुझे किसी अनजान 
                        धरती पर खड़े होने का अहसास दिलाने लगी और फिर आ गया 
                        दिसम्बर भी।  एक सुबह 
                        पतिदेव समाचार पत्र लेने बाहर गए। वापस आ बोले, "हवा में 
                        क्रिसमसीपन सा आ गया है"। एक ऐसा अहसास जिसे मैंने अपने 
                        जीवन में कभी जाना ही न था। मैं दौड़ कर बाहर गई और हवा 
                        में बाहें पसार कुछ अनुभव करने को तरसने लगी। ऐसी ठंडी 
                        बयार जिसका स्पर्श मेरे लिये अनजाना था, मेरे पति के हृदय 
                        में क्रिसमसी स्पन्दन बन धड़क रही थी। एक उत्सुकता 
                        व्याकुलता के साथ मेरे हृदय में बैठी जा रही थी। नई 
                        संस्कृति, नया परिवेश और अब यह नया त्यौहार! हाथ में पकड़े 
                        पंछी की तरह न चाहते हुए भी मेरा मन फड़फड़ा सा रहा था। 
                        कैसे मनाएँगे हम यह सब और कैसे आत्मसात कर पाऊँगी मैं इनके 
                        रीति रिवाज़- ऐसे अनेकों प्रश्न मेरे मन में ज्वार भाटे की 
                        तरह चढ़ उतर रहे थे।  शादी के 
                        बाद यह हमारा पहला क्रिसमस था, इसलिए मेरे सास-ससुर ने 
                        हमें अपने पास आने का विशेष निमंत्रण दिया था। हमारी तीनों 
                        नन्दों ने भी सपरिवार आने का कार्यक्रम बनाया। यह पहला 
                        अवसर था जब मैं पूरे परिवार के साथ एक साथ मिलने वाली थी। 
                        क्रिसमस के एक हफ्ते पहले हम लॉस गेटॉस में मेरे सास-ससुर 
                        के घर पहुँचे। घर बच्चों बड़ों से भर गया। व्यस्त जीवन से 
                        समय निकाल मिल पाना सबके लिए बड़ी बात थी। सभी प्रसन्न एवं 
                        उत्साहित थे। हमारी ननद का कुत्ता भी, जो उनके साथ आया था, 
                        किसमस के प्रति कम उत्साहित नहीं दिखता था। और फिर शुरू 
                        हुआ क्रिसमस की आकर्षक एवं लुभावनी रस्मों का सिलसिला। 
 हमारे ससुर ने घर को बाहर की ओर रंग बिरंगी लाइटों से बड़े 
                        जतन से सजाया था। लॉन में कुछ आकर्षक झाकियाँ भी सजाई गयी 
                        थीं जो सामने से गुज़रती कारों को अपनी रफ़्तार कम कर 
                        देखने के लिए मजबूर कर देती थीं। प्रवेश द्वार पर लगी 
                        आकर्षक रीथ हर आने वाले का किसमसी अन्दाज़ में स्वागत कर 
                        रही थी। घर के अन्दर सेन्टा और ईसा मसीह की छोटी-छोटी 
                        झाकियाँ सजाई हुई थीं। कमी थी तो बस किसमस ट्री की जिसके 
                        लिए हम सबके आ जाने का इन्तज़ार था।
 क्रिसमस 
                        ट्री का घर आना किसी रस्म से कम न था। सुबह-सुबह धर पकड़ 
                        कर बच्चों को तैयार किया गया। बड़े जोश के साथ हम सभी 
                        लम्बी वैन में भर क्रिसमस ट्री फार्म पहुँचे। वहाँ एक 
                        व्यक्ति ने किस तरफ़ क्या मिलेगा के निर्देश के साथ हमें 
                        एक आरी थमा दी और एक मुस्कुराहट के साथ हमें मनचाहा पेड़ 
                        पाने के लिए शुभक़ामनाएँ दीं। घुटनों ऊँचे बूट पहने हम सभी 
                        बारिश की हल्की फुहार की परवाह न करते हुए खेतों में घुस 
                        गए और जिस प्रकार दिवाली पर लक्ष्मी गणेश खरीदते हैं, उसी 
                        प्रकार हर एक पेड़ की नख शिख परख शुरू हुई। एकड़ों फैले 
                        हज़ारों पेड़ों में सर्वसम्मति से एक पेड़ चुना गया। बच्चे 
                        इस दौरान क्रिसमस के पेड़ों के बीच लुकाछिपी खेल कर मज़ा 
                        लेते रहे। क्रिसमस ट्री के काटने की विधिवत विडियो 
                        रिकार्डिंग की गई। सबने उसके साथ मिल फोटो खिंचाई मानो 
                        परिवार में कोई नया सदस्य आ मिला हो। और फिर उसे हमारी 
                        पारिवारिक वैन की छत पर बाँध दिया गया। लौटते समय हम सब एक 
                        रेस्टोरेन्ट में रुक अपने प्रिय पेड़ को पाने की खुशी 
                        मनाने से स्वयं को रोक न सके।  घर लौट 
                        कर उस पेड़ को ड्राइंगरूम की खिड़की के पास यों खड़ा किया 
                        गया मानो किसी देवी देवता की प्रतिमा स्थापित की गई हो। 
                        उसको रंगबिरंगी बिजली की झालरों से सजाने के बाद क्रिसमस 
                        हैंगिग का पारिवारिक बक्सा खोला गया और हमारे पति के बचपन 
                        से ले कर अब तक की तमाम यादों का पिटारा हमारे चारों तरफ़ 
                        बिखर गया। मेरी ननदे उन छोटे-छोटे सजावटी टुकड़ो के पीछे 
                        छिपी वह हर कहानी मुझे बता रही थीं जो उस परिवार का हिस्सा 
                        थीं। यह मेरे लिए आपस में घुल मिल, परिवार के बीते समय को 
                        आत्मसात करने का अविस्मरणीय अवसर था। उन यादों के 
                        छोटे-छोटे टुकड़ों को पेड़ पर लटका कर जब बिजली की झालरें 
                        जलाई तो क्रिसमस के गीतों की मधुर धुन पूरे घर में फैल गई 
                        जो लाइटों के बुकबुकाने के साथ बज रही थी। क्रिसमस जो अब 
                        तक घर के बाहर हवा में तैर रहा था अब घर के अन्दर ही नहीं 
                        मेरे हृदय में भी उतरने लगा था। अगले आने वाले दिनों में 
                        हम सब उस पेड़ के नीचे एक दूसरे के लिए उपहारों के डिब्बे 
                        सजाते गए।  क्रिसमस 
                        के एक दिन पहले मेरे सास-ससुर के साथ मिल घर के सभी लोगों 
                        ने पकवान बनाए। मुझे अपने पति और नन्दोई का बच्चों के साथ 
                        मिल शोर गुल कर कुकीज़ बनाना बड़ा मनोरंजक लगा। शाम को घर 
                        की लम्बी सी डाइनिंग टेबल पर हम सबने पारिवारिक भोज का 
                        आनन्द लिया। रात होते-होते बच्चे थकान से चूर सेन्टाक्लाज़ 
                        के लिए दूध और बिस्कुट फायर प्लेस के पास सजा सोने चले गए 
                        और बाकी बचे हम देर रात तक बातों और यादों में खोए रहे।
                         सुबह 
                        बच्चों के शोरगुल से आँख खुली। याद आया कैसे दिवाली की 
                        अगली सुबह कौवे दिए की बाती पाने के लिए कोलाहल करते हैं। 
                        मन ही मुस्कुरा मैं बाहर आई तो देखा बड़े से बच्चे तक सभी 
                        अपने क्रिसमस स्टाकिंग को टटोलने में मगन थे और आह ऊह की 
                        ध्वनि से घर भरा हुआ था। मोज़ो में मिलने वाले सामानों में 
                        पेसिंल, टूथब्रश, साबुन, घड़ी, स्टिकर, टॉफी, चॉकलेट से ले 
                        कर तमाम तरह के सामानों का भंडार था। मज़े की बात यह कि ये 
                        सभी सामान हम सबने चुपके-चुपके बिना किसी को बताए सेन्टा 
                        के नाम पर मोज़ों में डाले थे। बच्चे खुश थे सेन्टा द्वारा 
                        उनके मोजों में डाले गए उपहारों के लिए और बड़े हर 
                        छोटी-बड़ी चीज़ो का मज़ा ले रहे थे।  अभी हम 
                        इन सब से उबर भी नही पाए थे कि तब तक मेरे सास-ससुर जो 
                        सुबह ही क्रिसमस की विषेश प्रार्थना के लिए चर्च गए थे 
                        वापस लौट आए। उनके आने के बाद कॉफी, चाय और कुकीज़ के साथ 
                        क्रिसमस के उपहारों को खोलने का सिलसिला शुरू हुआ। कुछ 
                        उपहार नए थे तो कुछ पुराने। क्रिसमस अपनी पारिवारिक चीज़ों 
                        को अगली पीढ़ी को सौपने का एक अनोखा दिन भी माना जाता है। 
                        एक-एक कर सभी एक दूसरे को दिए गए उपहार खोल रहे थे। 
                         और फिर 
                        आया उपहारों का एक डिब्बा मेरे पास जो मेरे पति द्वारा 
                        मुझे दिया गया था। मैं आश्चर्य चकित थी। पिछले एक हफ्ते से 
                        हम साथ-साथ थे तो यह उपहार कब आया? एक प्रश्न भरी दृष्टि 
                        से मैंने अपने पति की ओर देखा और उनकी मुस्कुराहट मेरे 
                        हृदय में गुदगुदी बन उतर गई। सभी की आँखें मेरी ओर थीं। 
                        धड़कते दिल से मैंने उसे खोला तो मैं अवाक रह गई। मेरे 
                        हाँथों में थी भारतीय लय को समेटे, भारत की लोक धड़कन को 
                        बाँटती- ढोलक। मेरे हाँथ रुक न सके और मैंने उस पर जो थाप 
                        लगायी कि सभी मुस्कुरा उठे। मैंने और मेरे पति ने मिल जुल 
                        एक गीत गाया। ढोलक की धनक के साथ सभी अपने हाँथ और पाँव को 
                        चलने से रोक न सके। क्रिसमस की सुबह इस गीत संगीत ने एक 
                        अलबेला समाँ-सा बाँध दिया और हमारा विदेशी त्यौहार भारतीय 
                        अन्दाज़ में ढल गया। मेरी पहली क्रिसमस ने मुझे इस विदेशी 
                        त्यौहार में तथा इन विदेशियों को भारतीय रंग में बोर दिया 
                        और इस तरह यह अनजान क्रिसमस सदा-सदा के लिए मेरे जीवन का 
                        एक अभिन्न अंग बन गया। |