|  
					यह सोच कर हरदयाल का सिर शर्म से 
					फोम के तकिये में झुकता चला गया कि निक ने तो शपथ का निर्वाह 
					किया, उसकी बिटिया ने ही इस बंधन को तार-तार करने की ठान ली। 
					यह एक ऐसी शर्मनाक खबर थी, जो अभी तक परिवार तक सीमित थी, मगर 
					जल्द ही जंगल की आग की तरह इसकी लपटें हर सिम्त उठने लगेंगी। 
					हरदयाल दीवान की पट्टी पर अपना सिर पटकने लगा। सिर पटकने से 
					उसे बहुत राहत मिलती। यह तरीका उसने अपनी पत्नी से सीखा था। एक 
					जमाना था, वह जरा जरा सी बात पर सिर पटकने लगती। सामने दीवार 
					पड़ती तो दीवार पर, खम्भा पड़ता तो खम्भे पर। बच्चे बड़े हुए तो 
					वे भी बात बात पर सिर पटकने लगे। हरदयाल की पत्नी शैल को 
					बच्चों की खातिर अपना यह शौक छोड़ना पड़ा। अब उसे मनस्ताप होता 
					तो मंत्रेच्चार करने लगती। दसियों मंत्र और चालीसे उसने कंठस्थ 
					कर लिये थे। 
 आधी रात को जब हरदयाल की नींद खुली तो उसने पाया उसकी पत्नी 
					पलंग पर नहीं थी, वह घर के एक कोने में मंदिर के सामने बैठ कर 
					तन्मयता से पूजा कर रही थी। बीच बीच में वह पीतल की छोटी सी 
					घंटी उठा लेती और भगवान के कानों के पास ध्वनि करती। वह शंख 
					ध्वनि करना भी सीख गयी थी। लग रहा था, पूजा करने में उसने शरीर 
					की पूरी ऊर्जा लगा ली थी। उसने जैसे तय कर लिया था कि वह ईश्वर 
					को इस बात के लिए राजी करके ही दम लेगी कि शीनी तलाक की जिद 
					छोड़ दे। पूजा करते करते सहसा वह निढाल हो गयी और वहीं आसन पर 
					लुढ़क गयी।
 
 शील ने छोटी बिटिया नेहा को भी सेण्ट पाल से बुलवा लिया था। वह 
					बच्चों को राबर्ट के पास छोड़ आयी थी कि शाम तक तो उसे लौट ही 
					आना है, मगर यहाँ अपने माता पिता की स्थिति देख उसने एकाध दिन 
					उनके पास रुक जाना ही बेहतर समझा। शीनी उसकी बड़ी बहन नहीं सखी 
					भी रही है, उसे विश्वास था कि शीनी उसकी बात पर तो जरूर ही गौर 
					करेगी, मगर ज्योंही नेहा ने उसे अपने फैसले पर पुनर्विचार करने 
					का सुझाव दिया, शीनी ने उसे अपनी सीमा में ही रहने का मशवरा 
					दिया और फोन पटक दिया। नेहा इस व्यवहार के लिए तैयार न थी। उसे 
					गहरा आघात लगा। इस घर में आज पहली बार ऐसा हुआ था कि किसी ने 
					उससे सुबह चाय तक के लिए नहीं पूछा था। एक खास तरह का बेगानापन 
					चारों तरफ पसरा हुआ था। नीचे माँ और ऊपर पिता ने मनहूसियत फैला 
					रखी थी। जब जब ऐसा हुआ, शीनी के कारण ही हुआ। उसे झटके देने की 
					आदत है। पहला झटका उसने तब दिया था जब वह विधिवत घोषित रूप से 
					'डेट' पर गयी थी। नेहा उन दिनों स्कूल में पढती थी। स्कूल से 
					लौट कर उसने पाया, घर का माहौल कभी इतना मनहूस और गमगीन न था। 
					लग रहा था, दीवारें रो रही हैं, फरनीचर सिसक रहा है। फर्श पर 
					बिछा कालीन मुर्दे की तरह निस्पंद पडा था। हस्बेमामूल उसने 
					अत्यंत उत्साह से आवाज दी थी, "मॉम कहाँ हो। मैं आ गयी।''
 
 नेहा को याद है, उसकी आवाज कमरे का चक्कर लगा कर उसी की गोद 
					में आ गिरी थी। उसने दुबारा आवाज दी "मॉम मॉम।'' कोई उत्तर न 
					पाकर वह बेडरूम में घुस गयी थी। उसने देखा उसकी माँ आज ही की 
					तरह औंधी लेटी थी और सिसकियाँ भर रही थी।
 "क्या हुआ माँ?'' उसने माँ को हिलाते हुए पूछा।
 "मर गयी तेरी माँ।'' माँ ने सिसकियों के बीच जवाब दिया।
 
 नेहा हतप्रभ माँ के पास खड़ी रही। उसे जिला स्तरीय स्कूली 
					प्रतियोगिता में वादन का पहला पुरस्कार मिला था और वह बहुत 
					उत्साहित थी। उसने लगभग दौड़ते हुए घर में प्रवेश किया था कि 
					जाते ही माँ से लिपट जाएगी और माँ थी कि उसकी तरफ पलट कर भी न 
					देख रही थी। उसने लिविंग रूम में जाकर डैड को फोन मिलाया और 
					हवा में तैरते हुए बताने लगी, "डैड, आई एम फीलिंग एज इफ आई एम 
					आन टाप आफ द वर्ल्ड। दस लड़कियों में फर्स्ट आयी हूँ। कम होम 
					अर्ली डैड, आई एम सो एँक्शस टु शेयर माई फीलिंग्स विद यू।''
 
 नेहा जानबूझ कर ऊँचे स्वर में बोल रही थी ताकि उसकी माँ भी यह 
					खुशखबरी सुन ले और आकर उसे अपने आलिंगन में ले ले। माँ पर इस 
					खबर का भी कोई असर न हुआ और वह जस की तस लेटी रही।
 "मॉम, मॉम, इस तरह परेशान क्यों हो?''
 जवाब में माँ की सिसकियाँ और तेज हो गयीं। अचानक नेहा को शीनी 
					का ध्यान आया, "शीनी कहाँ है मॉम?''
 "मेरे रोकते रोकते वह किसी गोरे के साथ मुँह काला करने चली 
					गयी। हाय रे, मैं तो बर्बाद हो गयी, मैं कहीं की न रही। मुझसे 
					यह सब न सहा जाएगा। मुझे ऊपर उठा ले मेरे पातशाह।'' माँ विलाप 
					करने लगी।
 
 नेहा को समझते देर न लगी कि शीनी निक के साथ ’डेट' पर गयी है। 
					वह कई दिन पहले इसकी घोषणा कर चुकी थी। माँ उस समय भी चिल्लायी 
					थी। शीनी को पीटने के लिए उसके हाथ भी उठे थे, मगर डैड ने उसका 
					हाथ थाम लिया था। उन्होंने उस वक्त शीनी से कहा तो कुछ नहीं, 
					मगर वहाँ से उठ कर अपनी असहमति प्रकट कर दी थी।
 
 नेहा के लिए यह कोई अजूबा बात न थी। उसके स्कूल की सहेलियाँ 
					आये दिन किसी न किसी के साथ डेट पर जाती रहती थीं। डेट को लेकर 
					उसके मन में एक हिचक जरूर थी, मगर परहेज नहीं था। उसकी कक्षा 
					के दो एक लड़के उसे भी डेट पर ले जाने की पेशकश दे चुके थे, 
					मगर उसने विनम्रता से मना कर दिया था। उसे मालूम था, एक न एक 
					दिन हर लड़की डेट पर जाती है, वह भी जाएगी। माँ को इस तरह रोते 
					कलपते देख उसे बहुत पीड़ा हुई। उसकी जहालत पर गुस्सा भी आया। 
					माँ की नजर में जो हिन्दुस्तान में होता है, वही सही है। उसे 
					विश्वास नहीं होता कि माँ ने भारत में समाजशास्त्रमें एम. ए. 
					किया था। औसत हिन्दुस्तानी अभिभावक लड़का लड़की के मेलजोल को 
					निरापद नहीं मानते। जाने उनके मन में यह क्यों घुस गया है कि 
					लड़का लड़की एकांत पाते ही सेक्स करने लगेंगे। वे अपने बच्चों पर 
					भी भरोसा नहीं करना चाहते। नेहा अपनी बहन को अच्छी तरह जानती 
					है, वह लौट कर यह कहने में भी सक्षम है कि "माँ मैं सही सलामत 
					लौट आयी हूँ, चिन्ता न करो कोई सेक्स वेक्स नहीं हुआ।'' माँ 
					बहुत गर्व से बताया करती थी कि हिन्दुस्तानी लड़कियाँ डेटफेट 
					पर नहीं जातीं। मौका मिलते ही वह एक आदर्श हिन्दुस्तानी लड़की 
					का खाका पेश करती रहती थी। उसकी हमेशा यही कोशिश रहती थी कि 
					उसकी लड़कियाँ विलायत में रहते हुए भी शुद्ध हिन्दुस्तानी 
					लड़कियों की तरह पेश आयें। शलवार कमीज पहनें और हमेशा सिर ढाँप 
					कर रखें। नजरें झुकी रहें।
 
 दोनों लड़कियाँ आज तक यह मानने को तैयार न थीं कि शादी से पहले 
					मम्मी और डैडी ने एक दूसरे से विधिवत बातचीत तक न की थी।
 "पहली बार डैडी को देखा था तो कैसा लगा?'' शीनी माँ से पूछती।
 "वह कैसे भी होते, मुझे अच्छे लगते।'' यह बताते हुए माँ यह भी 
					जड़ देती, "हमें यही सिखाया गया था।'' इस बात का साफ साफ यह 
					अर्थ निकलता था कि मेरे तजुर्बे से कुछ सबक ले लो। घर में 
					मम्मी डैडी की शादी की एक तस्वीर थी जो बच्चों के मनोरंजन का 
					साधन बन चुकी थी। शीनी कहा करती थी कि तस्वीर में दोनों के 
					चेहरे इतने कठोर और ऐंठे हुए लग रहे थे कि देख कर यह पूछने की 
					इच्छा होती थी कि शादी की तस्वीर है या तलाक के कागजों पर 
					दस्तखत करने के फौरन बाद की? आजिज आकर मम्मी ने बेसमेण्ट में 
					वह तस्वीर छिपा दी थी, मगर शीनी को इसकी भनक लग गयी थी। जब कभी 
					घर में सन्नाटा खिंच जाता, शीनी वह तस्वीर खोज निकालती। उसके 
					बाद घंटों ठहाके लगते। तस्वीर की नयी नयी व्याख्याएँ पेश की 
					जातीं। शीनी कहती, "ऐसा लगता है कि दो बाल ब्रह्मचारियों की 
					जोर जबरदस्ती से शादी करके तस्वीर खींच ली गयी है। मम्मी ने 
					सिर ऐसे ढाँप रखा है जैसे बहुत बर्फ गिर रही हो और डैडी को तो 
					देखो, कैसी गोल टोपी पहन रखी है। लगता है खास तौर पर शादी के 
					लिए खरीदी थी।''
 
 "दीदी तुमने बैकग्रांउड पर ध्यान नहीं दिया।'' नेहा कहती, 
					"जंगल का कितना सुरम्य दृश्य है। हिरण शावक दौड़ रहे हैं। 
					पेडों पर कोयल बोल रही है। मोर अपने बहुरंगी पंख फैलाये नृत्य 
					कर रहे हैं। मॉम यह कहाँ का दृश्य है?''
 
 "जन्नत का।'' शील कहती, "ऐसा ही है हमारा हिन्दुस्तान। देखो 
					कैसे कलकल झरने बह रहे हैं।''
 "माँ तुलना न किया करो। कैनेडा जैसी एक भी झील भारत में दिखा 
					दो। अपनी पवित्र नदियों का रखरखाव तो भारत रख नहीं पाता।''
 "मेरा बस चले तो तुम्हारे ऊपर टाडा लगा दूँ।''
 "टाडा क्या होता है?''
 "रहने दो। जी.के. इतना न बढा लो कि अपच हो जाए।''
 
 तभी अचानक टेलीफोन की घंटी बजने लगी थी। नेहा को आज भी याद है 
					कि उसने देर तक रिसीवर नहीं उठाया था। वह आशा कर रही थी कि माँ 
					कोपभवन से निकल कर रिसीवर उठा लेगी। मगर माँ उसी प्रकार निश्चल 
					लेटी रही। उसने माँ की नाक के आगे अंगुलियाँ फैला कर सुनिश्चित 
					किया कि माँ की साँस चल रही थी। वह कुछ ऐसे अवसाद में डूबी हुई 
					थी जैसे शीनी ने कुल की तमाम मर्यादाओं का गला घोंट दिया हो और 
					अब डेट से लहू लुहान लौटेगी। माँ अपनी दोनों बेटियों को 
					असूर्यपश्या बना कर रखना चाहती थी। वह ऐसी लड़कियों के उदाहरण 
					पेश करती कि शीनी गुस्से से लालपीली हो जाती। जब माँ बताती कि 
					उसकी सहेली लीला की बेटी अपूर्वा पैंतीस की हो गयी, बैंक में 
					नौकरी करती है और कभी डेट पर नहीं गयी तो शीनी तुनुक कर जवाब 
					देती, "देखना माँ एक दिन वह पागल हो जाएगी या आत्महत्या कर 
					लेगी।''
 माँ अपूर्वा 
					को अक्सर वीकएंड पर आमंत्रित करती। उसकी हार्दिक इच्छा थी कि 
					उसकी बेटियाँ भी अपूर्वा के नक्शेकदम पर चलें, मगर लड़कियों को 
					अपूर्वा से एलर्जी थी, वे उसके साये से दूर भागतीं। शीनी ने तो 
					एक दिन उससे कह दिया कि अपूर्वा तुमने बाल विधवा का रूप क्यों 
					अपना रखा है। तुम्हारे पास अच्छी खासी सूरत और नौकरी है, किसी 
					जवान गबरू से दोस्ती करो और घर बसाने की सोचो। ऐसे ही रहने का 
					इरादा हो तो हिन्दुस्तान लौट कर साध्वी बन जाओ। अपूर्वा के 
					जाने के बाद माँ ने शीनी को डांटा तो उसने अत्यंत बदतमीजी में 
					जवाब दिया कि माँ सिर्फ दिन रात शलवार पर पहरा देने वाली 
					लड़कियाँ ही पवित्र नहीं होतीं। मैं देख रही हूँ, इस देश में 
					हिन्दुस्तानियों ने अपनी बेटियों को यही एक काम दे रखा है। आज 
					पूरी दुनिया में लड़कियाँ मर्दों के कंधे से कंधा मिला कर काम 
					कर रही हैं।
					
						 |