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(छठा भाग)

'पर हो सकता है पवन स्वादिष्ट खाना खाना चाहे।''  
''तो वह कुकिंग सीख ले। वैसे भी वह अब चैन्ने जाने वाला है। मैं राजकोट और अहमदाबाद के बीच चलती फिरती रहूँगी।''
''फिर भी मैं तुम्हें थोड़ा बहुत सिखा दूँ।''
अब पवन ने हस्तक्षेप किया। वह यहाँ माता पिता का आशीर्वाद लेने आया था उपदेश नहीं।
''माँ जब से मैंने होश सँभाला, तुम्हें स्कूल और रसोई के बीच दौड़ते ही देखा। मुझे याद है जब मैं सो कर उठता तुम रसोई में होतीं और जब मैं सोने जाता, तब भी तुम रसोई में होतीं। तुम्हें चाहिए कि स्टैला के लिए जीवन भट्ठी न बने। जो तुमने सहा, वह क्यों सहे।?''

रेखा की मुखाकृति तन गई। हालाँकि बेटे के तर्क की वह क़ायल थी।
दोपहर में लेटे उसे लगा हर पीढ़ी का प्यार करने का ढंग अलग और अनोखा होता है। स्टैला भले ही कंप्यूटर पर आठ घंटे काम कर ले, रसोई में आध घंटे नहीं रहना चाहती। पवन भी नहीं चाहता कि वह रसोई में जाए। रेखा ने कहा, ''यह दाल रोटी तो बनानी सीख ले।'' पवन ने जवाब दिया खाना बनाने वाला पाँच सौ रुपये में मिल जाएगा माँ, इसे बावर्ची थोड़ी बनाना है।''
''और मैं जो सारी उमर तुम लोगों की बावर्ची, धोबिन, जमादारनी बनी रहीं वह?''
''ग़लत किया आपने और पापा ने। आप चाहती हैं वही गलतियाँ मैं भी करूँ। जो गुण है इस लड़की के उन्हें देखो। कंप्यूटर विज़र्ड है यह। इसके पास बिल गेट्स के हस्ताक्षर से चिट्ठी आती है।''
''पर कुछ स्त्रियोचित गुण भी तो पैदा करने होंगे इसे।''
''अरे माँ आज के ज़माने में स्त्री और पुरुष का उचित अलग-अलग नहीं रहा है। आप तो पढ़ी लिखी हो माँ समय की दस्तक पहचानो। इक्कीसवीं सदी में ये सड़े गले विचार ले कर नहीं चलना है हमें, इनका तर्पण कर डालो।''

स्टैला की आदत थी जब माँ बेटे में कोई प्रतिवाद हो तो वह बिल्कुल हस्तक्षेप नहीं करती थी। उसकी ज़्यादा दिलचस्पी समस्याओं के ठोस निदान में थी। उसने पिता से कहा, ''मैं आपको ऑपरेट करना सिखा दूँगी। तब आप देखिएगा संपादन करना आपके लिए कितना सरल काम होगा। जहाँ मर्ज़ी संशोधन कर लें जहाँ मर्ज़ी मिटा दें।''
रेखा की कई कहानियाँ उसने कंप्यूटर पर उतार दीं। बताया, ''मैम इस एक फ्लॉपी में आपकी सौ कहानियाँ आ सकती हैं। बस यह डिस्कैट सँभाल लीजिए, आपका सारा साहित्य इसमें है।''
चमत्कृत रह गए वे दोनों। रेखा ने कहा, ''अब तुम हमारी हो गई हो। मैम न बोला करो।''
''ओ.के. माम सही।'' स्टैला हँस दी।

बच्चों के वापस जाने में बहुत थोड़े दिन बचे थे। राकेश इस बात से उखड़े हुए थे कि शादी के तत्काल बाद पवन और स्टैला साथ नहीं रहेंगे बल्कि एक दूसरे से तीन हज़ार मील के फ़ासले पर होंगे।
उन्होंने दोनों को समझाने की कोशिश की। पवन ने कहा, ''मैं तो वचन दे चुका हूँ मैल को। मेरा चेन्नई जाना तय है।''
''और जो वचन जीवन साथी को दिये वे?''
पवन हँसा, ''पापा जुमलेबाज़ी में आपका जवाब नहीं। हमारी शादी में कोई भारी भरकम वचनों की अदला बदली नहीं हुई।''
''बहू अकेली अनजान शहर में रहेगी? आजकल समय अच्छा नहीं है।''

''समय कभी भी अच्छा नहीं था पापा, मैं तो पच्चीस साल से देख रहा हूँ। फिर वह शहर स्टैला के लिए अनजान नहीं है। एक और बात, राजकोट में हिंसा, अपराध यहाँ का एक परसेंट भी नहीं है। रातों में लोग बिना ताला लगाए स्कूटर पार्क कर देते हैं, चोरी नहीं होती। फिर आपकी बहू कराटे, ताइक्वांडो में माहिर है।''
''पर फिर भी शादी के बाद तुम्हारा फ़र्ज़ है साथ रहो।''
''पापा आप भारी भरकम शब्दों से हमारा रिश्ता बोझिल बना रहे हैं। मैं अपना कैरियर, अपनी आज़ादी कभी नहीं छोडूँगा। स्टैला चाहे तो अपना बिज़नेस चेन्नई ले चले।''
''तुम तो तरक्कीराम हो। मैं चेन्नई पहुँचूँ और तुम सिंगापुर चले जाओ तब!'' स्टैला हँसी।
पता चला पवन के सिंगापुर या ताईवान जाने की भी बात चल रही थी।
रेखा ने कहा, ''यह बार-बार अपने को डिस्टर्ब क्यों करती हो। अच्छी भली कट रही है सौराष्ट्र में। अब फिर एक नई जगह जाकर संघर्ष करोगे?''
''वही तो माँ। मंज़िलों के लिए संघर्ष तो करना ही पड़ेगा। मेरी लाइन में चलते रहना ही तरक्की है। अगर यहीं पड़ा रह गया तो लोग कहेंगे, देखा कैसा लद्धड़ है, कंपनी डूब रही है और यह कैसा बियांका की तरह उसमें फँसा हुआ है।''
बातें राकेश को बहुत चुभीं, ''तुम अपनी तरक्की के लिए पत्नी और कंपनी दोनों छोड़ दोगे?''
''छोड़ कहाँ रहा हूँ पापा, यह कंपनी अब मेरे लायक नहीं रही। मेरी प्रतिभा का इस्तेमाल अब ''मैल' करेगी। रही स्टैला। तो यह इतनी व्यस्त रहती है कि इंटरनेट और फ़ोन पर मुझसे बात करने की फ़ुर्सत निकाल ले यही बहुत है। फिर जेट, सहारा, इंडियन एयरलाइंस का बिजनेस आप लोग चलने दोगे या नहीं। सिर्फ सात घंटे की उड़ान से हम लोग मिल सकते हैं।''
''यानी सेटेलाइट और इंटरनेट से तुम लोगों का दांपत्य चलेगा?''
''येस पापा।''
''मैं तुम्हारी प्लानिंग से ज़रा भी खुश नहीं हूँ पुन्नू। एक अच्छी भली लड़की को अपना जीवन साथी बना कर कुछ ज़िम्मेदारी से जीना सीखो। और बेचारी जी.सी.सी.एल. ने तुम्हें इतने वर्षों में काम सिखा कर काबिल बनाया है। कल तक तुम इसके गुण गाते नहीं थकते थे। तुम्हारी एथिक्स को क्या होता जा रहा है?''
पवन चिढ़ गया, ''मेरे हर काम में आप यह क्या एथिक्स, मोरैलिटी जैसे भारी भरकम पत्थर मारते रहते है। मैं जिस दुनिया में हूँ वहाँ एथिक्स नहीं, प्रोफ़ेशनल एथिक्स का ज़रूरत है। चीज़ों को नई नज़र से देखना सीखिए नहीं तो आप पुराने अखबार की तरह रद्दी की टोकरी में फेंक दिये जाएँगे। आप जेनरेशन गैप पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। इससे क्या होगा, आप ही दुखी रहेंगे।''
''तुम हमारी पीढ़ी में पैदा हुए हो, बड़े हुए हो, फिर जेनरेशन गैप कहाँ से आ गया। असल में पवन हम और तुम साथ बड़े हुए हैं।''
'ऐसा आपको लगता है। आपको आज भी के. एल. सहगल पसंद है, मुझे बाबा सहगल, इतना फासला है हमारे आपके बीच। आपको पुरानी चीज़ें, पुराने गीत, पुरानी फ़िल्में सब अच्छी लगती हैं। ढूँढ़-ढूँढ़ कर आप कबाड़ इकठ्ठा करते हैं। टी.वी. पर कोई पुरानी फ़िल्म आए आप उससे बँध जाते हैं। इतना फ़िल्म बोर नहीं करती जितना आपकी यादें बोर करती हैं- निम्मी ऐसे देखती थी, ऐसे भागती थी, उसके होठ अनकिस्ड लिप्स कहलाते थे। मेरे पास इन किस्से कहानियों का वक़्त नहीं है। तकनीकी दृष्टि से कितनी खराब फ़िल्में थीं वे। एक डायलाग बोलने में हीरोइन दो मिनट लगा देती थी। आप भी तो आधी फ़िल्म देखते न देखते ऊँघ जाते हैं।''

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