"इस देश में बर्फ के अलावा
और है क्या? यहाँ इंसान ही मुश्किल से दिखायी देते हैं,
कौवों की कौन कहे।''
"वैंकूवर में मैंने कुछ कौवे देखे थे।'' हरदयाल ने बताया।
"वहाँ तो मैंने बंदर भी देखे थे।'' शील बोली।
"हो सकता है हिन्दुस्तानियों ने पाल लिये हों।'' नेहा ने
कहा, "पापा सुनते हैं हिन्दुस्तान में लोग भैंस का दूध
पीते हैं। यहाँ तो मैंने भैंस ही नहीं देखी।''
"हमारी संस्कृति में सब जीवों के बीच भाईचारे की परिकल्पना
की गयी। गाय, बंदर, कौए आदि पशु पक्षी परिवार के सदस्यों
की तरह सम्मान पाते हैं।''
"ज्योतिष में आपकी आस्था है?'' नेहा ने पूछा।
"क्यों नहीं। तुम नहीं जानती कि प्रपन्नाचार्य जी अमरीका
में फिजिक्स के प्रोफेसर थे। ज्योतिष का अध्ययन शुरू किया
तो इतने प्रभावित हुए कि सब छोड़ छाड़ कर भारत में जा बसे।
भारत में भी फिजिक्स के कई प्रोफेसर भारतीय संस्कृति में
गहरी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। मेरे नाना की ज्योतिष में
गहरी दिलचस्पी थी। मेरे पैदा होते ही उन्होंने भविष्यवाणी
की थी कि मैं विदेश में जा बसूँगा।''
"तुम जिसे विदेश में जा बसना कहते हो, मैं उसे देश निकाला
मानती हूँ।''
"आपका मन रखने के लिए आपके साथ चल रही हूँ वर्ना मैं यह
मानने को कत्तई तैयार नहीं कि बंदर और कौए शीनी का
दाम्पत्य बचा लेंगे।''
"तुम अभी बच्ची हो, नासमझ हो। मैंने जीवन में ऐसे ऐसे
चमत्कार देखे हैं कि इन चीजों पर विश्वास करने लगा हूँ।''
हरदयाल ने कहा, "कल मंगल है, तुम अब कल ही जाना। हम लोगों
को ड़ेरी फार्म पर छोड़ देना। मुझे विश्वास है वहाँ काली
गैया जरूर मिल जाएगी।''
ड़ेरी फार्म कई एकड़ में फैला हुआ था। चारों ओर ऊँची ऊँची
बाड़ लगी हुई थी। गेट पर सुरक्षा गार्ड तैनात था। एक चिट पर
सबका नाम पता लिख कर भीतर भिजवाया गया। शील ने सुबह उठ कर
ही गुड़ की रोटियाँ बना ली थीं। उसने रोटियों वाला झोला कुछ
इस अंदाज में पकड़ रखा था जैसे उसमें कोई बहुमूल्य सामान
हो।
ड़ेरी फार्म का प्रबंधक कृषि शास्त्री और पशु चिकित्सक था।
इससे पूर्व वह एग्रीकल्चरल इंस्टीट्यूट का प्रिंसीपल रहा
था। उसके मातहत उससे बहुत परेशान रहते थे। इंस्टीट्यूट के
कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी तो प्रशासन ने उसे गोशाला का
प्रबंधक बना कर इस ड़ेरी फार्म में भेज दिया था। उसके यहाँ
ड़ेरी उद्योग पर रिसर्च करने वाले स्कालर आते रहते थे। यह
सोच कर कि नेहा भी जरूर रिसर्च स्कालर होगी, उसने पूछा,
"आपका विषय क्या है?''
"हम आपके यहाँ एक विशेष प्रयोजन से आये हैं।'' हरदयाल ने
उसकी बात का जवाब दिया, "दरअसल हम आपका ड़ेरी फार्म देखना
चाहते हैं।''
"आप शायद गलत जगह आ गये हैं। यहाँ तो सिर्फ मवेशी हैं और
दूध कलेक्ट होता है। हमारा प्रोसेसिंग यूनिट यहाँ से
पंद्रह किलोमीटर पश्चिम में है।''
"हम दरअसल गोशाला देखना चाहते हैं।''
"आप 'फ्रेण्ड्स आव एनीमल्स' संस्था से आये हैं?''
"नहीं, हमने सुना है आपके यहाँ बहुत अच्छी अच्छी जर्सी गाय
हैं। हम उन्हें देखना चाहते हैं।''
"नार्मली हम अजनबियों को भीतर जाने की इजाजत नहीं देते।''
"हमारे देश में गाय को माता का दर्जा दिया जाता है। आप यों
समझ लें कि हम माँ का दर्शन करने आये हैं।''
"मैं आपकी भावनाओं की कद्र करता हूँ, मगर आज यह सम्भव न
होगा। आज मवेशियों को वैक्सीनेशन दिया जा रहा है। आप कल
इसी समय आ जाएँ।''
"कल तो बुधवार है।''
"बुध को ड़ेरी खुली रहती है।''
वे लोग एक दूसरे का चेहरा ताकने लगे। इस बेवकूफ को कैसे
समझाया जाए कि हम लोगों के लिए आज के दिन काली गैया को
गुड़ की रोटी खिलाना कितना जरूरी है।
"हम लोग बहुत दूर से आये हैं। जब तक वैक्सीनेशन का काम
चलता है हम इंतजार कर लेंगे।'' हरदयाल बोला।
प्रबंधक ने कंधे उचका दिये यानी कि अगर आपके पास इफरात समय
है तो उसे क्या एतराज हो सकता है। वह हरदयाल से पूछ कर
हरदयाल एंड पार्टी का नाम पता कम्प्यूटर में दर्ज करने
लगा।
कोई पौन घंटे बाद वैटरनिटी डाक्टर अपना बक्सा उठाये दफ्तर
में दाखिल हुआ। उसने वहीं बैठ कर अपनी रिपोर्ट लिखी और
प्रबंधक को सौंप कर चलता बना। प्रबंधक खडा हो गया और तीनों
को भीतर चलने का इशारा किया। हरदयाल के हाथ तुरंत रोटियों
वाले झोले पर चले गये। प्रबंधक ने कहा, "इसे यहीं रहने
दें, यहाँ सुरक्षित रहेगा।''
हरदयाल तुरंत कोई जवाब न दे पाया कि उसका झोला ले जाना
कितना आवश्यक है। तीनों ने नजरों ही नजरों में इस
विडम्बनापूर्ण स्थिति पर खेद प्रकट किया। शील से न रहा
गया, वह बोली, "हम गैया को खिलाने के लिए मीठी रोटियाँ
लाये हैं।''
"यह सम्भव नहीं।'' प्रबंधक बोला, "हम मवेशियों को आगंतुकों
द्वारा लायी गयी भोजन सामग्री खाने को नहीं देते। यह यहाँ
का नियम है।''
"हम इस देश के जिम्मेदार नागरिक हैं, आप हम पर भरोसा
रखें।''
"हमारे हैड आफिस में लैब है। आप वहाँ से परीक्षण करा
लायें। मैं इजाजत दे दूँगा।''
"इसका मतलब आज कुछ नहीं हो सकता?''
"आज आप गोशाला देख लें।''
"ठीक है। यही सही।'' हरदयाल निराश होकर बोला।
वे लोग सुस्त कदमों से गोशाला की तरफ बढे।
"कितनी सुंदर गोशाला है।'' शील साफ सफाई देखकर अत्यंत
प्रभावित हुई।
"ये गायें भी गोबर करती होंगी।''
"लगता है टायलेट में जाकर गोबर करती हैं।'' नेहा बोली।
सब लोगों ने ठहाका लगाया। हरदयाल ने प्रबंधक से पूछा,
"गोबर का क्या करते हैं?''
"गोबर गैस प्लांट है। सारे कस्बे को कुकिंग गैस हमीं
सप्लाई करते हैं।''
उन लोगों ने देखा, भीतर सैकडों गायें थीं। हृष्टपुष्ट।
नहायी धोयी, स्वस्थ प्रसन्न। तीनों की नजरें काली गाय खोज
रही थीं।
"काली गाय दिख जाए तो अगले मंगल को रोटियों का परीक्षण
कराके आयेंगे।''
"मगर काली गाय ही तो नहीं है।'' शील बोली, "ज्यादातर भूरी
गायें हैं। इस देश में तो लगता है गाय भी काली नहीं
होती।''
एक गाय गहरे भूरे रंग की थी, सबकी नजरें उस पर स्थिर हो
गयीं, मगर खींचतान करके भी उसे काली गाय नहीं कहा जा सकता
था।
"आपके यहाँ काले रंग की कोई गाय नहीं?'' हरदयाल ने पूछा।
"आपके देश में सफेद शेरों की संख्या कम हो रही है, हमारे
यहाँ काली गायों की। कुछ वर्ष पहले हमारे यहाँ एक गाय थी,
जिसके बदन पर बड़े. बड़े काले धब्बे थे। माथा सफेद था। मगर
उस चितकबरी गाय ने हमेशा भूरे बछड़े दिये।''
"काली गाय कहाँ मिलेगी?''
"पाँच बरस पहले मैं कोल्ड लेक में था तो वहाँ एक काली गाय
थी। जेड ब्लैक। मगर आप काली गाय क्यों ढँढ रहे हैं?''
"यह तुम्हारी समझ में न आयेगा।'' हिन्दी में कह कर हरदयाल
मुस्कराया और अंग्रेजी में बोला, "एक आयुर्वेदिक औषधि में
काली गाय का मूत्र पड़ता है। काली गाय के मूत्र का सेवन
करने से त्वचा रोग भी नहीं होते।''
"ब्राउन गाय का मूत्र नहीं चलेगा?''
"नहीं।'' हरदयाल ने कहा।
"आप अपना टेलीफोन नम्बर छोड़ दें। अगर हमारी किसी गोशाला
में काली गाय हुई तो मैं आपको सूचित कर दूँगा।''
हरदयाल ने अपना विजिटिंग कार्ड उसे दे दिया। प्रबंधक ने उस
पर 'ब्लैक काउ' लिखा और रख लिया।
वे लोग बाहर आ गये। नेहा ने सुझाव दिया कि घर लौटने से
कहीं अच्छा है कि वे दो एक दिन उसके पास सेण्ट पाल में
रहें। यह भी हो सकता है, वहाँ किसी ड़ेरी फार्म में काली
गाय मिल जाए। हरदयाल और शील घर लौटना भी न चाहते थे। शील
को तो लग रहा था, घर लौटते ही उसकी हृदय गति रुक जाएगी। वह
बोली, "हमारे खानदान की सात पुश्तों में किसी का तलाक न
हुआ था।''
नेहा ने कार का दरवाजा खोलते हुए कहा, "डैड, क्या आपका
खानदान भी मॉम के खानदान की तरह पिछड़ा हुआ था?''
"बेटी, यह मजाक की बात नहीं है। तुम नहीं समझ सकती हम लोग
कितनी पीडा पा रहे हैं।''
"आप नाहक ही इतनी पीडा पा रहे हैं।'' नेहा ने कार स्टार्ट
की, "अव्वल तो शीनी कोई गैरकानूनी काम नहीं करने जा रही
है। अगर उसे लगता है कि उसकी बेमेल शादी हो गयी थी तो उसे
भूल सुधार का पूरा हक है।''
"तुम तो जानती हो, हम उस शादी के पक्ष में नहीं थे। यह
उसकी अपनी च्वायस थी।'' हरदयाल ने आँदोलित होते हुए कहा।
"इससे क्या फर्क पड़ता है। हो सकता है, आपकी पसंद का लड़का
उसे बिलकुल रास न आता। आप यह मान कर संतोष क्यों नहीं कर
लेते कि उससे एक बड़ी गलती हो गयी थी, वह उसे सुधारना चाहती
है।''
"बेटी तू जले पर नमक क्यों छिड़क रही है। क्या शादी के
पच्चीस बरस बाद उसे पता चला कि उसकी शादी बेमेल थी। टीन
एजर बच्चों पर इसका क्या असर पड़ेगा।''
"हो सकता है अब तक वह यह सोच कर समझौता करती रही हो कि
बच्चे छोटे हैं। उनकी परवरिश की समस्या आ सकती थी। अब
बच्चे समझदार हो चुके हैं, वह कोई कठोर कदम उठा सकती है।''
"तुमसे उसकी कोई बात हुई थी?''
"नहीं, मेरी आवाज सुनते ही वह फोन काट देती है।''
"रोको, रोको, गाड़ी रोको।'' अचानक हरदयाल चिल्लाया।
"क्या हुआ?'' शील ने गर्दन घुमा कर पीछे की सीट की तरफ
देखा।
"अभी झील के पास काला कौवा दिखा था।''
"सच?'' शील ने ऐसे कहा, जैसे मुँहमाँगी मुराद मिल गयी हो।
नेहा ने बैक गियर लगाया और गाडी पीछे लौटने लगी।
एक छोटी सी झील पर कुछ पक्षी उड़ रहे थे।
"वह देखो झील की सतह पर कौवे उड़ रहे हैं।'' हरदयाल ने
बाँह से लक्ष्य साध कर बताया, "शील गुड़ की रोटियाँ इन
कौवों को खिला दो।''
"डैड, ये तो पनकौए हैं। ये कौए की तरह काले जरूर हैं, मगर
बतख की तरह पानी में रहने वाले पक्षी हैं। मैं इन्हें बहुत
अच्छी तरह पहचानती हूँ। इनकी पूँछ सख्त, लम्बी और चोंच
चपटी होती है। इसके गले पर सफेद धब्बा होता है, जिसे देखते
ही शनिदेव भड़क जाएँगे।''
"तुम हमारी आस्थाओं, मान्यताओं और प्रतीकों का मज़ाक उड़ा
रही हो। तुम्हारा यह व्यवहार शोभनीय नहीं है।''
"सारी डैड।'' नेहा ने कहा, "मेरी बुद्धि की कुछ सीमाएँ
हैं।''
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