अबरोल और
हरदयाल ने मिल कर जिम और प्यारा सिंह का वहाँ उपस्थित तमाम
लोगों से परिचय कराया। जिम ने बहुत गर्मजोशी से हाथ मिला
कर परिचय प्राप्त किया। स्त्रियों से वह हाथ जोड़ कर मिला।
उसे आश्चर्य हो रहा था कि तमाम औरतों ने इतनी गहरी
लिपस्टिक क्यों लगा रखी है और ये सोने के इतने अधिक आभूषण
क्यों पहने हुए हैं। एकांत मिलते ही उसने प्यारा सिंह के
सामने अपनी जिज्ञासा रखी। प्यारा सिंह मुस्कराया और बोला,
"ये औरतें यहाँ की मेमों से अधिक सुंदर दिखना चाहती हैं।
इन्हें हमेशा एक ही डर सताता रहता है कि कोई मेम इनके मर्द
को न ले उड़े।''
"बट दे लुक ब्युटीफुल एँड स्मार्ट।'' जिम बोला।
अबरोल जिम के पीछे ही खड़ा था। उसने यह बातचीत सुन ली। वह
अपनी पत्नी सरोज को खोजने लगा। सरोज पीछे बैठी कोक पी रही
थी। वह उसकी बगल में जा बैठा और सरोज से बोला, "तुम इतनी
चटख लिपस्टिक लगा कर क्यों आयी हो? तुम्हारे होंठ तो वैसे
ही इतने सुर्ख रहते हैं मेरी जान, जाओ भीतर जाकर लिपस्टिक
उतार आओ।''
"क्या बेवकूफी की बात कर रहे हो।'' सरोज नाराज हो गयी,
"तुम चाहते हो मैं सबसे बदसूरत दिखूँ।''
"बेवकूफ तुम हो। तुम्हें मालूम ही नहीं चटख लिपस्टिक का
फैशन नहीं रहा। किसी मेम को कभी देखा है स्यार की तरह ओंठ
रंगे हुए।''
"तुम एँटी वुमन हो। तुम्हें औरतें स्यार की तरह नजर आती
हैं।'' सरोज ने पूछा, "अचानक बहकी बहकी बातें क्यों कर रहे
हो?''
"दरअसल, जिम पूछ रहा था कि औरतें इतनी चटख लिपस्टिक लगा कर
क्यों आयी हैं।''
"खसमखाना।'' सरोज ने कहा, "उसे क्या तकलीफ है?''
"वह हर साल भारत जाता है और देख कर आता है कि वहाँ की
औरतों का रखरखाव यहाँ की औरतों से कहीं बेहतर है।'' अबरोल
जिम का सहारा लेकर अपनी भड़ास निकालने लगा, "जरा खुद ही
तटस्थ भाव से जायजा लो। वाइटल स्टेटिक्स देखो— ५०, ५०, ५०।
वक्ष, कमर और नितम्ब का अंतर ही मिट गया है। घर से मेमों
का मुकाबला करने निकली हैं।''
"क्या बक रहे हो?'' सरोज ने उसे डाँटा, "जहाँ हिन्दुस्तानी
औरतों को देखते हो, बौराने लगते हो। इन्फीरिआरिटी
काम्पलेक्स से ग्रस्त तुम्हारे जैसे लोग जब गोरों की सोहबत
पाते हैं तो अपनी कम्युनिटी के लोगों को नफरत की निगाह से
देखने लगते हैं। बहुत सम्भव यहाँ उपस्थित दूसरे
हिन्दुस्तानी भी तुम्हारे बारे में ऐसा ही सोच रहे हों।''
"जरा आब्जेक्टिव तरीके से सोचो। दो किलो का जूड़ा बना कर
ये औरतें सोचती हैं, वे बहुत आधुनिक हैं। दरअसल जब ये
बीसियों साल पहले भारत से यहाँ आयी थीं, उन दिनों आशा
पारिख और नंदा जैसी अभिनेत्रियाँ ऐसे जूड़े बनाया करती
थीं। ये आज भी उसी युग में जी रही हैं। इन बेचारियों को
पता ही नहीं कि भारत की आधुनिकाएँ अब जूड़ा नहीं बनातीं,
कंधों पर बाल डाले मस्ती से घूमती हैं। ये औरतें अपने
तथाकथित स्तनों को बार बार दुपट्टे से ढाँपती रहती हैं।''
सरोज गुस्से से तमतमाने लगी और वहाँ से उठ कर शील के पास
चली गयी। अबरोल प्यारा सिंह के पास चला गया और बोला,
"प्यारा सिंह जी, ये पंजाबी औरतें कब समझेंगी कि इनके
गहनों का फैशन पुराना पड़ चुका है। अब भारत में भी कोई औरत
फानूस की तरह झूलने वाले बुंदे नहीं पहनती।''
"बादशाओ, इन बुंदों पर आज भी बहुत से लोग जान छिड़कते
हैं।'' प्यारा सिंह बोला और अबरोल को पकड़ कर जिम के पास
ले गया।
"जिम, यही हैं मिस्टर अबरोल, जिनके होटल 'कोहेनूर' के
इंडियन रेस्तरां 'दालरोटी' का अभी आपको उद्घाटन करना है।
आपके सम्मान में आज विशेष रूप से पंजाबी व्यंजन तैयार किये
गये हैं।
हरदयाल ने राहत की साँस ली कि उसके यहाँ का कार्यक्रम सही
सलामत निपट गया है।
नेहा ने गाड़ी रोक कर गैरेज का दरवाजा खोला तो हरदयाल की
तंद्रा टूटी। उसने एक गहरी डुबकी लगा ली थी। सचेत होते ही
शीनी दुबारा उसकी चेतना पर छा गयी। उसे याद आया ...स्वामी
जी ने भारत से अनेक रिश्ते भेजे थे। उनमें डाक्टर, वकील,
इंजीनियर, अध्यापक आदि अनेक पेशों के लड़के थे। फोटो देखते
ही शीनी बिगड़ जाती और फोटो का कार्टून बना देती। किसी को
पगड़ी पहना देती और किसी के मुँह में सिगरेट खोंस देती।
किसी के माथे पर लिख देती— मुझे दहेज चाहिए। मुझे टिकट
भेजो ताकि मैं आ सकूँ। टिकट की माँग प्रत्येक लड़के ने की
थी। शीनी इसे अपमानजनक मान रही थी।
"जिस लड़के के पास यहाँ आने के लायक टिकट का पैसा नहीं है,
वह मेरा खर्च कैसे उठा लेगा। शादी के बाद मैं एक राजकुमारी
की तरह जीना चाहती हूँ।''
निक ने उसे सचमुच राजकुमारी के नाज नखरों के साथ रखा था,
मगर उसे वह वैभव भी रास न आया और एक दिन फोन पर उसने सूचना
दी, "पापा मैं डाइवोर्स ले रही हूँ। अवर मैरिज इज नाट
कम्पेटिबिल।''
हरदयाल जैसे आसमान से गिरा था।
नेहा ने गाड़ी भीतर कर ली, वह उसी तरह वहीं ठगा सा खड़ा
रहा।
"क्या हुआ डैड, ऐसे क्यों खड़े हैं? तबियत ठीक है?'' नेहा
ने उसका माथा छूकर पूछा।
हरदयाल ने एक लम्बी गहरी साँस भरी। वह चुपचाप थके कदमों से
भीतर चला आया। शील भी कम परेशान न थी, मगर वह जानती थी कि
हरदयाल का घाव गहरा होता है और देर से भरता है। छोटी सी
बात भी उसे अनुपात से कहीं अधिक उद्वेलित कर जाती थी।
घर में सन्नाटा था। कैनेडा के औसत घरों में ऐसा सन्नाटा
पसरा रहता है। यह सन्नाटों का मुल्क है। घर में भी
सन्नाटा, घर के बाहर और अधिक सन्नाटा। ऐसे भीषण सन्नाटे
में कहाँ तो काली गाय मिलेगी और कहाँ काला कौव्वा। उसे लगा
वे भारतीय उससे कहीं ज्यादा प्रसन्न और भाग्यशाली हैं जो
'विस्कियाँ' पीते हैं और मुर्गे की लैगें ह्यटांगेंहृ
उड़ाते हैं। एक वह अभागा है जिसने जीरो से नीचे तापमान में
भी एक कतरा ब्रांडी तक नहीं पी।
विलियम टुअर पर निकला हुआ था और नेहा का बेटा स्कूल के
बच्चों के साथ नार्थ अमरीका के भ्रमण पर निकला हुआ था। वह
चुपचाप बेसमेण्ट में जाकर लेट गया। बेसमेण्ट का एकांत उसे
प्रिय था जबकि शील को बेसमेण्ट से नफरत थी। वह तो अपने घर
के बेसमेण्ट में भी कभी न गयी थी। हरदयाल ही नीचे जाकर घर
का कूड़ा कबाड़ा बेसमेण्ट में डाल आता था। हरदयाल ने
बेसमेण्ट का एक कोना अपने लिए सुरक्षित रखा हुआ था। घर में
लड़कियाँ शोर मचातीं या उनकी सहेलियाँ आ जातीं तो वह
चुपचाप बेसमेण्ट में चला जाता।
शाम को जब नेहा ने चाय के लिए पिता को आवाज दी तो नीचे से
कोई उत्तर नहीं आया। उसने इंटरकाम से बात करनी चाही मगर
बेसमेण्ट में कोई फोन ही नहीं उठा रहा था। शील ने चाय के
साथ गोभी के पकौड़े बनाये थे जो हरदयाल को बहुत पसंद थे।
हरदयाल नहीं आया तो वह नीचे बेसमेण्ट में धड़धड़ाते हुए
चली गयी। हरदयाल वहाँ भी नहीं था। वह हाँफती हुई ऊपर चली
आयी, "तुम्हारे डैड कहाँ हैं?''
"घुरने ह्यबेसमेण्टहृ में थे।''
"वहाँ तो नहीं हैं।'' किसी अनिष्ट की चिन्ता में शील बेहद
घबरा गयी। बाहर एकाएक ठंडक बहुत बढ गयी थी। तेज बर्फीली
हवाएँ सांय सांय कर रही थीं। लग रहा था, बर्फ का तूफान आने
वाला है। ऐसे में बगैर गाड़ी के बाहर निकलना बहुत खतरनाक
हो सकता था। कई बार तो गाडियाँ भी तूफान में फंस जाती हैं।
गाड़ी में भी अगर समुचित गैस न हो तो बहुत से लोग गाड़ी
में ही अकड़ जाते हैं। घर में कहीं हरदयाल का पता न चला तो
नेहा ने मां से कहा कि अच्छा यही है पुलिस को खबर कर दी
जाए। ज्यादा दूर नहीं गये होंगे, अगर तूफान में फंस गये तो
लेने के देने पड़ सकते हैं। मां की सहमति मिलती इससे पहले
ही वह पुलिस को फोन मिलाने लगी।
"पैदल गये हैं, दो चार मील के भीतर ही होंगे, मगर प्रश्न
है कि कहीं शेल्टर मिल जाएगा कि नहीं।'' नेहा ने मां से
कहा।
शील ने बेटी की बात पर ध्यान नहीं दिया और निक को फोन
मिलाने लगी। निक टोरोंटो में था। शील की बात सुन कर बहुत
चिन्तित हुआ। उसने बताया कि वह अपने कुछ मित्रें को डैड को
खोज निकालने के काम में लगाता है। उसने यह भी बताया कि
शीनी ने उसका घर छोड़ दिया है और अलग घर लेकर रहने लगी है।
"बच्चे?''
"बच्चे कभी उसके साथ रहते हैं और कभी मेरे पास चले आते
हैं।''
नेहा ने मां के हाथ से रिसीवर लिया और पुलिस में पिता की
गुमशुदगी की रिपोर्ट दाखिल कर दी। वह खुद भी मां को साथ
लेकर गाड़ी में पिता की तलाश में निकली, मगर सड़क पर तेज
हवाएँ थीं और बर्फ। चिरई का पूत भी नजर नहीं आ रहा था,
जिससे कुछ दरियाफ्त किया जा सके। गाड़ी ने एक किलोमीटर का
सफर भी तय न किया होगा कि सड़कें बर्फ में दफन होने लगीं।
"मॉम आगे बढना खतरनाक हो सकता है। हो सकता है, लौटने का
रास्ता न मिले।'' नेहा ने तेजी से गाड़ी वापिस घुमा ली।
वे लोग घर में घुसे तो टेलीफोन की घंटी सुनाई दी। नेहा
भीतर भागी, मगर जब तक टेलीफोन के पास पहुंचती, घंटी बंद हो
गयी। मां बेटी दोनों टेलीफोन के पास ही बैठ गयीं। शील ने
आंखें बंद कर ली थीं और मन ही मन महामृत्युंजय मंत्र का
जाप शुरू कर दिया था - ऊं ञ्यम्बकं यजामहे सुगंधि
पुष्टिवर्धनम्। उर्वारूकमिव वंधनान्मृत्योर्मुक्षीत
माऽमृतात। नेहा रसोई में जाकर चाय बना लायी। उसने एक कप
मां के सामने तिपाई पर रख दिया और धीरे धीरे चाय की
चुस्कियाँ लेने लगी। हरदयाल के पारिवारिक मित्रें में
अबरोल सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्ति था। उसने अबरोल अंकल
को फोन घुमा दिया। हरदयाल के बारे में जान कर अबरोल भी
बहुत व्यथित हुआ।
"यह सब कुछ शीनी के कारण हो रहा है। इतनी जहीन लड़की थी,
तुम्हें याद है जिस रोज 'दाल रोटी' का उद्घाटन था, उसने
जिम कपलैण्ड से दोस्ती गाँठ ली थी। तुम्हें मालूम है, जिम
इस समय देश का गृहमंत्री है?''
"नहीं अंकल। मुझे कुछ नहीं सूझ रहा।''
"तुम चिन्ता न करो। मैं अभी प्रशासन को चौकस करता हूँ।
मालूम नहीं शीनी जिम के सम्पर्क में है कि नहीं।''
नेहा को याद आया, अबरोल ने रेस्तरां के उद्घाटन की भव्य
तैयारियाँ की हुई थीं। शुद्ध भारतीय शैली में जिम का
स्वागत किया गया था। तीन भारतीय बालाएँ हाथ में गुलाब के
फूलों की मालाएँ लिए द्वार पर खड़ी थीं। सरोज ने देहरी पर
तेल चुआ कर जिम का स्वागत किया। जिम की आरती उतारी। पीतल
की थाली थामे सरोज की छवि आज भी नेहा के दिमाग में दर्ज
है। उसने लाल रंग के चौड़े बार्डर की साड़ी पहनी हुई थी।
सरोज ने आगे बढ कर जिम के भाल पर रोली अक्षत का तिलक अंकित
किया तो एक साथ दसियों छायाकारों के फ्लैशगन बिजली की तरह
कौंध गये। वीडियो कैमरा अबरोल स्वयं संचालित कर रहा था।
स्वामी जी ने अचानक झोले से शंख निकाला और शंख ध्वनि से
पूरा वातावरण गूँज उठा। वातावरण फूलों से सुवासित था। तभी
एक षोडशी ट्रे में कैंची लेकर प्रकट हो गयी। जिम ने रिबन
काटा तो फ्लैश की चकाचौंध और कैमरों की ध्वनियों के बीच
रेस्तरां के उद्घाटन का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
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