टेलीफोन की घंटी बजी तो माँ
बेटी दोनों उसकी ओर लपकीं। बाहरी दुनिया से सिर्फ टेलीफोन
से सम्पर्क साधा जा सकता था। टेलीफोन ने आज ऐसी चुप्पी साध
रखी थी जैसे मौनव्रत पर चला गया हो। नेहा कई बार रिसीवर
उठा कर डायल टोन चैक कर चुकी थी। टेलीफोन की घंटी से जैसे
घर में जीवन लौट आया था। जब तक नेहा रिसीवर कान तक ले
जाती, लाइन कट गयी। वही भुतहा वातावरण पुनर्जीवित हो गया।
लगा जैसे किसी बियाबान में किसी पक्षी की कूक उठी हो और
अचानक गहरे खड्ड में जा गिरी हो। दोनों महिलाओं को घोर
निराशा हुई।
"माँ डैड पैंतालीस बरसों से कैनेडा में हैं, कैनेडा के
मौसम के हर तेवर को देख चुके हैं। जाने उन्होंने बर्फ के
ऐसे कितने तूफान झेले होंगे। उन्होंने कई बार तूफान में
घिरे लोगों को बचाया है। तुम अनुपात से ज्यादा चिन्तित हो
रही हो। डैड पर नहीं तो ईश्वर पर भरोसा रखो।''
"जाने मुझे क्यों बुरे ख्याल ही आते हैं। मैं हमेशा कृष्ण
पक्ष ही देखती हूँ। यह गलत है, मैं जानती हूँ। मगर लाचार
हूँ अपनी इस बुरी आदत से।''
"तुम तो डैड के साथ कई बार तूफान में फँस चुकी हो। एक बार
तो तुम लोगों की गैस खत्म हो गयी थी। गाड़ी से निकल कर
भागते हुए तुम्हारी बाहों पर फ्रास्टबाइट आ गये थे।''
"मगर आज वे अकेले हैं।''
"तूफान भी तो उतना विकराल नहीं। फोन कट कट जा रहा है जरूर
डैड का होगा।''
नेहा की बात शील को तर्कसंगत लगी। उसे याद आया जब वह
कैनेडा आयी थी तो हरदयाल ने दस दिन की छुट्टी ले ली थी और
वे लोग छुट्टी मनाने वैंकूवर गये थे। एक तरह से वह उसके
हनीमून का ही विस्तार था। हरदयाल के चचेरे भाई का वहाँ
टिम्बर का कारोबार था, उसी ने डाकबंगले का इंतजाम किया था।
चारों ओर पहाडियों से घिरा एक आलीशान बंगला था। रात को
अचानक बर्फ का बहुत तेज तूफान आया। सुबह पर्दा उठा कर बाहर
देखा तो पहाड़ियों पर बर्फ की गहरी परत जम चुकी थी। देख कर
लगता था जैसे इस बरफ को पिघलने में सदियाँ लग जाएँगी।
प्रकृति का ऐसा धवल श्वेत रूप शील ने बाद में नहीं देखा।
सब जंगली जानवर पहाडों से नीचे तराई में उतर आये थे।
शील ने नेहा को बताना शुरू किया, "हम लोग खिड़की का पर्दा
उठा कर देखते तो लगता पहाडों ने खड़िया पोत ली है। मैंने
जिन्दगी में पहली बार हिमपात देखा था। तुम्हारे डैड मुझे
डराते कि अब यह तूफानी हिमपात महीनों चलेगा। मैं नासमझ थी,
रोने लगती। रसोई में दस दिन का प्रोविजन भी न था। बाहर
झाँक कर देखती तो लगता, यह सच ही तो कह रहे हैं। सूरजमुखी
के फूल बर्फ के फूलों में तब्दील हो गये थे, बादाम के
पेडों पर बरफ की मोटी परत चढ गयी थी।
"सुबह मैं चाय बनाने रसोई में गयी तो देखा बर्फ से ढका एक
काला भालू रसोईघर की खिड़की के काँच को चाट रहा था। मेरी
तो चीख निकल गयी। वह शायद बहुत भूखा था, वह टकटकी लगाये
मेरी तरफ ऐसे देखने लगा, जैसे कच्चा चबा जाएगा। भूख,
गुस्से और जाड़े से उसकी आँखों में जैसे खून उतर आया था।
तुम्हारे डैड दौड़ते हुए चले आये। मुझे जैसे अपनी सुरक्षा
में ले लिया। भीतर जाकर पुलिस को फोन मिलाया।
"हमें क्या करना चाहिए?'' तुम्हारे डैड ने पूछा।
"अच्छा तो यही है, आप कुछ न करें।'' पुलिस ने कहा, "बट वाट
एवर यू डू, डोण्ट फीड इट। ए फेड बेयर इज ए डेड बेयर।''
हम दोनों रसोईघर में ही कुर्सियाँ डाल कर बैठ गये। उसकी
नजरें हम लोगों पर ही टिकी थीं।
"ज्यादा समय नहीं बीता कि पुलिस और टीवी की टीमें आ
पहुँचीं। भालू इन लोगों को चकमा देकर कहीं गायब हो गया।
दिन भर अफरातफरी मची रही।''
तभी टेलीफोन का मौनव्रत टूट गया। शील अपनी बात बीच में
छोड़ टेलीफोन की तरफ लपकी। लेकिन रिसीवर नेहा ने उठाया।
सुस्त और मृत वातावरण सजीव हो उठा।
"हाई डैड। आप ठीक तो हैं।''
"एकदम। मैं ज्यादा दूर भी नहीं हूँ। एक फार्महाउस में पनाह
मिली, मगर वहाँ फोन वाला रूम बंद था। तुमने बहुत अच्छा
किया जो पुलिस को खबर कर दी, वर्ना रात भर सम्पर्क न हो
पाता। मैं जल्द ही पहुँच रहा हूँ। रास्ता साफ करने के लिए
स्नोकटर लगा दिये गये हैं। जरा माँ को फोन दो।''
"शील मैं ठीक हूँ और सड़क क्लीयर होते ही आता हूँ।''
"कहाँ चले गये थे?''
"सुनोगी तो हँसोगी। मैं काली गैया और काले कौव्वों की तलाश
में निकला था। अब सोचता हूँ, यहाँ रहना है तो अपना रवैया
बदलना होगा। वरना हम लोग बेमौत मर जाएँगे। मैं तबसे यही
सोच रहा था। अच्छा मिलते हैं।''
शील ने रिसीवर रख दिया।
"क्या कह रहे थे डैड?''
"कह रहे थे, हमें बदलना होगा, वरना मर जाएँगे।''
"ठीक ही तो कह रहे थे।'' नेहा ने कहा, "हमारे पड़ोस में
कैथरीन रहती है। पति को मरे तीन साल हो चुके हैं। अभी
पिछले महीने उसने एक बच्ची को जन्म दिया है। कौन ऐसा नगर
उपनगर होगा, जहाँ कुआँरी माताएँ न हों। हम लोग अपने नैतिक
मूल्य इस समाज पर कैसे थोप सकते हैं। माँ तुम यकीन न
करोगी, यहाँ स्कूल के बाथरूम्स में कंडोम रखे रहते हैं।''
"प्रचार के लिए रखे रहते होंगे।''
"नहीं माँ, इस्तेमाल के लिए। एड्स से बचाव के लिए।''
हरदयाल ने निक को भी फोन कर दिया था। निक ने नेहा को फोन
पर जानकारी दी और बताया कि बच्चे आज उसी के पास हैं।
सोमवार तक रहेंगे। मॉम को बताना कि अगले सप्ताह वह एडमांटन
आयेगा, अगर तलाक का मसला हल हो गया। वैसे उम्मीद है, इसी
सप्ताह वह शीनी से मुक्त हो जाएगा।
नेहा ने माँ को इसकी जानकारी दी।
यह सोच कर शील का जी कच्चा होने लगा कि शीनी की शादी बचाने
के लिए कैसे हरदयाल मारे मारे फिर रहे हैं। कहीं काली गाय
खोज रहे हैं और कहीं काले कौए। वह स्वयं अब तक सैकडों बार
ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि प्रात- स्मरणीय देवताओं की
उपासना के मंत्रों का पाठ कर चुकी है। हर संकट में ये
मंत्र ही इस परदेस में उसका साथ देते रहे हैं। हालाँकि
भीतर ही भीतर हरदयाल और शील दोनों ही कहीं न कहीं जानते थे
कि कौए, गैया और मंत्र इस शादी को न बचा पाएँगे, फिर भी एक
फीकी सी आशा और विश्वास के नन्हें से तिनके का सहारा बना
रहता है।
आज फोन पर हरदयाल का रुख नर्म था। शील को लगा कि हरदयाल ने
हार मान कर परिस्थितियों से समझौता कर लिया है। शील को वह
निर्णायक दिन याद आ गया जब वे लोग किसी विवाह समारोह से
लौटे थे और घर के बाहर निक की कार खड़ी थी। न हरदयाल और न
शील ही उस कार को पहचानती थी। हरदयाल ने कंधे उचका कर शील
से पूछा कि किसकी गाड़ी हो सकती है। शील ने मुँह बिचका कर
अनभिज्ञता जाहिर की।
वे लोग भीतर पहुँचे तो देखा रसोई में खटपट हो रही थी।
दोनों लड़कियाँ रसोई में थीं। एक गोरा कड़ाही में कुछ भून
रहा था। दोनों लड़कियाँ बहुत दिलचस्पी से उसे काम करते हुए
देख रही थीं। माँ को देख कर शीनी ने अत्यंत उत्साह से बताया, "मॉम, आज
निक हम लोगों के लिए खाना पका रहा है।''
नेहा ने एक किताब लहराते हुए बताया कि निक अपने साथ एक
किताब भी लाया है— "कुकिंग, द पंजाबी वे। हम लोग उसे
असिस्ट कर रही हैं और दौड़ दौड़ कर सामान मुहैया करा रही
हैं।''
तभी शीनी की निगाह हरदयाल पर गयी और बोली, "डैड, यह निक
है। निक मीट माई फादर, मेरी माँ से तुम मिल चुके हो।''
निक के हाथ में स्पेटुला था, उसने आगे बढ कर अपनी कुहनी से
हरदयाल का घुटना छुआ और बोला, "मैं आज आपको आपके ही मुल्क
का खाना खिलाऊँगा।''
"माँ निक चाईनीज भी लाजवाब बनाता है।'' शीनी ने कहा। उसे
इस बात की कोई फिक्र नहीं थी कि उसके माँ बाप निक की
उपस्थिति में असहज हो रहे हैं या नहीं। हरदयाल ने निक को
रसोईघर में बेतकल्लुफी से करछुल चलाते देखा तो उसे गहरा
आघात लगा। निक जब उसके घुटने पर झुका था तो उसकी तीव्र
इच्छा हुई कि घुटने से ही उसके नाक पर प्रहार कर दे, मगर
उसे लगा कि शिष्टता का यही तकाजा है कि वह अपने पर
नियंत्रण रखे। क्रोध और अपमान से उसके घुटने में कम्पन
होने लगा, वह बगैर कुछ बोले और किसी की तरफ देखे अपने कमरे
की ओर बढ गया था। हरदयाल का मूड देख कर शील भी अस्तव्यस्त
हो गयी और हरदयाल के पीछे पीछे कमरे में आ गयी। हरदयाल
बहुत व्याकुल नजर आ रहा था और टकटकी लगा कर दीवार की तरफ
देख रहा था।
"यह लड़की तो हमारी नाक कटवा कर दम लेगी।'' शील ने कहा।
"सोचता हूँ, सब कुछ छोड़छाड़ कर अपने देस लौट जाएँ।''
"यह सिरमुन्नी तो लौटने से भी इंकार कर देगी।''
"मैं अपनी बिरादरी में क्या मुँह दिखाऊँगा। इसकी हिम्मत
कैसे पड़ी, एक अजनबी को घर पर बुलाने की। तुम्हारी शह के
बगैर यह मुमकिन नहीं था।''
"मेरे ऊपर गुस्सा निकालना सबसे आसान है।''
"पिछली बार जब आया था तो तुम्हें कैटेगोरिकली शीनी से कह
देना चाहिए था कि वह दुबारा इस घर में कदम रखने का दु-साहस
न करे।''
"मैंने कहा था। उसने बहुत बेशर्मी से जवाब दिया कि उसे
अपने दोस्तों को बुलाने का पूरा हक है।''
"अभी जाओ और जाकर दोटूक शब्दों में गोरे से कह दो कि वह
चला जाए।''
"तुम क्यों नहीं कह सकते? तुम घर के मुखिया हो। हर अप्रिय
काम मुझसे ही लेना चाहते हो।''
"मैं जाऊँगा तो बात बहुत बढ जाएगी। पुलिस केस हो जाएगा।''
"तुम्हीं क्यों नहीं पुलिस को सूचित कर देते कि घर में एक
ट्रेसपासर घुस आया है।''
"तुम्हारी लड़कियाँ उसी का साथ देंगी।''
"जब वह चला जाए तो अपनी लड़की को समझाना।''
"मैं उस बदतमीज की सूरत भी नहीं देखना चाहता। मेरे साथ भी
जुबान लड़ाने लगी तो हमेशा के लिए संवाद खत्म हो जाएगा।''
"किसी दोस्त यार की सलाह ले लो। अबरोल से बात करो, देखो वह
क्या मश्वरा देते हैं।''
"वह तो सबको यही सलाह देता है कि जहाँ रहो, वहीं के होकर
रहो। वह तो हर रविवार को चर्च भी जाता है। उसका कोई दीन
ईमान नहीं रह गया।''
"तुम तो बता रहे थे, वह शिव मंदिर का भी ट्रस्टी है।''
"वह गुरुद्वारा कमेटी का भी पदाधिकारी है। उसके कोई लड़की
नहीं है इसलिए छुट्टा घूमता है।''
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