ओम प्रकाश ढींगरा ने अपनी
बात जारी रखी, "मेरे जन्म के समय ऐसा आँधी तूफान आया था कि
अस्पताल से एम्बुलेंस भी घर तक न पहुँच पायी। हम लोग तब
ओंटेरियो में थे। पूरे शहर के ऊपर बर्फ की मोटी परतें जम
गयी थीं। पड़ोस में एक नर्स रहती थी, वह भी बहुत मुश्किल से
पहुँच पायी।''
"तब तो आपका नाम तूफान प्रकाश ढींगरा रखना चाहिए था।''
हरदयाल ने दोनों पुलिस कर्मियों को एक एक बड़ा चम्मच
कोन्याक परोसते हुए कहा।
तूफान प्रकाश ढींगरा ने एक घूँट भरा और बोला, "मेरे पापा
बताया करते थे कि उस बरस इतनी ज्यादा बर्फ गिरी थी कि
पेड़ों को देख कर लगता था जैसे वे काँच के हों। तूफानी
हवाओं से पेड़ों की शाखाएँ आपस में टकरातीं तो टन टन की
आवाजें आतीं। पापा बताते थे कि बिजली के तार इस प्रकार उलझ
कर सड़क पर गिरे पड़े थे, जैसे किसी ने सिवैयाँ फैला दी
हों।''
"आपके पापा क्या राइटर थे?'' हरदयाल ने पूछा।
"आप उन्हें जानते हैं?''
"नहीं जानता तो नहीं, ऐसा सजीव वर्णन कोई लेखक ही कर सकता
है।''
ढींगरा के साथी ने भी कोन्याक का सिप लिया और बोला, "मेरे
दिमाग में भी बर्फ और बर्फीले तूफानों की बहुत भी
स्मृतियाँ हैं। मेरा तो बचपन बर्फ के बीच ही बीता। मुझे
याद है हम लोग जनवरी में बर्फ के गोले बनाया करते थे और यह
सोच कर गोलों को फ्रीजर में रख देते थे कि अगस्त में इन
गोलों से खेला करेंगे।''
"बचपन में हम लोग भी कंचे खेला करते थे, कंचे यानी
काँच की
गोलियाँ।'' हरदयाल बोला। उसने अनुभव किया कि दोनों बातों
में तारतम्य नहीं। दरअसल उसके दिमाग में भी उसका बचपन कौंध
गया था। उसने महसूस किया, हिन्दुस्तानी नहीं, दुनिया भर के
लोग बचपन को याद करते रहते हैं। जवानी से भी अधिक लोगों को
बचपन याद आता है।
दोनों पुलिस कर्मी खड़े हो गये और हरदयाल से जाने की इजाजत
माँगी। हरदयाल उन्हें गाड़ी तक छोड़ आया।
खुश्क पत्तों की तरह खबरें और सूचनाएँ भी उड़ उड़ कर आती
रहती हैं। पास पड़ोस से आ सकती हैं या दूरदराज के किसी
अलगथलग पड़े इलाके से। खबरें उड़ते उड़ते सात समुंदर पार
कर जाती हैं, विश्व की परिक्रमा कर आती हैं। सूचना क्रांति
के इस दौर में तो हर सूचना हर कहीं उपलब्ध है। जब सूचना
तंत्र का संजाल नहीं फैला था तब सूचनाएँ यात्रा पर निकलती
थीं। पता ही नहीं चलता था कि आप ओटावा, कैलगरी, विनिपेग,
क्यूबेक सिटी में बैठे हैं अथवा अमृतसर, जालंधर, लुधियाना
या चंडीगढ में। इन शहरों की दूरियाँ मिट जाती थीं। आश्चर्य
तो तब होता है जब हजारों किलोमीटर के फासले पर बैठा कोई
व्यक्ति सहज ही ऐसी बात पूछ बैठता है, जिसे आप दुनिया की
नजरों से छिपा कर सात तालों में बंद रखे हुए थे। हरदयाल को
एक दिन ऐसा ही एहसास हुआ जब प्रभुदयाल ने फोन पर शीनी के
तलाक को लेकर अफसोस जताया। भाई की बात से वह चौंका जरूर,
मगर उसने यह जानने की भी कोशिश नहीं की कि यह खबर
प्रभुदयाल तक पहुँची कैसे। इसी तरह एक दिन शील की बहन का
भी फोन आ गया।
"बच्चे रुल जाएँगे।'' शील की बहन ने कहा, "पर बहन यह हुआ
कैसे?''
"रोज रोज की कलह से कहीं बेहतर है, अलग हो जाना।'' शील ने
अत्यंत संयत स्वर में जवाब दिया था। उसने कलेजे पर पत्थर
रख कर यह बात कही थी। रिवीवर रखते ही उसकी आँखों से टप टप
आँसू गिरने लगे। उसे लगा, उसकी बहन ठीक ही तो कह रही थी कि
बच्चों की बेकद्री हो जाएगी। दोनों नाती उसकी गोद में ही
पले थे। आज भी फोन आता है तो कहते हैं, पहले नानी से बात
करेंगे। पिछली बार जब बच्चे आये थे तो शीनी साथ थी। बिल
कुछ उद्वेलित नजर आ रहा था, शील ने उसे प्यार से अपने साथ
सटा लिया तो बोला, "नानी माँ, मुझे आपसे कुछ जरूरी बात
करनी है। बहुत दिनों से मुझे एक चीज बादर कर रही है।''
"कहो बेटा।''
"यहाँ नहीं, एकांत में बात करुँगा।''
शील उसे भीतर कमरे में ले गयी। बोली, "बताओ क्या चीज
तुम्हें परेशान कर रही है?''
"नानी, मेरे दिमाग में बहुत से प्रश्न हैं। मगर यह बात
मुझे बहुत परेशान करती है कि आदमी मर कर कहाँ जाता है?''
"बेटा इसका जवाब तो बड़े बड़े सिद्ध पुरुष भी नहीं दे
पाये। किसी ने महात्मा बुद्ध से भी पूछा था कि आत्मा क्या
है, उन्होंने कहा, मालूम नहीं। तुम भी ऐसी बातों के बारे
में मत सोचा करो। खेलकूद और पढाई में मन लगाओ और खुश
रहो।''
"ओके नानी।'' बिल ने कहा, "जिस सवाल का जवाब ही नहीं है,
उस पर समय क्यों नष्ट किया जाए।''
...उसे बच्चों की बहुत तेज याद आयी। उड़ते उड़ते ही यह
खबर आयी थी कि शीनी बच्चों के साथ लास एंजेल्स गयी है। साथ
में शीनी का एक दोस्त भी गया है।
शील ने नेहा को फोन मिलाया, "नेहा बताओ, बिल्लू से
तुम्हारी कब बात हुई थी?''
शील बिल को घर में बिल्लू ही पुकारती थी।
"माँ, कोई पंद्रह दिन पहले हैरी का फोन आया था कि मॉम
उन्हें हालीवुड की सैर कराने ले जा रही है। साथ में शीनी
का एक दोस्त भी जा रहा है, जो हालीवुड का एक जानामाना
निर्देशक है।''
"हैरी शीनी के बड़े बेटे का नाम था।'' शील उसे हरी कहती
थी।
"निक की कोई खबर है?''
"माँ निक कैलगरी में है। एक दिन किसी अखबार में छपा था,
जिस रफ्तार से उसका एम्पायर बढ रहा है, उससे लगता है एक
दिन वह कैलगरी का सबसे बड़ा बिल्डर होगा।''
शीनी बच्चों को लेकर हालीवुड क्यों गयी है, इसका भी एक दिन
खुलासा हो गया। अबरोल ने फोन पर हरदयाल को बताया कि उसने
हालीवुड की एक फिल्म में शीनी को देखा है।
"अबरोल दारू पी रहे हो क्या?''
"यकीन मानो हरदयाल। ’हार्ट आफ ए स्ट्रेंजर' में उसने एक
जिप्सी औरत का कैरेक्टर रोल किया है।''
"तुमने शीनी से मिलता जुलता चेहरा देख लिया होगा।''
"नहीं यार, मैंने क्रैडिट्स में भी उसका नाम देखा है।
मैंने टोरोंटो की वे लोकेशन भी देखी हुई हैं, जहाँ इस
फिल्म की शूटिंग हुई होगी।''
"अमरीकी फिल्में क्या कैनेडा में बनती हैं?''
"तुम्हें शायद मालूम नहीं, वैंकूवर और टोरोंटो
कैलीफोर्निया के फिल्म निर्माताओं की पहली पसंद है। इन
शहरों के उपनगर पचास और साठ के दशक के अमरीका के बने बनाये
सेट लगाते हैं। अमरीका का चेहरा बहुत तेजी से बदला है।
पचास के दशक के अमरीका का सेट लगाने में मिलियन डालर का
खर्चा है। कैनेडा में शूटिंग करना उन्हें सस्ता पड़ता
है।''
"वह कैसे?''
"क्योंकि कैनेडियन डालर का तेजी से अवमूल्यन हुआ है।
एक्सपोर्ट बढाने के चक्कर में बहुत से देशों ने अपनी
मुद्राओं का अवमूल्यन कर डाला है। सन् ७६ में कैनेडियन
डालर अमरीकी डालर से महंगा था और आज वह डूबता हुआ मस्तूल
है। तुम्हारी समझ में आ गया होगा, कैनेडा में फिल्म बनाना
अमरीकियों को क्यों सस्ता पड़ता है।''
"फिल्म की सीडी है तुम्हारे पास?''
"हाँ है। शाम को लेकर आऊँगा। देख लेना तुम भी अपनी बिटिया
को नये रोल में। मैंने शुरू से ही उसे एक असाधारण लड़की
माना है।''
शाम को अबरोल और सरोज ने सचमुच फिल्म दिखा दी। शीनी एक
जिप्सी गायिका की भूमिका में थी। उसने रंगबिरंगा मोटा ऊनी
लहँगा जम्पर पहन रखा था। माथे पर एक मोटी पट्टी बाँधी थी,
जिस पर मोटे मोटे हरे पीले मनके टँके हुए थे। कानों में
बड़े बड़े झुमके थे। गले और बाहों में भी धातु के जेवर थे।
फिल्म में उसका छोटा सा रोल था। वह मुश्किल से दस मिनट तक
स्क्रीन पर दिखायी दी होगी। उसकी उपस्थिति प्रभावशाली थी।
शील ने कहा, "मैं, अकेले में फिल्म देखती तो शीनी को पहचान
भी न पाती।''
"मैं भी आवाज से पहचान पाया।'' अबरोल ने बताया।
फिल्म देख कर हरदयाल और शीनी दोनों उदास हो गये। शीनी का
यह रूप निक की दुनिया से मेल नहीं खाता था। हरदयाल को याद
आया शीनी ने एक बार कहा था, "डैड, शादी के बाद मैंने निक
को कभी कोई किताब पढते नहीं देखा।''
"मैंने इसे पढने के अलावा कोई दूसरा काम करते नहीं देखा।''
निक ने जवाब दिया था, "मैं जिन्दगी की किताब पढता हूँ।
इसके लिए जिन्दगी एक लायब्रेरी है, मेरे लिए लैबोरेटरी।''
"लैबोरेटरी नहीं, लेवेटरी।'' शीनी ने कहा और वहाँ से हट
गयी।
हरदयाल हक्काबक्का बच्चों की नोंकझोंक सुनता रहा। अब धीरे
धीरे निरर्थक समझे जाने वाले शब्द भी अर्थ ग्रहण कर रहे
थे।
"निक ने भी कभी जिक्र नहीं किया कि शीनी की फिल्मों में
दिलचस्पी है।'' शील बुदबुदायी।
"निक कभी शीनी के बारे में बात ही नहीं करता।''
"बच्चे तो बता सकते थे?''
"लगता है बच्चे भी बूढों को आलू का बोरा समझते हैं।''
हरदयाल के मुँह का स्वाद कसैला हो गया था।।
बहरहाल इस सूचना से हरदयाल और शील दोनों बहुत प्रसन्न और
उत्साहित हुए कि निक और बच्चे तीन दिन के लिए उनके साथ
छुट्टियाँ मनाने अगले सप्ताह आयेंगे। शील बच्चों को लेकर
बहुत परेशान रहती थी कि माता पिता के अलग होते ही बच्चे
बहुत अकेले और उपेक्षित हो जाएँगे। अदालत का फैसला था कि
बच्चे पंद्रह दिन पिता और पंद्रह दिन माँ के साथ रहेंगे।
अब तक निक और शीनी मिल कर बच्चों की देखभाल कर लेते थे।
शीनी को देर तक सोने की आदत थी, सुबह निक ही बच्चों को
नाश्ता कराके स्कूल के लिए रवाना करता। बच्चों के स्कूल के
कपड़ों की देखभाल शीनी करती। होमवर्क भी वही कराती। स्कूल
से लौट कर बच्चे लंच भी शीनी के साथ ही करते।
निक ने यह सूचना भी दी थी कि वह जनवरी में बच्चों के साथ
भारत जाने का कार्यक्रम भी बना रहा है। मूल रूप से यह
कार्यक्रम हरदयाल और शील ने ही बनाया था, मगर तब निक और
शीनी एक साथ थे। निक और बच्चों के साथ भारत जाने का उनमें
अब उत्साह नहीं था। वे अपने रिश्तेदारों को निक का क्या
परिचय देंगे। टूटे हुए परिवार के बच्चों पर वहाँ कुछ
ज्यादा ही तरस खाया जाता है। हरदयाल दम्पति अभी तक इस बात
से समझौता नहीं कर पाये थे कि शीनी ने अपने सयाने बच्चों
की परवाह नहीं की और तलाक ले लिया। यही कुछ बिन्दु थे,
जिनको लेकर उनके भीतर संग्राम छिड़ा हुआ था। |